चीन के परीक्षण ने दुनिया में मचाया था तहलका, एक्सपर्ट क्यों बोले- डरने की जरूरत नहीं
चीन का यह परीक्षण अगर साबित हो जाता है तो इसे 1967 में अंतरिक्ष में परमाणु हथियारों को तैनात करने की संधि का उल्लंघन माना जा सकता है।
चीन ने अंतरिक्ष से धरती पर परमाणु हमला करने वाली हाइपरसोनिक मिसाइल का टेस्ट कर दुनिया में खलबली मचाई हुई है। अमेरिकी सेना के कई वरिष्ठ अधिकारियों ने भी इस मिसाइल की मारक क्षमता को लेकर डर जताया है। हालांकि, चीन ने तब सफाई देते हुए कहा था कि यह कोई मिसाइल नहीं बल्कि एक फिर से इस्तेमाल किए जाने वाले स्पेसक्राफ्ट का टेस्ट था। अब ब्रिटिश यूनिवर्सिटी से जुड़े दो एक्सपर्ट्स ने दावा किया है कि चीन का यह हथियार उतना भी शक्तिशाली नहीं है, जितना दावा किया जा रहा है।
चीन के परीक्षण ने दुनिया में मचाया था तहलका
पिछले महीने द फाइनेंशियल टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि चीन ने एक रॉकेट के ऊपर परमाणु हमला करने में सक्षम हाइपरसोनिक हथियार को टेस्ट किया था। खुफिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दूसरे परीक्षण में भी चीन ने 'हाइपरसोनिक ग्लाइड वीइकल' का इस्तेमाल किया। इसे चीन ने लॉन्ग मार्च रॉकेट से जुलाई में अंतरिक्ष में भेजा था। इस मिसाइल ने धरती का चक्कर लगाया और फिर तयशुदा स्थान पर ध्वनि की गुना ज्यादा रफ्तार से हमला किया। चीन ने माना है कि उसने एक परीक्षण किया है लेकिन उसका दावा है कि यह 'शांतिपूर्ण' सिविलियन स्पेसक्राफ्ट है।
चीन ने परमाणु हथियारों का बैलेंस नहीं बिगाड़ा
इंग्लैंड में लीसेस्टर विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लेक्चरर ब्लेडिन बोवेन ने कहा कि इस टेस्ट ने भी अभी तक अमेरिका और चीन के बीच परमाणु हथियारों के बैलेंस को प्रभावित नहीं किया है। बोवेन ने लीसेस्टर विश्वविद्यालय के अपने साथी रिसर्चर कैमरन हंटर के साथ चीन के हाइपरसोनिक मिसाइल टेस्ट का विश्लेषण कर एक रिसर्च पेपर भी लिखा है।
लक्ष्य की ओर बढ़ते समय हथियारों की स्पीड होगी धीमी
उन्होंने लिखा कि चीन ने अगस्त महीने में फ्रैक्शनल ऑर्बिटल बंबॉर्मेंट सिस्टम (FOBS) तकनीक का परीक्षण किया था। इससे हथियार की रफ्तार अंतरिक्ष में तो काफी तेज होगी, लेकिन अपने लक्ष्य की ओर जाते समय इसमें काफी कमी आ जाएगी। चीन का यह परीक्षण अगर साबित हो जाता है तो इसे 1967 में अंतरिक्ष में परमाणु हथियारों को तैनात करने की संधि का उल्लंघन माना जा सकता है।