ऑस्ट्रेलिया में COVID-19 वैक्सीन के परीक्षण पर रोक, दिखने लगा था HIV इंफेक्शन

ऑस्ट्रेलिया में कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए विकसित की जा रही एक वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल |

Update: 2020-12-11 11:48 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| ऑस्ट्रेलिया में कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए विकसित की जा रही एक वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल शुरुआती चरण में ही बंद कर दिया गया है। दरअसल, परीक्षण के पहले चरण में वैक्सीन लेने पर वॉलंटिअर्स शरीर में (HIV) के लिए ऐंटीबॉडी का निर्माण हो रहा था। सीएसएल ने एक बयान में कहा कि वी451 COVID-19 वैक्सीन के आरंभिक चरण के परीक्षण में भाग लेने वाले 216 प्रतिभागियों में कोई गंभीर प्रतिकूल असर देखने को नहीं मिला।

HIV प्रोटीन जैसी ऐंटीबॉडी
क्वींसलैंड विश्वविद्यालय (यूक्यू) और बायोटेक कंपनी सीएसएल ने यह वैक्सीन तैयार की है। बहरहाल क्लिनिकल ट्रायल के दौरान पता चला कि कुछ मरीजों में ऐंटीबॉडी का निर्माण हुआ जो HIV के प्रोटीन से मिलता जुलता था। ऑस्ट्रेलिया की सरकार से विचार-विमर्श करने के बाद क्वींसलैंड विश्वविद्यालय-सीएसएल ने वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल के दूसरे और तीसरे चरण का काम रोक देने का फैसला किया।
वैक्सीन से कोई खतरा नहीं

ऑस्ट्रेलिया ने वैक्सीन की 5.1 करोड़ खुराक खरीदने के लिए चार वैक्सीन निर्माताओं से करार किया है। यह कंपनी भी उनमें से एक थी। वैक्सीन निर्माता ने कहा कि वैक्सीन से किसी प्रकार के संक्रमण का खतरा नहीं था और नियमित जांच के दौरान इसकी पुष्टि हो गई कि इसमें HIV का वायरस मौजूद नहीं था। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा कि क्लिनिकल ट्रायल रोका जाना दिखाता है कि ऑस्ट्रेलिया की सरकार और अनुसंधानकर्ता बहुत सावधानी के साथ काम कर रहे हैं।
'नहीं हुई हैरानी'
उन्होंने कहा, 'आज जो हुआ उससे सरकार को हैरानी नहीं हुई। हम बिना किसी जल्दबाजी के संभल कर चलना चाहते हैं।' सीएसएल ने कहा कि अगर राष्ट्रीय स्तर पर वैक्सीन का इस्तेमाल होता तो समुदाय के बीच HIV संक्रमण के त्रुटिपूर्ण परिणाम के कारण ऑस्ट्रेलिया के लोकस्वास्थ्य पर इसका गंभीर असर पड़ता। जुलाई से ही इस वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल किया जा रहा था।
वैक्सीन के विकास में लगे विश्वविद्यालय के पॉल यंग ने कहा कि वैक्सीन पर फिर से काम किया जा सकता था लेकिन टीम को इसमें और लंबा वक्त लग जाता। सीएसएल के मुख्य विज्ञान अधिकारी एंड्रयू नैश ने कहा कि वैक्सीन विकास के शुरुआती चरण में कई तरह के जोखिम जुड़े होते हैं और असफलता की भी आशंका रहती है।
ऑस्ट्रेलियन नैशनल यूनिवर्सिटी में संक्रामक रोग के विशेषज्ञ और मेडिसिन के असोसिएट प्रफेसर संजय सेनानायके ने कहा कि यह खबर निराशाजनक है लेकिन वैक्सीन के असफल होने को लेकर कोई हैरानी की बात नहीं है। उन्होंने कहा, 'आम तौर पर करीब 90 प्रतिशत वैक्सीन कभी बाजार तक नहीं पहुंच पाती।'


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