ईरान ने सालाना युद्ध अभ्यास शुरू किया, पश्चिमी देशों संग कुछ समय बाद शुरू होनी है 'परमाणु' वार्ता

नई कट्टरपंथी सरकार इस औपचारिक वार्ता के दोबारा शुरू करने में इच्छुक नहीं दिख रही है.

Update: 2021-11-07 11:28 GMT

ईरान के साथ 2015 में किए गए परमाणु समझौते को दोबारा लागू करने के लिए इस महीने के आखिर में वियना में बातचीत होगी. जिसमें पश्चिमी देशों के प्रतिनिधि भी हिस्सा लेंगे. इस बातचीत को एक महीने से भी कम वक्त बचा है (Iran Military Exercise). इस बीच खबर आई है कि ईरान की सेना ने ओमान की खाड़ी के तटीय इलाके में सालाना युद्ध अभ्यास शुरू कर दिया है. सरकारी टीवी ने रविवार को यह जानकारी दी है.

सरकारी टीवी की खबर के अनुसार नौसेना और वायु सेना की इकाईयों के साथ थल सेना भी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण होर्मुज जलडमरूमध्य के पूर्व में 10 लाख वर्ग किलोमीटर के दायरे में युद्ध अभ्यास में हिस्सा ले रही है. करीब 20 फीसदी तेल जहाज जलडमरूमध्य से गुजरकर ओमान की खाड़ी और हिंद महासागर जाते हैं (US Iran Nuclear Deal). यह अभ्यास ऐसे समय में हो रहा है जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ईरान के 2015 के परमाणु समझौते से अमेरिका को एकतरफा अलग करने के मद्देनजर दोनों देशों के बीच तनाव काफी बढ़ा हुआ है.
क्या है 'जोल्फाघर-1400' का लक्ष्य?
अभी यह स्पष्ट नहीं है कि अभ्यास कब तक चलेगा. खबर में बताया गया है कि सैन्य अभ्यास 'जोल्फाघर-1400' का लक्ष्य 'विदेशी ताकतों के खतरे और किसी भी आक्रमण का सामना करने के लिए तत्परता में सुधार करना' है. इससे पहले यूरोपीय संघ (European Union) ने बुधवार को घोषणा करते हुए बताया था कि ईरान परमाणु समझौते को फिर से पुनर्जीवित करने के लिए 29 नवंबर से वियना में दोबारा वार्ता शुरू होगी (Iran Nuclear Deal Analysis). यूरोपीय संघ ने कहा कि तथाकथित संयुक्त व्यापक कार्य योजना आयोग (जेसीपीओए) की बैठक में ईरान, चीन, फ्रांस, रूस, जर्मनी और ब्रिटेन के उच्च-स्तरीय अधिकारी हिस्सा लेंगे.
अमेरिका को शामिल करने की कोशिश
जेसीपीओए का लक्ष्य ईरान से प्रतिबंध हटाने के साथ-साथ ईरानी परमाणु गतिविधियों पर लगाम लगाना भी है. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को इस समझौते से हटा लिया था (US Iran Nuclear Deal). इसके बाद ट्रंप ने ईरान पर प्रतिबंध लगा दिए. यूरोपीय देशों की कोशिश अमेरिका को समझौते में शामिल करना है. लेकिन उनकी ये कोशिशें इसलिए सफल नहीं हो पा रहीं, क्योंकि ईरान की नई कट्टरपंथी सरकार इस औपचारिक वार्ता के दोबारा शुरू करने में इच्छुक नहीं दिख रही है.

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