पाकिस्तान का वो प्रधानमंत्री जो हटा तो देश में मार्शल लॉ लग गया
प्रधानमंत्री रहे ख्वाजा नजीमुद्दीन ने मुमताज दौलताना को पद से हटा दिया था और उनकी जगह ली थी तब पूर्वी पाकिस्तान के गवर्नर रहे सर फिरोज खान नून ने.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। 1947 में पाकिस्तान के बनने के बाद सर फिरोज खान नून ही वो पहले शख्स थे, जिन्हें तब पाकिस्तान के कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना ने सऊदी अरब और दूसरे इस्लामिक मुल्कों में भेजा ताकि वो इस्लामिक मुल्कों में पाकिस्तान की अहमियत कायम कर सकें और बता सकें कि अब दुनिया के सामने एक और मुल्क है जो पूरी तरह से इस्लामिक है. इसका एक मकसद ये भी था कि इस्लामिक मुल्क पाकिस्तान को मान्यता दें और साथ ही एक नए बने इस्लामिक मुल्क को आर्थिक मदद भी दें ताकि वो अपने पैरों पर खड़ा हो सके. सर फिरोज खान नून अपने मकसद में कामयाब भी रहे थे.
1950 में पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम रहे लियाकत अली खान ने फिरोज खान नून को पूर्वी पाकिस्तान का गवर्नर बना दिया. लेकिन फिरोज खान नून की व्यक्तिगत दिलचस्पी पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में थी. वो पूर्वी पाकिस्तान की सियासत में जरा भी दिलचस्पी नहीं ले रहे थे. और यही वजह थी कि जब भाषा के नाम पर 1952 में पूर्वी पाकिस्तान बनाम पश्चिमी पाकिस्तान की लड़ाई शुरू हुई तो उन्होंने इस लड़ाई को रोकने की कोई सियासी पहल नहीं की, बल्कि वो ढाका छोड़कर पंजाब लौट आए. हालांकि नवंबर के आखिरी महीनों में कुछ दिनों के लिए उन्हें फिर से पूर्वी पाकिस्तान का गवर्नर बनाया गया था. लेकिन 1953 में जब पंजाब में जमात-ए-इस्लामी ने अहमदिया मुस्लिमों के खिलाफ दंगे किए और जब वहां के मुख्यमंत्री मुमताज दौलताना उस दंगे को रोकने में नाकाम रहे तो प्रधानमंत्री रहे ख्वाजा नजीमुद्दीन ने मुमताज दौलताना को पद से हटा दिया था और उनकी जगह ली थी तब पूर्वी पाकिस्तान के गवर्नर रहे सर फिरोज खान नून ने.
लेकिन 1955 आते-आते फिरोज खान नून मुस्लिम लीग से अलग हो गए और वो रिपब्लिकन पार्टी के साथ चले गए. उन्हें रिपब्लिकन पार्टी का अध्यक्ष भी बना दिया गया. इस्कंदर मिर्जा के राष्ट्रपति बनने के बाद फिरोज खान नून को हुसैन सुहरावर्दी की सरकार में विदेश मंत्री बना दिया गया. ये सरकार तीन पार्टियों की मिली जुली सरकार थी, जिसमें मुस्लिम लीग, अवामी लीग और रिपब्लिकन पार्टी शामिल थी. अवामी लीग के सुहरावर्दी के इस्तीफे के बाद मुस्लिम लीग के चुंदरीगर वजीर-ए-आजम बने थे और उनके इस्तीफे के बाद नंबर था रिपब्लिकन पार्टी के नेता का. और तब फिरोज खान नून रिपब्लिकन पार्टी के निर्विवाद नेता थे, जिन्हें अवामी लीग के साथ ही नेशनल अवामी पार्टी और कृषक श्रमिक पार्टी ने भी समर्थन देकर वजीर-ए-आजम बना दिया. 16 दिसंबर, 1957 को सर फिरोज खान नून ने पाकिस्तान के सातवें वजीर-ए-आजम के तौर पर शपथ ली.
वजीर-ए-आजम बनने के बाद नून ने दो बड़े काम किए, जिससे राष्ट्रपति इस्कंदर अली मिर्जा को अपनी कुर्सी पर खतरा नज़र आने लगा. पहला बड़ा काम नून का था ग्वादर बंदरगाह को पाकिस्तान के साथ लाना, जिसके लिए उन्होंने ओमान के सुल्तान के साथ समझौता किया था और तीन मिलियन डॉलर देकर ग्वादर को अपने कब्जे में ले लिया था. नून का दूसरा बड़ा काम था कश्मीर समस्या को सुलझाने के लिए भारत के साथ समझौते की दिशा में कदम बढ़ाना.
नून के इस कदम से राष्ट्रपति इस्कंदर अली मिर्जा को खतरा महसूस होने लगा. तिस पर तुर्रा ये कि 1958 में जब इस्कंदर अली मिर्जा का कार्यकाल खत्म हो रहा था तो चार पार्टियों की गठबंधन की सरकार चला रहे फिरोज खान नून ने इस्कंदर अली मिर्जा को फिर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने से मना कर दिया. उनकी अपनी रिपब्लिकन पार्टी के साथ ही उन्हें सहयोग दे रही अवामी लीग, नेशनल अवामी पार्टी और कृषक श्रमिक पार्टी ने खुद का राष्ट्रपति बनाने का फैसला किया. इससे इस्कंदर अली मिर्जा नाराज हो गए. और फिर उन्होंने 7-8 अक्टूबर, 1958 की रात अपने ही बनाए प्रधानमंत्री को पाकिस्तानी सेना की मदद से सत्ता से बेदखल कर दिया और पूरे देश में मार्शल लॉ लगा दिया गया. पाकिस्तान का संविधान भंग कर दिया गया. असेंबली भंग कर दी गई. प्रांतों की सरकारें भंग कर दी गईं. पाकिस्तानी सेना के मुखिया जनरल अयूब खान को चीफ मार्शल लॉ एडमिनिस्ट्रेटर बना दिया गया और उन्हें ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के तौर पर नामित किया गया.
8 अक्टूबर 1958 से ही पूरा पाकिस्तान सेना के अधीन आ गया. अपनी आजादी के महज 11 साल के अंदर ही पाकिस्तान में लोकतंत्र की बजाय तानाशाही लागू हो गई और सब कुछ सेना के हवाले हो गया. लेकिन इसका जो गुनहगार था, उसे अभी और भुगतना था. पाकिस्तान की इस हालत के लिए जिम्मेदार इस्कंदर अली मिर्जा ही थे, जिन्होंने पूरी सत्ता जनरल अयूब खान को सौंप दी थी. और 20 दिन के अंदर ही अयूब खान ने इस्कंदर अली मिर्जा को भी पद से बर्खास्त कर उन्हें लंदन निर्वासित कर दिया. अब अयूब खान ही सब कुछ थे. राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सैन्य प्रमुख...
तख्तापलट सीरीज के अगले एपिसोड में पढ़िए कहानी नूरुल अमीन की, जो 13 साल के मार्शल लॉ के बाद हुए चुनाव में पाकिस्तान के आठवें वजीर-ए-आजम बने लेकिन 13 दिनों के अंदर ही उन्हें भी अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा.