डेनमार्क ने सीरियाई शरणार्थियों को अपने देश वापस लौटने को कहा
उन्होंने इसे एक गैर जिम्मेदार फैसला बताया।
डेनमार्क में वर्षों पूर्व सीरिया से बड़ी तादात में शरणार्थियों से कहा जा रहा है कि वे अपने देश वापस लौट जाएं क्योंकि सीरिया अब सुरक्षित है। जबकि सच्चाई यह है कि सीरिया के शरणार्थी अब स्थानीय समाज में पूरी तरह से घुलमिल चुके हैं। ऐसे में युवा शरणार्थियों को सबसे ज्यादा मुश्किलें आ रही हैं। डेनमार्क के इस रवैये के खिलाफ कई मानवाधिकार संगठन आवाज उठा रहे हैं।
आवासीय परमिटों का नवीनीकरण रोका, छात्रों को सर्वाधिक मुश्किलें
डेनमार्क एक यूरोपीय देश है जहां सीरियाई शरणार्थियों को मिली चेतावनी के बाद खलबली मची हुई है। निबोर्ग शहर में पढ़ाई पूरी कर चुके स्कूली बच्चों को भी जून के अंत तक अपने दोस्तों के साथ सीरिया लौटने को कहा गया है। इस बाबत बच्चों के माता-पिता को डेनमार्क के अधिकारियों की तरफ से ईमेल दिया गया है। ईमेल में लिखा है कि उनके आवासीय परमिट का नवीनीकरण नहीं किया जाएगा।
डेनमार्क के इस रवैये के खिलाफ सिर्फ डीआरसी और एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे मानवाधिकार संगठन ही नहीं हैं बल्कि वो वामपंथी पार्टियां भी इस कदम का विरोध कर रही हैं जो कि डेनमार्क की संसद में कभी-कभी प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन के नेतृत्व वाली सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की अल्पमत सरकार का सहयोग करती हैं। पार्टी प्रवक्ता क्रिस्टियान हेगार्ड ने कहा, छात्रों को निष्कासित करने का फैसला विवेकहीन है।
गैर जिम्मेदार फैसला
पिछली गर्मियों में, जब से डेनमार्क के अधिकारियों ने सीरिया की राजधानी दमिश्क को सुरक्षित घोषित किया है, तब से उस इलाके के हजारों सीरियाई शरणार्थियों के आवासीय परमिट रद्द कर दिए गए हैं या यूं कहें कि उनका नवीनीकरण नहीं किया गया है। डेनिश रिफ्यूजी काउंसिल की महासचिव चार्लोट स्लेंटे कहती हैं, युद्ध न तो खत्म हुआ है और न ही इसे भुलाया गया है। उन्होंने इसे एक गैर जिम्मेदार फैसला बताया।