बीजिंग (आईएएनएस)| इस वर्ष 13 अप्रैल को ताई जाति, आछांग जाति, पुलांग जाति, वा जाति, देआंग जाति आदि चीनी अल्पसंख्य जातियों का पारंपरिक पानी-छपाका त्योहार था। यह त्योहार उन जातियों का नव वर्ष भी है। ये अल्पसंख्यक जातियां आम तौर पर दक्षिण-पश्चिम चीन के युन्नान प्रांत में फैली हैं। ताई जाति के पारंपरिक त्योहार में पानी-छपाका त्योहार सबसे महत्वपूर्ण है, जो हर साल 13 से 15 अप्रैल तक मनाया जाता है। पानी-छपाका त्योहार का आगमन उपरोक्त जातियों के लोगों के लिए नव वर्ष का शुभारंभ है। जब त्योहार आता है, तो ताई जाति के पुरुष, महिलाएं और बच्चे उत्सव की वेशभूषा धारण करते हैं, वे अपना आशीर्वाद व्यक्त करने के लिए एक दूसरे पर पानी के छींटे मारते हैं। त्योहार के दौरान, लोक गतिविधियां, कला प्रदर्शन, आर्थिक व व्यापारिक आदान-प्रदान आदि गतिविधियों का आयोजन किया जाता है। विशिष्ट त्योहार गतिविधियों में पानी छिड़कना, ड्रैगन नाव प्रतियोगिता, बुद्ध पूजा, सूत्र जप, चांगहा गायन प्रदर्शन, मोर नृत्य और सफेद हाथी नृत्य प्रदर्शन आदि शामिल हैं।
वास्तव में पानी-छपाका त्योहार भारत से आता है। पानी छपाका कभी हिंदू ब्राह्मणों का एक धार्मिक अनुष्ठान था, और बाद में बौद्ध धर्म ने इसे अपनाया। लगभग 12वीं शताब्दी के अंत से 13वीं शताब्दी की शुरूआत तक, ताई जातीय क्षेत्र में बौद्ध धर्म का प्रभाव बढ़ने के चलते, पानी छपाका वाली रस्म म्यांमार के रास्ते युन्नान के ताई जातीय क्षेत्र में प्रविष्ट हुई। धीरे-धीरे यह एक स्थानीय जातीय रिवाज बना। ताई जातीय क्षेत्र में हीनयान बौद्ध धर्म के प्रभाव के विस्तार के कारण, पानी-छपाका की प्रथा लोगों के बीच व्यापक रूप से लोकप्रिय होने लगी, और स्थानीय पौराणिक कथाओं के साथ इनका विलय हुआ, तब यह भव्य निश्चित महत्वपूर्ण त्योहार बन गया।
चीनी अल्पसंख्यक जातियों का पानी-छपाका त्योहार भारत में होली त्योहार से मिलता-जुलता है। दोनों नव वर्ष मनाने वाले त्योहार हैं और दोनों में पानी छिड़कने की परंपरा है।
पानी-छपाका त्योहार की उत्पत्ति के बारे में ताई जातीय लोगों में एक दंतकथा प्रचलित है। कहा जाता है कि बहुत समय पहले, ताई जातीय क्षेत्र पर एक अग्नि राक्षस शासन किया करता था। उसने अपनी शक्ति का अंधाधुंध उपयोग किया, जिससे हवा और बारिश नहीं हुई, फसलें नहीं उगीं और लोगों का जीवन बहुत दयनीय हो गया। अग्नि राक्षस ने सात युवतियों का अपहरण किया और उन्हें अपनी रखेल बनाया। ये सात युवतियां आम लोगों की पीड़ा के प्रति सहानुभूति रखती थीं और उन्होंने अग्नि राक्षस से छुटकारा पाने के लिए तरकीबों का इस्तेमाल किया। राक्षस को खत्म करने की प्रक्रिया के दौरान, सातों युवतियों ने बारी-बारी से राक्षस के सिर को गले लगाया, और अपने शरीर से गंदगी को वैकल्पिक अंतराल में तब तक धोया जब तक कि अग्नि राक्षस का सिर धूल में नहीं बदल गया। बाद में, ताई परिवार की सात युवतियों की वीर भावना को याद करने के लिए, हर साल अग्नि राक्षस को खत्म करने के दिन सभी लोग एक-दूसरे पर पानी छिड़क कर एक-दूसरे को आशीर्वाद देने लगे।
वहीं, भारत में होली की उत्पत्ति के बारे में कई दंतकथाएं प्रचलित हैं, उनमें से एक यह है। कहते हैं कि प्रचीन काल में हिरण्यकश्यप नामक एक क्रूर राजा था, लेकिन उसका बेटा प्रहलाद प्रजा से प्यार करता था और उसे उनका समर्थन प्राप्त था। राजकुमार प्रहलाद ने अपने पिता के क्रूर शासन पर असंतोष व्यक्त किया, इससे पिता गुस्से में था। लेकिन प्रहलाद बिलकुल भी उसकी बात मानने को तैयार नहीं था, ऐसे में होलिका (प्रहलाद की चाची) ने षड्यंत्र कर राजकुमार को आग में ले जाने की योजना बनायी। क्योंकि होलिका ने अग्निरोधक वस्त्र पहने थे, ऐसे में वह नहीं जल सकती थी, और वह अपनी बाहों में प्रहलाद को लेकर आग में कूद गयी, ताकि प्रहलाद आग में भस्म हो जाय। हालांकि, उम्मीदों के विपरीत, होलिका आग में जलकर राख हो गई, लेकिन भगवान विष्णु की सुरक्षा के कारण राजकुमार सुरक्षित और स्वस्थ बच गया। इसके बाद लोग बुराई पर अच्छाई की जीत और खुशी मनाने के लिए होली का त्योहार मनाने लगे। भारत में होली महोत्सव को पानी-छपाका त्योहार के रूप में भी जाना जाता है।
पानी-छपाका त्योहार ताई जाति की जल संस्कृति, संगीत और नृत्य संस्कृति, खाद्य संस्कृति, वस्त्र संस्कृति आदि पारंपरिक संस्कृतियों को पूरी तरह से प्रदर्शित करने के लिए एक व्यापक मंच है। यह ताई जाति के इतिहास का अध्ययन करने के लिए एक महत्वपूर्ण खिड़की भी है, जिसका उच्च शैक्षणिक मूल्य है। इसके साथ ही, त्योहार के दौरान चांगहा गायन, सफेद हाथी नृत्य जैसे कला प्रदर्शन से लोगों को कलात्मक आनंद मिल सकता है। 20 मई 2006 को, पानी-छपाका त्योहार को चीनी राष्ट्रीय गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासत सूची की पहली खेप में चुना गया।