2050 तक ग्लोबल वार्मिंग की दर को आधा किया, कार्बन डाइआक्साइड पर अंकुश से नहीं बनेगी बात

पर्याप्त उपाय करने से 1.5 डिग्री सेल्सियस के निशान से नीचे रहने की संभावनाओं में सुधार हो सकता है।

Update: 2022-06-10 06:33 GMT

वर्तमान में ग्लोबल वार्मिंग पर रोकथाम के लिए कार्बन डाइआक्साइड को जिम्मेदार माना जाता है। इसलिए पूरी दुनिया की सरकारें पूरा जोर इस बात पर लगा रही हैं कि कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन को कैसे कम किया जाए। लेकिन हाल ही में किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया है कि यदि ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से निपटना है, तो सिर्फ कार्बन डाइआक्साइड पर रोकथाम से बात नहीं बनेगी। इस अध्ययन में कहा गया है कि यदि कार्बन डाइआक्साइड के साथ ही मिथेन और जलवायु को प्रदुषित करने वाले अन्य कारणों के रोकथाम पर भी काम किया जाता है तो 2050 तक ग्लोबल वार्मिंग की दर को आधा किया जा सकता है और दुनिया को इस समस्या से लड़ने का मौका मिल सकता है।

प्रोसीडिंग्स आफ नेशनल एकेडमी आफ साइंसेज में दिखाई देने वाले अध्ययन से पता चला है कि तामपान को दो डिग्री सेल्सियस से बढ़ने से रोकने के लिए सिर्फ कार्बन डाइआक्साइड पर अंकुश लगाना ही पर्याप्त नहीं है। इसमें कहा गया है कि निकट भविष्य में ग्लोबल वार्मिंग को कम करने, लगातार बढ़ती गर्मी, सूखा, सुपरस्ट्रोम, आग और अल्पकालिक जलवायु प्रदूषकों को भी कम करने की जरूरत है। ड्यूक विश्वविघालय में पृथ्वी विज्ञान के प्रोफेसर डू शिंदेल ने कहा, हमारे जयवायु परिवर्तन के दीर्घकालीन लक्ष्यों में कार्बन डाइआक्साइड को कम करना महत्वपूर्ण है लेकिन सिर्फ यही काफी नहीं है।
हमारे अध्ययन ने दिखाया है कि मिथेन, नाइट्रस आक्साइड, ब्लैक कार्बन, निम्न स्तर के ओजोन वातावरण को दूषित करने और ग्लोबल वार्मिंग में उतनी ही अहम भूमिका निभाते हैं, जितना की कार्बन डाइआक्साइड। हालांकि इनमें से कार्बन डाइआक्साइड लंबे समय तक कायम रहता है। शिंदेल ने कहा हालांकि ज्यादातर प्रदूषण वाले तत्व कम समय के लिए वातावरण में रहते हैं इसलिए उनपर रोकथाम से अन्य किसी भी रणनीति के मुकाबले तेजी से वार्मिंग पर रोकथाम लगेगी।
जलवायु परिवर्तन पर हालिया अंतर सरकारी पैनल (आइपीसीसी) की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि ऊर्जा प्रणाली को डीकार्बनडाइज करने और स्वच्छ ऊर्जा को स्थानातंरित करने से तापमान कुछ समय के लिए बढ़ सकता है क्योंकि कार्बन डाइआक्साइड के अलावा जीवाश्म ईधन उत्सर्जन में सल्फेट एरोसोल होते हैं, जो बहुत कम समय के लिए कार्य करते है और इनके विलुप्त होने से पहले यह वातावरण को ठंडा करने का काम करते हैं।
वहीं, नए अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला है कि विशेष रूप से जीवाश्म ईधन उत्सर्जन को कम करने पर ध्यान देने का परिणाम निकट भविष्य में कमजोर वर्मिंग हो सकता है। इससे 2035 तक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस और 2050 तक दो डिग्री सेल्सियस की सीमा से अधिक हो सकता है। वहीं, अध्ययन में यह भी कहा गया है कि यदि कार्बन डाइआक्साइड के अलावा वायु को प्रदुषित करने वाले अन्य कारकों पर भी एकसाथ रोकथाम के पर्याप्त उपाय करने से 1.5 डिग्री सेल्सियस के निशान से नीचे रहने की संभावनाओं में सुधार हो सकता है।

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