कीव में गोलियों से घायल हुए छात्र हरजोत ने बताई आपबीती, बोले- हालत अब पहले से बेहतर

भारतीय छात्र हरजोत सिंह ने बताया कि उनके कंधे से धंस कर गोली सीने में चली गई थी। पांव की हड्डी भी टूटी हुई है। डॉक्टरों द्वारा सीने से गोली निकालने के बाद हरजोत ने अपनी मां से बात की। बताया, ‘वे लगातार रो रही हैं, आखिर मां जो हैं।’

Update: 2022-03-05 01:02 GMT

भारतीय छात्र हरजोत सिंह ने बताया कि उनके कंधे से धंस कर गोली सीने में चली गई थी। पांव की हड्डी भी टूटी हुई है। डॉक्टरों द्वारा सीने से गोली निकालने के बाद हरजोत ने अपनी मां से बात की। बताया, 'वे लगातार रो रही हैं, आखिर मां जो हैं।'

छतरपुर दिल्ली के रहने वाले हरजोत ने यह भी कहा कि अभी उनके जैसे कई लोग कीव में फंसे हैं, जिन्हें समय पर बचाने की जरूरत है। वे खुद भी काफी समय से भारतीय दूतावास के अधिकारियों से बात करने व बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे। उन्हें लगता था कि लवीव पहुंचने के लिए कोई साधन हासिल कर लेंगे। लेकिन बात नहीं बनी।

घरों में बंद हैं कई भारतीय, उन्हें बचाएं

हरजोत ने कहा, कीव में कई भारतीय खुद को घरों में बंद किए बैठे हैं। उन्हें पता नहीं है कि कैसे-कैसे खतरे उन पर आ सकते हैं। उन तक मदद पहुंचाने की जरूरत है। लोगों को वास्तविक हालात पता होने चाहिए।

सिर्फ दिलासे दिए गए, सुविधा नहीं खुद निकल गए, भारतीय पीछे छोड़े

हरजोत के अनुसार, भारतीय दूतावास के अधिकारियों ने दिलासे ही दिए। कई बार मांगने पर भी कोई सुविधा नहीं दे पाए। उन्हें भारतीयों को निकालने के बाद कीव से जाना चाहिए था, इसके बजाय वे खुद निकल गए।

यूक्रेन में बसे शरणार्थियों का पीछा नहीं छोड़ रहा उनका भयावह अतीत

नूरेम्बर्ग (जर्मनी)। सीरिया, यमन और अफगानिस्तान जैसे देशों से आकर यूक्रेन में बसे शरणार्थियों को वर्तमान में भयावह अतीत जैसी स्थितियों का ही सामना करना पड़ रहा है। इनमें काफी लोग ऐसे हैं, जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों से लगातार जंग-संघर्ष देखे हैं और महज कुछ वर्षों में तीन-तीन दफा शरण लेनी पड़ी है।

सीरिया से लेबनान, यूक्रेन और अब यूरोप

24 वर्षीय सीरियाई छात्र ओरवा स्तैफ एक ऐसे ही शरणार्थी हैं, जो 2013 में अपने देश में छिड़ी जंग के बाद यूक्रेन आए थे। स्तैफ ने बताया, खारकीव में जब गोलाबारी-धमाकों और तबाही का मंजर दिखा, तो महसूस हुआ कि मैं फिर से नौ साल पुराने सीरिया में खड़ा हूं। राजधानी दमिश्क में पले-बढ़े ओरवा का कहना है कि उस दौरान वहां ऐसे ही हालात थे और मेरे लिए यह बुरे अतीत के फिर से ताजा हो जाने जैसा है।

भटकते-भटकते कटे हैं 10 साल

खारकीव में रह रहे स्तैफ रूसी हमलों से बचकर अन्य यूक्रेनियों के साथ पोलैंड पहुंचे हैं। उनका कहना है कि 2013 में तब मेरे परिवार को सीरिया छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था। जहां से मैं लेबनान चला गया था। 2019 में खराब सुरक्षा-आर्थिक स्थिति के कारण फरवरी 2020 में यूक्रेन आना पड़ा। एक तरह से जिंदगी दस वर्षों से एक सीमा से दूसरी सीमा में भटकते हुए ही कटी है।

शमीरी का कहना है, मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि यूरोप में भी ऐसे हालात हो सकते हैं। यूक्रेन से भागते वक्त मिसाइल और धमाकों की आवाज वैसी ही थी, जैसी वर्षों तक मैंने यमन में सुनी। दरअसल, यमन में 2015 से ईरान समर्थित हूती विद्रोही सऊदी नेतृत्व वाले गठबंधन से लड़ रहे हैं।

अफगानिस्तान में तालिबान शासन की वापसी के बाद भागकर आईं मसाउमा ताजिक छह माह से यूक्रेन में रह रही हैं। रूसी हमलों से बचकर उन्होंने चर्च में शरण ली। फिर वॉलेंटियरों की मदद से पोलैंड पहुंची।

ताजिक का कहना है कि भले यूक्रेन छोड़कर भागना पड़ा, लेकिन पड़ोसी देशों में उनका अच्छा स्वागत हुआ है, जबकि अफगानिस्तान से हम ईरान, उज्बेकिस्तान या पाकिस्तान जाने की सोच भी नहीं सकते थे।

20 घंटे पैदल चलकर पहुंचे पोलैंड

अफगानिस्तान में तालिबान शासन की वापसी के बाद भागकर आईं मसाउमा ताजिक छह माह से यूक्रेन में रह रही हैं। रूसी हमलों से बचकर उन्होंने चर्च में शरण ली। फिर वॉलेंटियरों की मदद से पोलैंड पहुंची।

ताजिक का कहना है कि भले यूक्रेन छोड़कर भागना पड़ा, लेकिन पड़ोसी देशों में उनका अच्छा स्वागत हुआ है, जबकि अफगानिस्तान से हम ईरान, उज्बेकिस्तान या पाकिस्तान जाने की सोच भी नहीं सकते थे।


Tags:    

Similar News