वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन

Update: 2023-07-19 11:08 GMT

ये नदी तिब्बत से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में खत्म होती है. यारलुंग-त्सांगपो ब्रह्मपुत्र का ऊपरी खंड है जहां कथित तौर पर चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बनने जा रही है.

भारत और चीन के बीच पिछले तीन वर्षों से असली नियंत्रण रेखा पर विवाद की स्थिति जारी है. इस विवाद के बीच चीन कुछ ऐसा करने जा रहा है जिससे हिंदुस्तान परेशान हो सकता है. ऐसी खबरें आने लगी हैं कि चीन तिब्बत में एलएसी (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) के पास एक सुपर डैम बनाने जा रहा है. कथित तौर पर, नया बांध यारलुंग-त्संगपो नदी के निचले हिस्सों के पास बनाया जा रहा है, जो मूल रूप से हिंदुस्तान की ब्रह्मपुत्र नदी है. ब्रह्मपुत्र दुनिया की सबसे लंबी नदियों में से एक है. ये नदी तिब्बत से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में खत्म होती है. यारलुंग-त्सांगपो ब्रह्मपुत्र का ऊपरी खंड है जहां कथित तौर पर चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बनने जा रही है.

चीन की मेगा प्रोजेक्टक का हिस्सा है ये बांध

2060 तक कार्बन तटस्थता हासिल करने के लक्ष्य के साथ चीन ने तिब्बत में जलविद्युत परियोजनाओं पर अपने कोशिश तेज कर दिए हैं. 60 गीगावाट की नियोजित क्षमता वाला यह नया बांध आकार और क्षमता दोनों में चीन के अपने ‘थ्री गॉर्जेस बांध’ से आगे निकल जाएगा, जिसे वर्तमान में दुनिया की सबसे बड़ी जलविद्युत सुविधा के रूप में मान्यता प्राप्त है. इस विशाल परियोजना की साइट कथित तौर पर भारतीय सीमा से केवल 30 किलोमीटर दूर है और हिंदुस्तान में भू-राजनीतिक चिंता का एक प्रमुख कारण है.

चीन-भारत संबंध लंबे समय से बने हुए जटिल

तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) को छोड़ने के बाद यारलुंग त्सांगपो अरुणाचल प्रदेश, असम और बांग्लादेश से होकर बहती हुई ब्रह्मपुत्र नदी बन जाती है. यह इसके किनारे के समुदायों के लिए जरूरी है. लोग मुख्य रूप से कृषि, सिंचाई और मछली पकड़ने के लिए नदी के पानी और उपजाऊ मिट्टी पर निर्भर हैं. इतना विशाल बांध नदी द्वारा लाई गई उपजाऊ गादयुक्त मिट्टी के प्रवाह को बाधित कर सकता है, जिससे निचले कृषि क्षेत्रों पर नकारात्मक असर पड़ेगा. साझा जल संसाधनों के कारण चीन-भारत संबंध लंबे समय से जटिल बने हुए हैं.

भारत के लिए क्यों चिंता की बात

हालांकि चीन का दावा है कि बांध एक रन-ऑफ-द-रिवर जलविद्युत परियोजना है और यह ब्रह्मपुत्र के पानी को नहीं मोड़ेगा, जानकारों को डर है कि इससे गर्मियों के दौरान पानी का प्रवाह कम हो सकता है. और यदि चीन मानसून के दौरान बांध से पानी छोड़ने का निर्णय करता है, तो यह पहले से ही बाढ़ग्रस्त राज्य असम के लिए विध्वंसक हो सकता है. हिंदू के मुताबिक, 2021 में चीन ने तिब्बत में माब्जा जांग्बो नदी पर बांध बनाना प्रारम्भ किया। यह बांध, जो ट्राइ-जंक्शन (भारत, नेपाल और चीन की सीमा) से लगभग 16 किलोमीटर उत्तर में है, रणनीतिक महत्व का है. मब्जा जांग्बो नदी तिब्बत के नागरी काउंटी से निकलती है और घाघरा नदी में शामिल होने से पहले नेपाल से होकर बहती है, जो अंततः गंगा में मिल जाती है. चीन इस नदी पर बांध बना रहा है, जिससे न सिर्फ पानी का रुख मोड़ा जा सकता है, बल्कि जरूरी मात्रा में भंडारण भी किया जा सकता है, जिससे संभावित रूप से उन क्षेत्रों में पानी की कमी हो सकती है, जो माब्जा जांग्बो नदी के जल प्रवाह पर निर्भर हैं. इसका नेपाल सहित निचले इलाकों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है, जहां घाघरा और करनाली जैसी नदियों में जल स्तर कम हो सकता है.

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