चीन में तिब्बती और उइगरों का अब भी सांस्कृतिक उत्पीड़न जारी
चीन में राष्ट्रीय पहचान की तलाश और बीजिंग को वैश्विक भू-राजनीतिक रैंकिंग में शीर्ष पर रखने की कोशिश ने एक बुरा रूप ले लिया है।
चीन में राष्ट्रीय पहचान की तलाश और बीजिंग को वैश्विक भू-राजनीतिक रैंकिंग में शीर्ष पर रखने की कोशिश ने एक बुरा रूप ले लिया है। सिंगापुर पोस्ट के मुताबिक, इस प्रयास में चीन अब भी शिनजियांग के मुस्लिम अल्पसंख्यकों व तिब्बत में तिब्बतियों की संस्कृति और धार्मिक पहचान कुचलने में जुटा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि शिनजियांग में उइगरों के दमन का चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का बदसूरत चेहरा किसी से छिपा नहीं है। यहां भागने की कोशिश करने वालों को गोली मार देने जैसी नीतियां अपनाई जाती हैं। यहां तक कि आबादी को दबाने और बच्चों को परिवार से अलग करने के लिए महिलाओं पर नसबंदी भी लागी कर दी गई है, जो नरसंहार के समान है। यही नहीं, 1950 के दशक में चीन ने अवैध रूप से तिब्बत पर कब्जा करने के बाद से अब तक यहां की विशिष्ट पहचान और संस्कृति मिटाने की नीति का भी पालन किया है। चीन अब इन प्रांतों में मंदारिन भाषा थोपकर बच्चों को उनकी सांस्कृतिक विरासत से दूर करने में जुटा है।
चीनी विरोध के लिए इस्तांबुल में एकत्र हुए इस्लामी विद्वान
उइगर नरसंहार को सामने लाने व चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के विरोध के लिए एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन इस्तांबुल में हो रहा है। इसके लिए दुनियाभर से इस्लामी विद्वान और बुद्धिजीवी तुर्की पहुंचे हैं। सेंटर फॉर उइगर स्टडीज ने ट्वीट किया कि इन विद्वानों का मकसद शिनजियांग के अल्पसंख्यकों के लिए समर्थन जुटाना है। उसने बताया कि उइगर मुख्य रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यक तुर्क जातीय समूह है जिनकी उत्पत्ति मध्य-पूर्वी एशिया में हुई है। जबकि शिनजियांग में उनके साथ ज्यादती बरती जा रही है।