यही नहीं, जिन दुकानों पर यह स्कूली किताब उपलब्ध थी, वहां-वहां छापेमारी भी की गई। नोबेल शांति पुरस्कार हासिल कर चुकी मलाला यूसुफजई पूरी दुनिया में बेहद लोकप्रिय हैं, लेकिन उनकी आत्मकथा आई एम मलाला पर खैबर पख्तूनख्वा में प्रतिबंध है, जो कि उनका जन्मस्थान है। मलाला पाकिस्तान की यात्रा भी नहीं कर सकतीं, क्योंकि उनकी जान को खतरा है और अनेक लोगों और समूहों का यह मानना है कि वह एक पश्चिमी जासूस हैं और उन्होंने खुद पर हमला होने की झूठी खबर गढ़ी थी। मलाला न केवल अफगान तालिबान के सहयोगी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान की दुश्मन हैं, बल्कि अनेक पाकिस्तानी भी उनका घनघोर विरोध करते हैं।
लेकिन पाकिस्तान के लिए ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि अफगान तालिबान ने कंधार में स्थित स्पिन बोल्डक नाम की रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सीमा पर कब्जा कर लिया है। पश्तो में स्पिन बोल्डक का अर्थ है सफेद रेगिस्तान। स्पिन बोल्डक बलूचिस्तान में क्वेटा के पास चमन में मिल जाता है और आम तौर पर बहुत सारे अफगान और पाकिस्तानी इस फ्रेंडशिप गेट सीमा क्षेत्र का उपयोग रोजाना एक-दूसरे देश में जाने के लिए करते हैं। चमन स्थित पाक अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने अफगान तालिबान को अफगान झंडा हटाते और तालिबान अमीरात का सफेद झंडा फहराते देखा है।
पाकिस्तान ने फ्रेंडशिप गेट बंद कर दिया है और अब दोनों तरफ पाकिस्तानी और अफगान फंस गए हैं। पाकिस्तान ने तोरखम सीमा पर अपना गेट बंद करने की भी तैयारी कर ली है, जो दोनों देशों को जोड़ने वाले खैबर पख्तुनख्वा में एक और पाक-अफगान सीमा है। पाकिस्तान में आतंकवादियों को आने से रोकने के लिए लंबी सीमा पर कांटेदार तार भी लगाए हैं। लेकिन यदि गृहयुद्ध होता है और अफगान शरणार्थी पार करने लगते हैं, तो पाक सरकार तोरखम सीमा को बंद कर देगी। पाकिस्तान में पहले से ही 30 लाख से अधिक अफगान शरणार्थी हैं और सरकार ने घोषणा की है कि इस बार वे और अधिक शरणार्थियों को अंदर नहीं आने देंगे।
पिछले कुछ साल में दुनिया की लगभग सभी राजधानियों ने अफगान तालिबान के साथ संपर्क बनाया है और तालिबान के लोगों ने भी कई पश्चिमी देशों की राजधानियों का दौरा किया है, जैसा कि वे पाकिस्तान के विदेश कार्यालय की लगातार आधिकारिक यात्रा करते हैं। पर यह दिलचस्प है कि अफगानिस्तान में भारी निवेश करने वाले भारत ने अब तक अफगान तालिबान के साथ किसी आधिकारिक बैठक की घोषणा नहीं की है। जबकि अतीत में नई दिल्ली ने दो सेवानिवृत्त राजदूतों को पर्यवेक्षक के तौर पर अफगान तालिबान के साथ वार्ता में भाग लेने के लिए दोहा भेजा था।
नई दिल्ली में रणनीतिक मामलों पर सबसे प्रशंसित लेखकों में से एक हैं हैप्पीमॉन जैकब। भारत-पाक संबंधों पर उनके संतुलित और निष्पक्ष लेखन की पाकिस्तान में भी प्रशंसा की जाती है। वह उन कुछ भारतीयों में से एक हैं, जिन्हें पाक जनरलों के साथ बैठक और इंटरव्यू के लिए रावलपिंडी स्थित सैन्य मुख्यालय में आने की अनुमति दी गई। मैंने एक बार उनसे कहा कि मेरा घर सैन्य मुख्यालय के बहुत करीब है और अगर मुझे पता होता, तो एक कार भेज देती, ताकि वह आकर मेरे साथ एक कप चाय पी सकें। हैप्पीमॉन जैकब को अतीत में पाकिस्तान की ओर से नियंत्रण रेखा की यात्रा की अनुमति भी दी गई थी। वह कहते हैं कि तालिबान से बात करने की आवश्यकता पर भारतीय रणनीतिक समुदाय में बढ़ता एहसास संतोषप्रद है।
हैप्पीमोन जैकब का नजरिया सही है। हर कोई जानता है कि अफगान तालिबान एक मजबूत ताकत हैं और वे सरकार बनाने के लिए काबुल पर कब्जा करेंगे, चाहे सैन्य बल के जरिये हो या दोहा में होने वाली शांतिपूर्ण वार्ता के जरिये। जैकब कहते हैं कि 'तालिबान से बात न करना भारत की कश्मीर नीति के लिए बुरा होगा।' मोदी सरकार में अनेक लोग हैं, जिन्हें लगता है कि तालिबान को आधिकारिक मान्यता देने के बजाय उन्हें अफगानिस्तान के एक समूह के रूप में मान्यता देकर उनसे बात करने का समय आ गया है। जैकब कहते हैं कि 'अफगानिस्तान का हाल का घटनाक्रम भारत के लिए तालिबान के साथ जुड़ने का एक अवसर भी है, ताकि वह अपने रणनीतिक लाभ के लिए इसका इस्तेमाल कर सके और क्षेत्र की भू-राजनीति का फैसला करने की जिम्मेदारी अन्य देशों पर न छोड़े।'
अफगान तालिबान ने इंटरव्यू और बयानों में भारत के साथ भविष्य की वार्ता के बारे में सकारात्मक दृष्टिकोण दिया है। उन्होंने कहा है कि वे भविष्य में भारत के साथ किसी भी तरह के रिश्ते में पाकिस्तान से प्रभावित नहीं होंगे, क्योंकि दोनों ही स्वतंत्र देश हैं। जाहिर है, अफगान तालिबान के लिए भारत के साथ व्यापार का अत्यधिक महत्व है।