बुरी तरह चिढ़ा चीन! जमीन और आसमान में घेरा, ताइवान यात्रा के साइड इफेक्ट्स जानें
नई दिल्ली: रूस-यूक्रेन में जंग से दुनिया पहले ही दो धड़ों में बंटी हुई थी और अब चीन-ताइवान के रिश्तों ने फिर से दुनिया को बांट दिया है. चीन की धमकी को दरकिनार कर अमेरिकी सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की स्पीकर नैंसी पेलोसी ताइवान पहुंच गई हैं. चीन ने अमेरिका को 'आग से न खेलने' की धमकी दी थी.
नैंसी पेलोसी जैसे ही ताइवान की राजधानी की ताइपे पहुंचीं, वैसे ही मंगलवार रात को चीन ने अमेरिकी राजदूत निकोलस बर्न्स को तलब किया और फिर से धमकाया. चीन के उप विदेश मंत्री झाई शेंग ने धमकाते हुए कहा कि अमेरिका अपनी गलती की कीमत चुकाएगा. शेंग ने ये भी कहा कि अमेरिका को 'ताइवान कार्ड' खेलना बंद कर देना चाहिए और चीन के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए.
शेंग ने कहा कि पेलोसी ने ताइवान का दौरा कर 'वन चाइना पॉलिसी' का उल्लंघन किया है. उन्होंने कहा कि ये बहुत खतरनाक कदम है और इसके गंभीर नतीजे होंगे. चीन चुपचाप नहीं बैठेगा. हालांकि, अमेरिका का कहना है कि वन चाइना पॉलिसी पर उसका रुख साफ है. अमेरिका के नेशनल सिक्योरिटी कोऑर्डिनेटर जॉन किर्बी ने कहा कि वन चाइना पॉलिसी में कोई बदलाव नहीं हुआ है और हम ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन नहीं करते हैं.
ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन की तनातनी ने दुनिया को फिर से दो धड़ों में बांट दिया है. नॉर्थ कोरिया और रूस ने चीन का समर्थन किया है. वहीं, पेलोसी का कहना है कि अमेरिका ताइवान के साथ खड़ा है. उन्होंने कहा कि अमेरिका ताइवान की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था का समर्थन करता है. अमेरिका ने ताइवान के साथ खड़े रहने का वादा किया था. पेलोसी ने ये भी कहा कि दुनिया को लोकतंत्र और निरंकुशता में से किसी एक को चुनना है.
चीन के समर्थन में अब तक दो देश खुलकर सामने आ चुके हैं. इनमें एक उत्तर कोरिया है और दूसरा रूस. दोनों ही देशों ने पेलोसी के दौरे को गलत बताया है और उनके दौरे को उकसाने वाला कदम बताया है.
न्यूज एजेंसी के मुताबिक, उत्तर कोरिया के विदेश मंत्रालय ने कहा कि वो ताइवान के मामले में किसी भी बाहरी देश के दखल की घोर निंदा करता है और चीन का पूरा समर्थन करता है.
उत्तर कोरिया ने ये भी कहा कि अगर कोई बाहर ताकत किसी देश के आंतरिक मामलों में खुलेआम दखल करता है, तो ये उसका अधिकार है कि वो अपनी संप्रभुता बचाने के लिए जवाबी कार्रवाई करे.
वहीं, रूस के विदेश मंत्रालय ने पेलोसी के दौरे को उकसावे वाला कदम बताया है. साथ ही ये भी चेतावनी दी है कि अमेरिका का ये कदम चीन के साथ टकराव बढ़ाएगा. उत्तर कोरिया की तरह ही रूस के विदेश मंत्रालय ने भी कहा कि चीन को अपनी संप्रभुता बचाने के लिए सही कदम उठाने का अधिकार है.
ताइवान के साथ अब तक खुले तौर पर अमेरिका ही खड़ा नजर आ रहा है. मई में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा भी था कि अगर ताइवान पर चीन का हमला होता है, तो अमेरिका उसकी सैन्य रूप से मदद करेगा.
अमेरिका के अलावा ब्रिटेन भी ताइवान के समर्थन में आता दिख रहा है. ब्रिटिश अखबार गार्जियन ने रिपोर्ट में दावा किया था कि नवंबर में ब्रिटिश सांसद ताइवान का दौरा कर सकते हैं. हालांकि, इस रिपोर्ट पर यूके में चीनी राजदूत झेंग जेगुआंग ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि ब्रिटेन ताइवान की संवेदनशीलता को कम नहीं आंकेगा और अमेरिका के नक्शेकदम पर नहीं चलेगा.
इसके अलावा ताइवान 1949 से खुद को आजाद मुल्क मान रहा है. लेकिन अभी तक दुनिया के 14 देशों ने ही उसे आजाद देश के तौर पर मान्यता दी है और उसके साथ डिप्लोमैटिक रिलेशन बनाए हैं.
ताइवान के विदेश मंत्रालय के मुताबिक, अब तक उसके मार्शल द्वीप, नौरू, पलाऊ, तुवालु, इस्वातिनी, होली सी, बेलिज, ग्वाटेमाला, हैती, होंडूरस, पराग्वे, फेडरेशन ऑफ सेंट क्रिस्टोफर एंड नेविस, सेंट लुशिया और सेंट विंसेंट एंड ग्रेनाडाइन्स के साथ डिप्लोमैटिक रिलेशन हैं.
रूस-यूक्रेन जंग में भारत का रुख तटस्थ रहा था. भारत ने न तो यूक्रेन का खुलकर समर्थन किया और न ही रूस का. भारत ने यही कहा कि जंग किसी समस्या का हल नहीं है और ये नहीं होना चाहिए.
अगर चीन और ताइवान के बीच भी जंग जैसे हालात बनते हैं, तो भारत तटस्थ रुख ही अपना सकता है. इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि भारत के ताइवान के साथ डिप्लोमैटिक रिलेशन नहीं है और वो वन चाइना पॉलिसी का समर्थन करता है. हालांकि, दिसंबर 2010 में चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ जब भारत दौरे पर आए थे, तब संयुक्त बयान में भारत ने वन चाइना पॉलिसी के समर्थन का जिक्र नहीं किया था.
हाल के कुछ सालों में चीन से तनाव के चलते भारत ने ताइवान से नजदीकियां भी बढ़ाई हैं. 2020 में 20 मई को बीजेपी ने अपने दो सांसदों मीनाक्षी लेखी और राहुल कासवान को ताइवान की राष्ट्रपति साइ इंग-वेन के शपथ ग्रहण समारोह में वर्चुअली जुड़ने को कहा था.