फ्रांस में फिर चलेगी धरती की महामशीन, 'लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर' से गॉड पार्टिकल की खोज में जुटे हैं वैज्ञानिक

करीब 15 अरब वर्ष पूर्व हुए बिग बैंग (एक बिंदु पर सिमटे भौतिक पार्टिकल व ऊर्जा का फैलाव) के बाद गॉड पार्टिकल कहे जाने वाले हिग्स बोसॉन की खोज फिर से शुरू होने जा रही है।

Update: 2022-07-06 00:43 GMT

करीब 15 अरब वर्ष पूर्व हुए बिग बैंग (एक बिंदु पर सिमटे भौतिक पार्टिकल व ऊर्जा का फैलाव) के बाद गॉड पार्टिकल कहे जाने वाले हिग्स बोसॉन की खोज फिर से शुरू होने जा रही है। यूरोपीय परमाणु संस्था 'सर्न' के मुताबिक, 4 वर्ष बाद इसे फिर शुरू कर 13.6 ट्रिल्यन इलेक्ट्रोनवोल्ट की ऊर्जा निकाली जाएगी।

हिग्स बोसॉन सिद्धांत की खोज 10 वर्ष पूर्व 4 जुलाई 2012 को एडविन हबल नामक वैज्ञानिक ने की थी। अब इस गॉड पार्टिकल की खोज के लिए यह महामशीन 'लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर' दोबारा काम करेगी। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस प्रयोग से ब्रह्मांड के काम करने का तरीका और उससे जुड़े कई रहस्य सामने आ सकेंगे। प्रयोग के दौरान प्रोटोन पर विपरीत दिशा से महामशीन दो बीम डालेगी। यह बीम एक 27 किमी लंबी रिंग पर डाली जाएगी जो फ्रांस व स्विटजरलैंड की सीमा पर धरती से 100 मीटर नीचे है।

प्रति सेकंड 1.6 अरब टक्कर

सर्न ने बताया, उसका लक्ष्य प्रोटॉन और प्रोटॉन के बीच प्रति सेकंड 1.6 अरब टक्कर कराना है। इस नई ऊर्जा की दर से वैज्ञानिक हिग्स बोसोन की अधिक बारीकी से जांच कर सकेंगे। इस टक्कर से निकले आंकड़ों का इस्तेमाल भविष्य मं डार्क मैटर, डार्क एनर्जी और ब्रह्मांड के अन्य मूलभूत रहस्यों की जांच में किया जाएगा।

बिग बैंग सिद्धांत का अध्ययन

वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने उस गॉड पार्टिकल को खोज लिया है, जिससे यूनिवर्स का ज्यादातर हिस्सा बना है। इस महामशीन को बनाने में 31 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो चुके हैं। नई खोज से वैज्ञानिकों को ब्लैक होल और बिग बैंग के सिद्धांत को समझने में काफी आसानी होगी।

क्या है बिग बैंग?

बिग बैंग उस सिद्धांत को कहा जाता है, जिसके मुताबिक करीब 15 अरब साल पहले सारे फिजिकल पार्टिकल और एनर्जी एक बिंदु में सिमटे हुए थे। फिर इस बिंदु ने फैलना शुरू किया। इसमें ब्रह्मांड के शुरुआती पार्टिकल्स सब तरफ फैल गए और एक-दूसरे से दूर भागने लगे। इन्हीं पार्टिकल से पृथ्वी और जीवन की उत्पत्ति हुई।

प्रयोग में भारतीय वैज्ञानिक भी शामिल

इस मशीन को बनाने में भारत ने भी पैसे दिए हैं और कई वैज्ञानिक इस प्रयोग से जुड़े हैं। इन्हीं में से एक नाम है सत्येंद्र नाथ बोस का जिनका नाम हिग्स बोसॉन नाम ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्स और सत्येंद्र नाथ बोस के नाम से ही लिया गया है। बोस ने एटम के क्षेत्र में अहम काम किया था।


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