कल रात ही भारत को हराया इसलिए...जीत के नशे में बहके पाकिस्‍तानी पीएम इमरान

वैश्विक मान्यता मिलना सबसे जरूरी है, जिसमें भारत की बड़ी भूमिका रहेगी।

Update: 2021-10-26 01:51 GMT

पाकिस्तान द्वारा पिछले कई वर्षों से तालिबान, हक्कानी नेटवर्क समेत विभिन्न आतंकी समूहों को लगातार सक्रिय समर्थन देने, वित्त पोषित करने और प्रशिक्षण देने के बावजूद फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई में विफल रहा है। यह इसी का प्रमाण है कि काली सूची में डालने के बजाय एफएटीएफ ने उसे 'ग्रे लिस्ट' में रखा है। जबकि पाकिस्तान इस ग्लोबल टेरर फाइनेंस वॉचडॉग द्वारा विगत जून में की गई सिफारिशों के अमल में धोखा करने के लिए जिम्मेदार है। अलबत्ता पाकिस्तान के लिए खुश होने का कोई कारण नहीं है, क्योंकि वह अब भी 'ग्रे लिस्ट' में शामिल है, जिसके चलते उसे 10 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय एजेंसियों से उसे वित्तीय सहायता नहीं मिल पाएगी।

यही नहीं, पाकिस्तान को दोहरा झटका लगा है, क्योंकि उसके करीबी सहयोगी तुर्की को भी माली के साथ 'ग्रे लिस्ट' में शामिल किया गया है। तुर्की को भारत के विरोधी के रूप में जाना जाता है, जो पाकिस्तान को काली सूची में शामिल करने से बचाने के लिए ईरान और उत्तर कोरिया के अलावा चीन के साथ खड़ा है। तुर्की विभिन्न मंचों पर कश्मीर का मुद्दा भी उठाता रहा है। वहां के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबोधन में कश्मीर मुद्दे का उल्लेख किया था। पिछले साल भी, एर्दोगन ने अपने पहले से रिकॉर्ड किए गए वीडियो बयान में जम्मू-कश्मीर का जिक्र किया था, जिसे भारत ने खारिज कर दिया था।
विश्लेषकों का मानना है कि 'ग्रे लिस्ट' में शामिल किए जाने पर तुर्की को नकारात्मकता का सामना करना पड़ेगा और उसके प्रति निवेशकों एवं कर्जदाताओं में विश्वास की कमी होगी, जो पाकिस्तान जैसे देशों में अपना पैसा लगाने से परहेज करते हैं। तुर्की पहले से ही आर्थिक संकट की चपेट में है, जिस कारण तुर्की के लीरा का अमेरिकी डॉलर के मुकाबले तेजी से अवमूल्यन हुआ है। चीन हमेशा ही इन दोनों दुष्ट राष्ट्रों के बचाव में आता रहा है, लेकिन इस बार वह विफल रहा। पाकिस्तान ने ग्रे लिस्ट में बनाए रखने के लिए एफएटीएफ पर भारत के दबाव का आरोप लगाया, जिसे एफएटीएफ ने नकार दिया है। लेकिन हमारे विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कश्मीर में निर्दोष लोगों को मारने वाले आतंकवादियों को पाकिस्तान के वित्तपोषण और समर्थन के बारे में सदस्य देशों को समझाने का श्रेय लिया है।
एफएटीएफ ने 19 से 21 अक्तूबर तक पेरिस में आयोजित तीन दिवसीय आभासी बैठकों के बाद अपना फैसला सुनाया। पाकिस्तान को जून, 2021 में 'ग्रे लिस्ट' में रखा गया था और आतंकी फंडिंग पर दूसरी कार्य योजना को अंजाम देने के लिए चार महीने की समय सीमा दी गई थी, जिसमें आतंकवादियों से संबंधित नए पहलू शामिल थे। इसकी दूसरी 'कार्य योजना' में आतंकी समूहों के नेताओं को दंडित करने के दावों की सत्यता को सत्यापित करने के लिए मौके का दौरा शामिल है।
नई कार्य योजना में पाकिस्तान के पारस्परिक कानूनी सहायता कानून में संशोधन कर अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रासंगिक प्रस्ताव के तहत आतंकवाद विरोधी सुझावों को लागू करने के लिए विदेशों से मदद मांगने सहित छह तत्व थे। विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान स्थित आतंकी समूहों के नेताओं को दंडित करने उपायों के बारे में एफएटीएफ और सदस्य देशों को धोखा देने की पाकिस्तान की रणनीति को उजागर करने में भारत ने काफी सक्रियता दिखाई, लेकिन उसका यह दांव कारगर साबित नहीं हुआ।
हालांकि, एफएटीएफ ने 32 में से 31 सिफारिशें लागू करने के लिए पाकिस्तान द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना की है, जबकि बाकी को फरवरी, 2022 में होने वाली अगली बैठक तक लागू करने की जरूरत है, और अंतिम निर्णय में कम से कम एक वर्ष लग सकता है, जो फरवरी और अक्तूबर, 2022 के पूर्ण सत्र के दौरान हो सकता है। साथ ही, एफएटीएफ ने पाकिस्तान को स्पष्ट रूप से कहा है कि पर्यवेक्षकों को साइट पर और ऑफ-साइट पर्यवेक्षण करने देना चाहिए, जो उचित प्रतिबंध लागू करने सहित नामित गैर-वित्तीय व्यवसायों और पेशों (डीएनएफबीपी) से जुड़े विशिष्ट जोखिमों के अनुरूप होना चाहिए।
विश्लेषकों का मानना है कि क्रॉस चेकिंग के बारे में एफएटीएफ के निर्देश पाकिस्तान को मुश्किल में डाल सकते हैं, क्योंकि उसने 2019 में दुनिया को धोखा दिया था, जब उसने गिरफ्तारियों और आतंकवाद विरोधी कानून बनाने की बात तो की थी, पर उसे जमीनी स्तर पर लागू नहीं किया था। उनका मानना है कि अमेरिका ने इस बार पाकिस्तान के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाने से परहेज किया, जिस कारण भारत का दांव भी बेकार गया। अमेरिका के इस रुख का कारण अफगानिस्तान मामले में पाकिस्तान से मदद मांगने की उसकी रणनीतिक मजबूरी हो सकती है।
एफएटीएफ तालिबान, हक्कानी नेटवर्क के आतंकवादियों आदि को शुरू से आज तक पनाह देने, वित्तपोषण करने और प्रशिक्षण देने के पाकिस्तान के खुले सहयोग के बावजूद, जो तालिबान की अंतरिम सरकार में इन आतंकी समूहों के नेताओं को शामिल कराने में आईएसआई द्वारा निभाई गई सक्रिय भूमिका से भी स्पष्ट हुआ, इस्लामाबाद को काली सूची में डालने में विफल रहा है। एफएटीएफ द्वारा सूचीबद्ध किए जाने के कारण वर्ष 2008 से 2019 तक पाकिस्तान को भारी नुकसान हुआ। इसके परिणामस्वरूप उसे कुल सकल घरेलू उत्पाद के मोर्चे पर 38 अरब डॉलर का घाटा हुआ। आतंकी समूहों को नियंत्रित करने के बारे में गंभीर न होने की कीमत वह वैश्विक राजनीति में चुका ही रहा है और अपनी अर्थव्यवस्था पर एफएटीएफ की ग्रे-लिस्टिंग का दुष्प्रभाव भी झेल रहा है।
विशेषज्ञ कहते हैं कि चीन का मुकाबला करने और अफगानिस्तान में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए अमेरिका को पाकिस्तान की जरूरत है। फिर चीन भी खुले तौर पर पाकिस्तान के बचाव में आया, ताकि एफएटीएफ को कोई भी कठोर कार्रवाई करने से रोका जा सके। ऐसे में, कश्मीर में पाक प्रायोजित आतंकवाद और हत्याओं पर शायद ही रोक लगे। हालांकि तालिबान ने फिलहाल इस मामले में पाकिस्तान की मदद से इन्कार किया है, क्योंकि उसके लिए वैश्विक मान्यता मिलना सबसे जरूरी है, जिसमें भारत की बड़ी भूमिका रहेगी।

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