BRI न सही तो नेपाल के साथ GSI लागू करने के लिए बेताब हैं चीन

Update: 2023-01-07 05:39 GMT

दिल्ली: नेपाल में शेर बहादुर देउबा की जब तक सरकार थी तब तक लोगों ने चैन की नींद सोई। चीन की चाल को सबसे अच्छे से परखने वाले नेपाल के नेता देउबा ही थे। लेकिन, राजनीतिक उठापठक के बीच उनकी सरकार गिर गई और चीन (China Nepal Relations) के सबसे तगड़े समर्थक केपी शर्मा ओली अपनी चाल में सक्सेस हो गये। केपी ओली की पार्टी और पुष्पकमल दाहाल प्रचंड की पार्टी ने हाथ मिलाते हुए प्रचंड ने प्रधानमंत्री की कुर्सी पर अपना कब्जा जमा दिया है। केपी शर्मा ओली भी परदे के पीछे अपनी भूमिका बखूबी निभा रहे हैं और इसका असर अब दिखने भी लगा है। नेपाल में नई सरकार बनते ही चीन (China Nepal Relations) बेहद खुश है और अपने काम पर लग गया है। नेपाल को श्रीलंका और पाकिस्तान से सिखना चाहिए कि चीन की कर्जा जाल में फंस कर उनका क्या हाल हुआ। लेकिन, केपी ओली को जनता से ज्यादा चीन की पड़ी है। चीन इस वक्त नेपाल (China Nepal Relations) को पूरी तरह से अपने गिरफ्त में लेना चाहता है। जिसके चलते उसने नेपाल के लिए बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत भारी मात्रा में निवेश करने का ऐलान किया है। जब तक देउबा थे तब तक BRI वाली जाल में नेपाल नहीं फंसा था। BRI को लेकर नेपाल का जो रुख था उसे देखते हुए ड्रैगन ने नई चाल चल दी है और वो है सुरक्षा।

नेपाल को जकड़ने वाली चीन ने चली चाल

बीजिंग ने नेपाल से अपनी दो रणनीतिक परियोजनाओं ग्लोबल डेवलपमेंट इनिशिएटिव (जीडीआई) और ग्लोबल सिक्योरिटी इनिशिएटिव (Global Security Initiative) को लागू करने के लिए समर्थन मांगा है। इसे लेकर नेपाल ने जवाब दिया है कि उनका देश किसी भी सुरक्षा गठबंधन में भाग नहीं ले सकता है और कहा कि चीनी प्रस्ताव का अध्ययन किया जा रहा है। चीन ने इन दोनों रणनीतिक परियोजनाओं में नेपाल को शामिल करने के लिए बीजिंग में नेपाली राजदूत बिष्णुपुकर श्रेष्ठ के साथ बैठक भी की। इस बैठक में चीन की तरफ से चीनी विदेश मंत्रालय के एशियाई मामलों के विभाग के महानिदेशक लियू जिनसॉन्ग शामिल हुए। चीनी विदेश मंत्रालय ने बताया कि इस बैठक में लियू ने कहा कि चीन काठमांडू में नई सरकार के साथ पारस्परिक रूप से लाभप्रद सहयोग को गहरा करने के लिए तत्पर है। BRI के साथ-साथ चीन GSI और GDI को गति देना चाहता है। जीडीआई के तहत कुछ कार्यक्रम काठमांडू में पहले ही लागू किए जा चुके हैं। इसके जवाब में नेपाली राजदूत बिष्णुपुकर श्रेष्ठ ने कहा कि उनकी सरकार अभी जीएसआई का अध्ययन कर रही है।

नई सरकार बनते ही नेपाल की सुरक्षा में चीन ने मार दी है सेंध, अब बच पाना मुश्किल

नए-नवेले प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल चीन के जीएसआई को लेकर सकारात्मक रुख दिखा चुके हैं। चीन की ये चाल कब्जे वाली लगती है। वैसे भी नेपाल की कई किलोमीटर तक चीन ने जमीनों को हड़प लिया है और वहां पर अपने सैनिकों की तैनाती कर दी। लेकिन, केपी ओली तो चीन को पूरा नेपाल देने की तैयारी में हैं। नेपाल के राजनेताओं और सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि नेपाल सरकार को इस पर सतर्क रहना चाहिए क्योंकि यह सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है। अगर नेपाल इस परियोजना में शामिल हो जाता है तो चीन की पकड़ काफी मजबूत हो जाएगी। वैसे ही प्रचंड के प्रधानमंत्री बनने के बाद से चीन की कूटनीतिक पहुंच नेपाल में काफी अंदर तक हो गई है। ऐसे में प्रचंड के पीएम बनते ही चीन ने अपने सबसे बड़ी चाल चल दी है। वो भी तब, जब प्रचंड ने संसद में अपनी सरकार का बहुमत तक साबित नहीं किया है। इससे पता चलता है कि चीन इस परियोजना को लेकर काफी उतावला है।

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