जलवायु को Montreal Protocol से हुआ था लाभ, वरना पृथ्वी का और अधिक होता तापमान
पृथ्वी का और अधिक होता तापमान
संयुक्त राष्ट्र (UN) के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑफ क्लाइमेंट चेंज (IPCC) ने इसी महीने अपनी एक रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन (Climate Change) को रोकने के लिए किए गए अब के प्रयासों को नाकाफी बताया गया है. लेकिन इस बीच एक शोध में पता चला है कि मोंट्रियल प्रोटोकॉल जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक बड़ी उम्मीद हो सकता है. इसके मुताबिक ओजोन परत के छेद को बड़ा होने से रोकने के लिए मोंट्रियल प्रोटोकॉल के तहत अगर कदम ना उठाए जाते तो आज दुनिया का तापमान लगभग एक डिग्री और ज्यादा होता.
क्या किया प्रोटोकॉल ने
मोंट्रियल प्रोटोकॉल जलवायु परिवर्तन क समस्या से निपटने मामले में एक उम्मीद बन कर उभरा है. वैसे तो इसका उद्देश्य ओजोन परत का क्षरण से बचाव था, लेकिन अध्ययन बताता है कि इसने पृथ्वी को 0.85 डिग्री सेल्सियस अतिरिक्त गर्म होने से भी बचाया है. रिपोर्ट के मुताबिक प्रोटोकॉल ने ओजोन क्षरण पदार्थों (ODS) को नियंत्रित करने के साथ ही पौधों और वायुमंडल से उनकी कार्बन खींचने की क्षमता की रक्षा की.
प्रोटोकॉल की जरूरत क्यों पड़ी
1980 के दशक में वैज्ञानिकों ने पाया कि वायु प्रदूषण के कारण पैदा हुए कुछ पदार्थ ओजोन परत की ओजोन को खत्म कर रहे हैं जिससे अंटार्कटिका के ऊपर इस परत में एक छेद हो गया है. इससे दुनिया भर के वैज्ञानिकों में चिंता फैल गई. ओजोन परत सूर्य से आनेवाली पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी की सतह तक पहुंचने से रोकती है. यह छेद सबसे पहले 1985 में देखा गया और इस छेद के लिए जिम्मेदार ग्रीनहाउस गैसों में क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) पदार्थ प्रमुख थे.
क्या है ये प्रोटोकॉल
इन पदार्थों के उत्पादन को नियंत्रित करने के लिए किए गया बहुस्तरीय पर्यावरण समझौता था जिसमें करीब सौ मानव जनित रसायनों के उत्पादन और उपयोग के नियमन करने का प्रावधान था, जिन्हें ओजोन क्षरण पदार्थ कहा जाता है. यह प्रस्ताव 15 सितंबर 1987 में संयुक्त राष्ट्र ने अपनाया था. यह संयुक्त राष्ट्र का पहला ऐसा समझौता था जो पृथ्वी के हर देश ने अपनाया था.
पहले नहीं दिया गया इस पर ध्यान
इसी प्रोटोकाल पर यह अध्ययन नेचर जर्लन में प्राकशित हुआ है जिसमें बताया गया है कि इस समझौते के जलवायु परिवर्तन को कम करने में लाभ हुए हैं क्योंकि ओजोन क्षरण पदार्थ सक्षम ग्रीनहाउस गैसें भी हैं. लैंचेस्टर यूनिवर्सिटी के क्लाइमेट साइंटिस्ट और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक पॉल यंग का कहना है कि इससे पहले हमने कभी ओजोन परत का कार्बन चक्र से संबंध पर ध्यान नहीं दिया.
ओजोन परत को बचाने के फायदे
मोंट्रियल प्रोटोकॉल का बड़ा फायदा पेड़ पौधों और प्रकाश संश्लेषण द्वारा उनकी कार्बन भंडारण क्षमता को भी हुआ था. शोधकर्ताओं पाया कि ओडीएस के नियंत्रण संबंधी जलवायु अनुमानों के तुलना में, अगर यह प्रोटोकॉल लागू ना होता तो, इस सदी के अंत तक पौधों और मिट्टियों में 325690 अरब टन की कार्बन नहीं जमा रह पाती।
और ज्यादा CO2 का जुड़ जाती
अध्ययन के अनुसार प्रोटोकॉल लागू ना होने पर 115235 पार्ट्स पर मिलियन की मात्रा की अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में जुड़ जाती और इससे वैश्विक औसत सतही तापमान में 0.501 डिग्री की वृद्धि हो जाती. इसके लिए शोधकर्ताओ ने मॉडल शृंखला का उपयोग किया जिससे उन्होंने आने वाली और बची हुई दुनिया की स्थितियां को सिम्यूलेट किया.
शोध में पाया गया कि अगर ओजोन का क्षरण 1970 के दशक की दर से जारी रहता तो 2050 तक परत बहुत क्षीण हो जाती और उसका छेद बहुत बड़ा हो जाता. इससे हानिकारक पराबैंगनी विकिरण में वृद्धि होती, पौधों को नुकसान होता और आज CO2 स्तर 30 प्रतिशत बढ़ जाता. भारत सरकार ने भी इसी महीने किगाली संशोधन को लागू करने पर सहमति दी है जो मोंट्रियल प्रोटोकॉल का हिस्सा है.