जलवायु के मुद्दे पर सरकार को अदालत में खींच रहे बच्चे...

जर्मनी में सुबह का समय था, जब अपनी मां के घर पर मौजूद लुइसा न्यूबॉर को अपने वकील का फोन आया।

Update: 2021-05-10 01:00 GMT

जर्मनी में सुबह का समय था, जब अपनी मां के घर पर मौजूद लुइसा न्यूबॉर को अपने वकील का फोन आया। फोन पर वकील ने जो कहा, उस पर लुइसा को एकबारगी यकीन नहीं हुआ। दरअसल पिछले साल जर्मन सरकार को पर्यावरण के मुद्दे पर अदालत में खींचने वाली 25 वर्षीय जलवायु कार्यकर्ता को मुकदमे में जीत मिल गई थी।

जर्मनी की सुप्रीम कोर्ट ने 29 अप्रैल को जलवायु परिवर्तन अधिनियम-2019 के कुछ प्रावधानों को असांविधानिक और मूल अधिकारों से तालमेल नहीं खाने वाले घोषित कर दिया था, क्योंकि ये कानून उत्सर्जन घटाने को लेकर विस्तृत ब्योरा पेश करने में विफल थे और आगामी जलवायु कार्रवाईयों को बोझ युवाओं के कंधों पर थोप रहे थे। अदालत ने सरकार को नए प्रावधान पेश करने का निर्देश दिया है।
लेकिन जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अपनी सरकार को अदालत में खींचने और जीत हासिल करने वाली लुइसा अकेली युवा नहीं है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की जनवरी की रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 से 2020 के बीच पूरे विश्व में जलवायु संबंधी मुकदमे दाखिल किए जाने की संख्या करीब दोगुनी हो गई है।
अहम बात ये है कि सरकारें इन मुकदमों में हारने लगी हैं। इनमें से ज्यादातर मुकदमे इसके इर्दगिर्द केंद्रित हैं कि आगामी पीढ़ियों को ऐसी दुनिया में जीने का अधिकार है, जो जलवायु संकट से पूरी तरह बरबाद नहीं हुई है।
लुइसा की जीत पेरिस में एक अदालत के फ्रांस को उत्सर्जन घटाने के लक्ष्य हासिल करने में विफलता के लिए कानूनन जिम्मेदार ठहराने के कुछ ही महीने बाद आई है। इससे पहले पिछले साल अक्तूबर में पुर्तगाल के छह युवाओं के ऐसे ही मुकदमे की यूरोपीय मानवाधिकार अदालत में फास्ट ट्रैक सुनवाई की गई थी।
इस मुकदमे में 33 देशों की सरकारों को वादी बनाया गया था, जो इन युवाओं की नजर में जलवायु संकट के खिलाफ कदम उठाने में विफल रही हैं। इन युवाओं की उम्र 9 साल से 22 साल के बीच थी और वे जलवायु संकट के प्रभाव से परिचित हो चुके थे।


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