चीन ने बयान जारी कर हिंद महासागर मंच की बैठक में मालदीव के भाग नहीं लेने पर जताया अफसोस

Update: 2022-11-29 07:55 GMT

दिल्ली: चीन-हिंद महासागर क्षेत्र विकास सहयोग मंच की 21 नवंबर को हुई बैठक में मालदीव के शामिल नहीं होने से चीन खफा हो गया है। माले स्थित चीनी दूतावास ने बाकायदा बयान जारी अफसोस जताया है। चीन की मेजबानी में हुई इस बैठक में मालदीव के अलावा ऑस्ट्रेलिया ने भी शिरकत नहीं की। मालदीव का इसमें शामिल नहीं होना इसलिए भी अहम है कि वह चीन का बड़ा कर्जदार होने के बाद भी उसके दबाव में नहीं आया और इस बैठक में शामिल नहीं हुआ। माले स्थित चीनी दूतावास ने बयान में कहा कि यदि मालदीव इसमें शामिल होता तो उसे जलवायु परिवर्तन पर अपनी चिंताओं को दूर करने और 'ब्लू अर्थव्यवस्था' (blue economy) को बढ़ावा देने में मदद मिलती। ब्लू या नीली अर्थव्यवस्था से आशय समुद्री संसाधनों के आधार पर ऐसी आर्थिक गतिविधियां करना, जिनसे पर्यावरण को कोई नुकसान न पहुंचे है। मालदीव के सरकारी अधिकारियों को बैठक में निमंत्रण दिया गया था। अफसोस की बात है कि मालदीव सरकार के अधिकारियों ने इसमें भाग नहीं लिया।

मालदीव के विदेश मंत्रालय ने 21 नवंबर हुई 'चीन-हिंद महासागर क्षेत्र विकास सहयोग मंच' की बैठक में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था। मालदीव ने बयान जारी कर कहा था कि विदेश मंत्रालय स्पष्ट करना चाहता है कि मालदीव सरकार ने विकास सहयोग मंच की बैठक में भाग नहीं लिया और 15 नवंबर को ही चीन (पीआरसी) को अपने फैसले से अवगत करा दिया था।

श्रीलंका, पाकिस्तान, मालदीव चीन के बड़े कर्जदार: श्रीलंका, पाकिस्तान और मालदीव चीन के सबसे बड़े कर्जदारों में से हैं। फोर्ब्स के मुताबिक, चीना का पाकिस्तान पर 77.3 अरब डॉलर का बाहरी कर्ज बकाया है। मालदीवा का कुल कर्ज उसकी राष्ट्रीय आय (जीएनआई) का 31 फीसदी है।

ऑस्ट्रेलिया ने भी नहीं लिया था बैठक में हिस्सा: मालदीव के अलावा ऑस्ट्रेलिया ने भी चीन की मेजबानी में हुई बैठक में भाग नहीं लिया था। भारत में ऑस्ट्रेलिया के उच्चायुक्त बैरी ओ'फारेल ट्वीट कर यह जानकारी दी थी।

यून्नान के कुनमिंग में हुई थी बैठक: यह बैठक चीन के युन्नान प्रांत के कुनमिंग में हुई थी। यह 'साझा विकास: ब्लू इकोनॉमी के सिद्धांत और कार्यक्रम' विषय पर चीन अंतर्राष्ट्रीय विकास सहयोग एजेंसी (CIDCA) द्वारा आयोजित की गई थी। एजेंसी और युन्नान प्रांत की पीपुल्स सरकार ने वैश्विक महाशक्ति के तौर पर चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षा के बीच नीली अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए इसका आयोजन किया था।

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