समलैंगिक और ट्रांसजेंडर समुदायों की असंवेदनशील कवरेज जारी, चीनी मीडिया में नई बहस शुरू

समलैंगिक, ट्रांसजेंडर, बाइसेक्सुअल और क्वीयर (एलजीबीटीक्यू) समुदायों के बारे में चीनी मीडिया की कवरेज पर एक नई बहस शुरू हुई है।

Update: 2021-05-19 12:17 GMT

समलैंगिक, ट्रांसजेंडर, बाइसेक्सुअल और क्वीयर (एलजीबीटीक्यू) समुदायों के बारे में चीनी मीडिया की कवरेज पर एक नई बहस शुरू हुई है। ये आम शिकायत रही है कि चीनी मीडिया इन समुदायों की चर्चा असंवेदनशील ढंग से करता है। इसका नतीजा है कि चीनी समाज में इस समुदाय के प्रति भेदभाव बना हुआ है। इस कारण एलजीबीटीक्यू स्वभाव वाले ज्यादातर लोग खुल कर अपनी पहचान बताने की हिम्मत नहीं जुटा पाते।

ताजा विश्लेषणों में कहा गया है कि मीडिया में इस समुदाय को जिस तरह पेश किया जाता है, उसका असर न्यायपालिका के फैसलों पर भी पड़ता रहा है। शंघाई की वेबसाइट सिक्स्थटोन.कॉम में छपे एक विश्लेषण में कहा है कि इसी कारण 2014 में जाकर एक न्यायिक फैसला आया, जिसमें समलैंगिकों की प्रवृत्ति बदलने के लिए इलाज करने के दावों को गैर-कानूनी ठहराया गया। जबकि इसके 13 साल पहले चीन में सरकारी तौर पर ये बात मान ली गई थी कि समलैंगिकता कोई रोग नहीं है। उस फैसले की मीडिया में काफी चर्चा हुई। इसके बावजूद आज भी चीन में ऐसे संस्थान हैं, जो समलैंगिकों के इलाज का दावा करते हैं। ऐसे संस्थानों को चलाना आज भी अवैध नहीं बनाया गया है।
वेबसाइट सिक्स्थटोन में छपे विश्लेषण में कहा गया है कि 2014 के फैसले के बाद चीनी मीडिया में एलजीबीटीक्यू समुदायों के बारे में कवरेज काफी बढ़ा। 2012 में एक निजी संस्था ने अच्छे कवरेज के लिए चाइना रेनबो मीडिया अवार्ड्स देने की शुरुआत की थी। उस संस्था के मुताबिक 2015 में एलजीबीटीक्यू समुदायों के बारे में चीनी मीडिया में कुल 867 रिपोर्ट छपीं। लेकिन उसके बाद इसमें फिर गिरावट आ गई। 2020 में तो ये संख्या सिर्फ 348 रह गई।
जहां तक कवरेज की विषयवस्तु का सवाल है, तो पहले इन समुदायों के बारे में ज्यादातर खबरें सार्वजनिक स्वास्थ्य और एड्स के संदर्भ में लिखी जाती थीं। एलजीबीटीक्यू के अधिकारों और उनसे होने वाले भेदभाव की चर्चा बाद में शुरू हुई। अब हाल में जाकर इन समुदायों के आर्थिक जीवन और उनकी संस्कृति का जिक्र मीडिया में शुरू हुआ है। लेकिन समस्या यह है कि 2015 के बाद कुल कवरेज में गिरावट आती गई है। सबसे ज्यादा गिरावट प्रिंट मीडिया में आई है। डिजिटल मीडिया में भी एलजीबीटीक्यू से संबंधित मुद्दों को अब कम जगह मिल रही है। इसे देखते हुए इस समुदाय की तरफ से 'वीमीडिया' नाम से एक प्रकाशन शुरू किया गया है। लेकिन इसकी पहुंच बहुत सीमित है।
एलजीबीटी राइट्स एडवोकेसी चाइना नाम के संगठन के संचार प्रबंधक यांग यी ने लिखा है कि एलजीबीटीक्यू समुदायों के बारे में मीडिया में ज्यादा चर्चा होने से इन समुदायों के लिए समाज में अनुकूल जगह बनाने में सहायता मिलती है। उससे उन समस्याओं की तरफ ध्यान जाता है, जिनका सामना इन समुदायों के लोगों को रोज करना पड़ता है। यांग के मुताबिक जब चीनी मीडिया में इन समुदायों के बारे में कवरेज बढ़ा, तब ट्रांसजेंडर समुदाय के कानूनी अधिकारों के पक्ष में सार्वजनिक अभियानों की संख्या भी बढ़ी। तब उनके अधिकारों के लिए काम करने वाले नए संगठन सामने आए।
ताजा विश्लेषण के मुताबिक चीनी मीडिया में जो रिपोर्टें छपती हैं, उनमें लगभग 50 फीसदी एलजीबीटीक्यू समुदाय के बारे में या तो नकारात्मक या तटस्थ नजरिये से लिखी जाती हैं। जबकि बाकी आधी संख्या सकारात्मक नजरिए से प्रेरित होती है, या उनमें उन समस्याओं का जिक्र होता है, जिनका सामना इन समुदायों को करना पड़ रहा है। लेकिन कुल मिला कर आज भी इस मामले में स्थिति संतोषजनक नहीं है।
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