यूएई और सऊदी अरब को निशाना बना रहे हैं हूती विद्रोही, विदेशियों को दी हमले की चेतावनी
हूती मुस्लिम भी इसी समुदाय से आते हैं। इतना ही नहीं ईरान का पहले ही सऊदी अरब और यूएई से लंबा विवाद रहा है।
संयुक्त अरब अमीरात के एक मुख्य अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को निशाना बनाया गया है। यूएई की राजधानी अबू धाबी के मुख्य एयरपोर्ट पर सोमवार को आग लग गई और तीन ईंधन टैकरों में विस्फोट हो गया। इसमें दो भारतीय नागरिकों समेत तीन लोगों की मौत हो गई और छह अन्य घायल हो गए। अबू धाबी पुलिस ने इसके लिए ड्रोन हमले को जिम्मेदार ठहराया है। यमन के हूती विद्रोहियों ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। हूती के सैन्य प्रवक्ता याहिया सरेई ने कहा कि उनके समूह ने यूएई में अंदर तक हमला किया है। सवाल यह है कि आखिर हूती विद्रोही यमन को निशाना क्यों बना रहे हैं?
दरअसल, यमन के बड़े हिस्से पर हूती विद्रोहियों ने कब्जा किया हुआ है। यहां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सरकार की बहाली के लिए सऊदी अरब की अगुवाई वाला सैन्य गठबंधन हूतियों के खिलाफ लड़ रहा है। यमन के गृहयुद्ध में लड़ाई के लिए यूएई, सऊदी गठबंधन में 2015 में शामिल हो गया था। यूएई ने हाल के हफ्तों में यमन में हूती ठिकानों के खिलाफ अपने हवाई अभियान को तेज कर दिया है। हूती विद्रोहियों ने कहा था कि वह इसके खिलाफ जवाबी कार्रवाई करेगा। सोमवार को हुए हमलों को इसी कार्रवाई का हिस्सा माना जा रहा है।
अचानक चर्चा में कैसे आए हूती ?
2 जनवरी को यूएई के रवाबी नाम के मालवाहक जहाज को हूती विद्रोहितयों ने अपने कब्जे में ले लिया था। इस पर सवार 11 लोगों को बंधक बना लिया गया है। इनमें से 7 भारतीय हैं। भारत ने इस घटना पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए संयुक्त राष्ट्र से मदद की गुहार लगाई है। इस बीच संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि उसने रवाबी पर तैनात चालक दल के सदस्यों से बात की है।
कौन हैं और कहां से आते हैं हूती?
हूतियों का उदय 1980 के दशक में यमन में हुआ। यह यमन के उत्तरी क्षेत्र में शिया मुस्लिमों का सबसे बड़ा आदिवासी संगठन है। हूती उत्तरी यमन में सुन्नी इस्लाम की सलाफी विचारधारा के विस्तार के विरोध में हैं। 2011 से पहले जब यमन में सुन्नी नेता अब्दुल्ला सालेह की सरकार थी, तब शियाओं के दमन की कई घटनाएं सामने आईं। ऐसे में शियाओं में सुन्नी समुदाय के तानाशाह नेता के खिलाफ गुस्सा भड़क उठा।
क्यों बनाया विद्रोही संगठन?
रिपोर्ट के मुताबिक 2000 के दशक में विद्रोही सेना बनने के बाद हूतियों ने 2004 से 2010 तक सालेह की सेना से छह बार युद्ध किया। साल 2011 में अरब देशों (सऊदी अरब, यूएई, बहरीन और अन्य) के हस्तक्षेप के बाद यह युद्ध शांत हुआ। तानाशाह सालेह को देश की जनता के प्रदर्शनों के चलते पद छोड़ना पड़ा। इस दौरान अब्दरब्बू मंसूर हादी यमन के नए राष्ट्रपति बने। लेकिन देश में जिहादी आतंकियों के बढ़ते हमले, दक्षिणी यमन में अलगाववादी आंदोलन, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और सेना का पूर्व राष्ट्रपति सालेह को समर्थन हादी के लिए समस्या बना रहा। आखिरकार जब हूतियों को अपनी समस्याओं का हल होता नहीं दिखा, तो उन्होंने हादी को भी सत्ता से बेदखल कर दिया और राजधानी सना को अपने कब्जे में ले लिया।
क्यों घबराए हैं सऊदी और यूएई ?
शिया समुदाय से आने वाले हूतियों की यमन में इसी बढ़ती ताकत से सुन्नी बहुल सऊदी अरब और यूएई में घबराहट बढ़ गई। उन्होंने अमेरिका और ब्रिटेन की मदद से हूतियों के खिलाफ हवाई और जमीनी हमले करने शुरू कर दिए और सत्ता से बेदखल हुए हादी का समर्थन किया। इसका असर यह हुआ कि यमन अब युद्ध का मैदान बन चुका है। यहां सऊदी अरब, यूएई की सेनाओं का मुकाबला हूती विद्रोहियों से है।
ईरान का नाम क्यों आता है सामने ?
ईरान पर हूतियों की मदद के आरोप लगते रहे हैं। बताया जाता है कि हूती विद्रोहियों को सीधे तौर पर ईरान का समर्थन हासिल है। दरअसल, ईरान शिया बहुल देश है और हूती मुस्लिम भी इसी समुदाय से आते हैं। इतना ही नहीं ईरान का पहले ही सऊदी अरब और यूएई से लंबा विवाद रहा है।