यूएन में प्रस्ताव पेश करते हुए, भारत ने कहा कि धार्मिक भेदभाव और घृणा की कोई भी अभिव्यक्ति न केवल एक धर्म बल्कि सभी धर्मों के अनुयायियों के खिलाफ होती है। इस्लामोफोबिया, जो विशेष रूप से मुसलमानों के खिलाफ घृणा और भेदभाव को दर्शाता है, एक गंभीर मुद्दा है, जिसका मुकाबला करना सभी देशों की जिम्मेदारी है। भारत ने इस मुद्दे पर निरंतर अपने समर्थन की बात की और धार्मिक समानता की आवश्यकता पर जोर दिया।
भारत के स्थायी प्रतिनिधि ने संयुक्त राष्ट्र में यह स्पष्ट किया कि धार्मिक स्वतंत्रता सभी मानवाधिकारों का एक अभिन्न हिस्सा है और इसे सभी देशों में सुनिश्चित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, "धार्मिक भेदभाव को नकारना केवल एक धर्म तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरी मानवता के खिलाफ है। हमें एकजुट होकर इस तरह के भेदभाव के खिलाफ काम करना होगा।"
इस प्रस्ताव का समर्थन करने के साथ ही भारत ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से यह भी आग्रह किया कि वे एक समान और सहिष्णु समाज बनाने के लिए कदम उठाएं, जहां सभी धर्मों के लोग समान सम्मान और स्वतंत्रता के साथ रह सकें।
भारत के इस समर्थन ने यह साबित कर दिया कि देश धर्मनिरपेक्षता और विविधता में एकता के सिद्धांत को दृढ़ता से अपनाता है, और वह सभी प्रकार के धार्मिक भेदभाव के खिलाफ है।