कोरोना से ठीक होने के बाद भी नहीं टला है खतरा, अब कुछ मरीजों को हो रही है ये 'अजीब' बीमारी
मरीजों में ये लक्षण भी देखने को मिले
कोरोनावायरस (Coronavirus) से ठीक होने वाले हर तीन में एक मरीज को छह महीने के भीतर दिमागी या मनोरोग बीमारी (Psychiatric disorder) से जूझना पड़ा है. 2,30,000 मरीजों को लेकर किए गए एक अध्ययन में इसका खुलासा हुआ है. अध्ययन में शामिल अधिकतर मरीज अमेरिकी नागरिक थे. वैज्ञानिकों का कहना है कि महामारी की वजह से मरीजों को मानसिक और न्यूरोलॉजिकल संबंधी समस्याएं (Mental and Neurological problems) हो सकती हैं.
विश्लेषण करने वाले शोधकर्ताओं ने कहा कि अभी ये स्पष्ट नहीं है कि वायरस मनोरोग स्थितियों जैसे की चिंता और डिप्रेशन से कैसे जुड़ा हुआ है. लेकिन ये उन 14 बीमारियों में सबसे आम बीमारियां थीं, जो मरीजों में देखने को मिली. शोधकर्ताओं ने कहा कि स्ट्रोक, डिमेंशिया और न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर जैसे पोस्ट कोविड मामले बेहद ही दुर्लभ थे. लेकिन ये कोरोना से गंभीर रूप से पीड़ित मरीजों के लिए खासतौर पर महत्वपूर्ण थे.
मरीजों में मानसिक बीमारी को लेकर विशेषज्ञ चिंतित
इस अध्ययन का सह-नेतृत्व करने वाले ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में मनोचिकित्सा के एक प्रोफेसर पॉल हैरिसन ने कहा कि अधिकांश डिसऑर्डर के लिए व्यक्तिगत जोखिम कम है, लेकिन पूरी आबादी पर इसका प्रभाव बहुत अधिक हो सकता है. कोविड-19 से रिकवर होने वाले लोगों में दिमागी और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों के उच्च जोखिम के सबूत मिलने से स्वास्थ्य विशेषज्ञ चिंतित हैं.
34 फीसदी कोरोना रिकवर मरीजों में मनोरोग बीमारी के लक्षण
लांसेट साइकाइट्री जर्नल में प्रकाशित नए अध्ययन में 2,36,379 मरीजों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड का विश्लेषण किया गया है. इसमें से 34 फीसदी मरीजों में छह महीने के भीतर न्यूरोलॉजिकल या मनोरोग संबंधी बीमारी देखने को मिली. वैज्ञानिकों ने कहा कि फ्लू और अन्य सांस संबंधी बीमारियों से ठीक होने वाले मरीजों की तुलना में कोविड-19 रिकवर मरीजों में डिसऑर्डर ज्यादा महत्वपूर्ण रूप से देखने को मिला. इससे इस बात की ओर इशारा मिला कि कोरोना का मरीजों पर अधिक प्रभाव है.
मरीजों में ये लक्षण भी देखने को मिले
अध्ययन में कहा गया है कि चिंता 17 फीसदी और मूड डिसऑर्डर 14 फीसदी सबसे आम लक्षण थे. कोरोना से गंभीर रूप से संक्रमित होने के बाद आईसीयू में भर्ती सात फीसदी मरीजों में छह महीने के भीतर स्ट्रोक का खतरा देखने को मिला. वहीं, आईसीयू में भर्ती रहे दो फीसदी मरीजों में डिमेंशिया के लक्षण भी देखने को मिले. स्वतंत्र विशेषज्ञों का कहना है कि ये नतीजे डराने वाले और चिंताजनक हैं.