Alzheimer's का खतरा कम कर सकता है डायबिटीज की दवा, शोध में किया गया है ये दावा
भूलने की बीमारी 'अल्जाइमर के खतरे को कम करने को लेकर एक नया अध्ययन किया गया है
वाशिंगटन, एएनआइ। भूलने की बीमारी 'अल्जाइमर (Alzheimer)' के खतरे को कम करने को लेकर एक नया अध्ययन किया गया है। इसका दावा है कि डायबिटीज की कुछ दवाओं के इस्तेमाल से इस बीमारी के खतरे को कम किया जा सकता है। शोधकर्ताओं के अनुसार, अध्ययन से पता चला है कि टाइप-2 डायबिटीज में ब्लड शुगर कम करने वाली कुछ खास दवाओं का सेवन करने वाले लोगों के मस्तिष्क में एमिलाइड कम पाया गया। यह एक प्रोटीन है, जो अल्जाइमर का बायोमार्कर है। इसका संबंध अल्जाइमर समेत कई बीमारियों के बढ़ने से है।
अमेरिकन एकेडमी आफ न्यूरोलाजी पत्रिका में अध्ययन के नतीजों को प्रकाशित किया गया है। अध्ययन के मुताबिक, डाइपेप्टिडाइल पेप्टिडेज-4 इंहिबिटर्स नामक इन दवाओं का इस्तेमाल करने वाले लोगों में याददाश्त में गिरावट भी कम पाई गई। इन दवाओं को ग्लिप्टिंस भी कहते हैं। टाइप-2 डायबिटीज से पीड़ितों का शरीर ब्लड शुगर को नियंत्रित नहीं कर पाता है। इन मरीजों में जब डायबिटीज की दूसरी दवाएं काम नहीं कर पाती हैं, तब इन दवाओं की सलाह दी जाती है। संतुलित आहार और एक्सरसाइज के साथ ये दवाएं ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद करती हैं।
दक्षिण कोरिया की योंसेई यूनिवर्सिटी कालेज आफ मेडिसिन के शोधकर्ता फिल ह्यू ली ने कहा, 'डायबिटीज पीड़ितों में अल्जाइमर बीमारी का खतरा अधिक पाया जाता है। उच्च स्तर पर ब्लड शुगर के कारण यह खतरा हो सकता है। यह बीमारी मस्तिष्क में एमिलाइड-बीटा के बनने से संबंधित है।' उन्होंने बताया, 'हमारे अध्ययन से यह साबित हुआ है कि डाइपेप्टिडाइल पेप्टिडेज-4 इंहिबिटर्स के इस्तेमाल से न सिर्फ ब्लड शुगर कम रहता है बल्कि मस्तिष्क में एमिलाइड भी कम होता है।'
अल्जाइमर एक तंत्रिका विकार या न्यूरोडिसआर्डर है। इससे नर्वस सिस्टम प्रभावित होता है, जिससे याददाश्त एवं अन्य महत्वपूर्ण मानसिक कार्यों को हानि पहुंचती है। यह डिमेंशिया (भूलने की बीमारी) का सबसे प्रमुख कारण होता है। इससे हमारी बौद्धिक क्षमता बहुत कम हो जाती है और शरीर में ऐसा परिवर्तन हमारी दैनिक जीवन के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।