नए PM नाफ्ताली बेनेट के राज में अब कैसा रहेगा भारत और इजरायल का संबंध?
भारत-इजरायल संबंध
इजरायल में नई सरकार का गठन हो गया है। पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू (71) की जगह अब देश की कमान कट्टरपंथी नाफ्ताली बेनेट के हाथों में हैं। नेतन्याहू के 12 साल का कार्यकाल खत्म हो गया। आठ पार्टियों की गठबंधन वाली सरकार में खास बात यह है कि सरकार में पहली बार अरब मुस्लिम पार्टी राम भी शामिल है। इजरायल में बेनेट को सत्ता ऐसे समय मिल रही है, जब देश के समक्ष अपार चुनौतियां है। आखिर बेनेट के समक्ष क्या होगी बड़ी चुनौती। भारत-इजरायल संबंधों पर क्या पड़ेगा असर।
आखिर कौन हैं इजरायल के नए पीएम
49 साल के नाफ्ताली बेनेट इजराइल के नए प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए हैं। बेनेट किसी समय पूर्व प्रधानमंत्री नेतन्याहू के बेहद करीबी माने जाते थे
वर्ष 2006 से 2008 तक वह इजरायल के चीफ ऑफ स्टाफ रहे। 2013 में कट्टरपंथी होम पार्टी से पहली बार निर्वाचित हुए। 2019 तक हर गठबंधन सरकार में मंत्री रहे।
बेनेट सिर्फ यहूदी राष्ट्र की पैरवी करते आए हैं। वह नेता के अलावा कारोबारी भी हैं। कट्टपपंथियों को फांसी देने के पक्षधर हैं। वेस्ट बैंक में यहूदियों बस्तियां बनाने के पक्षधर रहे। उन्होंने फिलीस्तीन को अलग राष्ट्र मानने से इन्कार किया है।
नए प्रधानमंत्री बेनेट हाईटेक धन कुबेर हैं। उनके साथ सरकार में वामपंथी दलों, मध्यमार्गी दल और अरब पार्टी भी साझीदार है। बेनेट ने याइर लैपिड के साथ मिलकर गठबंधन तैयार किया है।
स्थिर रहेंगे भारत-इजरायल के संबंध
प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि भारत और इजरायल की दोस्ती काफी गाढ़ी है। दोनों देश आतंकवाद और कट्टरवाद से पीड़ित है। भारत और इजरायल दोनों इस मोर्चे पर एक साथ संघर्ष कर रहे हैं। हाल के दिनों में दोनों देशों एक दूसरे के निकट आए हैं। आतंकवाद से निपटने के लिए दोनों देश एक दूसरे के रणनीतिक साझेदार भी है। दोनों देशों के बीच रक्षा और समारिक संबंध भी है। भारतीय सेना के लिए इजरायल कई तरह के आयुधों और शस्त्रों की आपूर्ति करता है। शस्त्रों की आपूर्ति में इजरायल की बड़ी हिस्सेदारी है।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके समक्ष रहे इजरायली समकक्ष बेंजामिन नेतन्याहू से मधुर संबंध रहे। उन्होंने कहा कि दोनों नेताओं के व्यक्तिगत संबंधों का लाभ दोनों देशों को मिला है। दोनों देशों के बीच जल, कृषि और इनोवेशन के क्षेत्र में व्यापक सहयोग है। दोनों देशों सामरिक और रणनीतिक क्षेत्र में साझेदार भी हैं। कोविड-19 महामारी के खिलाफ भी दोनों देश पारस्परिक सहयोग कर रहे हैं।
प्रो. पंत का कहना है कि इजरायल में सत्ता में बदलाव से भारत के साथ संबंधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसकी एक बड़ी वजह दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग और समान हित हैं। दूसरे, इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि नए प्रधानमंत्री बेनेट की विदेश नीति में कोई बदलाव नहीं आएगा। वह नेत्नायहू की रणनीति को ही आगे बढ़ाएंगे। इससे यह साफ है कि भारत और इजरायल के संबंधों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है।
बेनेट के समक्ष तीन बड़ी चुनौती
इजरायली संसद में मतदान के दौरान गठबंधन सरकार और विपक्ष के बीच सिर्फ एक सीट का फासला है। सरकार के पक्ष में 60 जबकि विरोध में 59 सांसदों ने वोट किया। ऐसे में बेनेट के समक्ष सदन और सरकार को चलाना एक बड़ी चुनौती होगी। इस गठबंधन के पास बहुमत से सिर्फ एक सीट ही ज्यादा है।
8 पार्टियों की गठबंधन सरकार की कमान कट्टरपंथी माने जानेवाले नफ्ताली बेनेट संभालेंगे। वे फिलीस्तीन राज्य की विचारधारा को ही स्वीकार नहीं करते। ऐसे में गठबंधन धर्म और उसके हितों का संभालना भी एक बड़ी चुनौती होगी।
इजरायली सियासत में कई वर्षों से अस्थिरता नजर आ रही है। दो साल में चार चुनाव हुए, लेकिन किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। बेनेट प्रधानमंत्री भले ही बन गए हों और उन्होंने गठबंधन भी बना लिया हो, लेकिन उनकी सरकार को लेकर लोग बहुत आशावान नहीं हैं। इसकी एक वजह है कि अगर किसी भी मुद्दे पर गठबंधन में मतभेद हुए तो नया चुनाव ही रास्ता बचेगा।