फगानिस्‍तान में तालिबान की बनी केयरटेकर गवर्नमेंट के लिए चुनौतियां कम नहीं, हर मोर्चे पर है समस्‍या

इनका कहना था कि अफगानिस्‍तान की स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं तालिबान के आने के बाद बुरी तरह से चरमरा चुकी हैं।

Update: 2021-09-10 11:04 GMT

अफगानिस्‍तान में तालिबान की बनी केयरटेकर गवर्नमेंट के लिए चुनौतियां कम नहीं हुई हैं। वहीं अफगानिस्‍तान में लंबे समय से जारी मानवीय संकट भी उसके लिए एक बड़ी चुनौती है। न्‍यूयार्क टाइम्‍स की खबर में कहा गया है कि अफगानिस्‍तान में तालिबान की सरकार बने कुछ ही दिन हुए हैं और अफगानिस्‍तान का उसके पड़ोसी देशों के साथ तनाव भी शुरू हो गया है। इसमें पाकिस्‍तान सबसे पहले नंबर पर है। तालिबान को आंतरिक मुद्दों से भी दो-चार होना पड़ रहा है। अब उसके खिलाफ लगातार लोग सड़कों पर उतर रहे हैं। इसमें पत्रकार, महिलाएं, यूनिवर्सिटी छात्र और एक्टिविस्‍ट शामिल हैं। ये प्रदर्शन खासतौर पर तालिबान सरकार द्वारा लगाई जा रही विभिन्‍न पाबंदियों के खिलाफ हो रहे हैं।

दूसरी तरफ तालिबान अपनी पूरी क्षमता के साथ इन प्रदर्शनों को कुचलने के लिए काम कर रहा है। इसका जीता-जागता सुबूत पिछले दिनों दो पत्रकारों की हुई पिटाई है। ये पत्रकार काबुल में महिलाओं के प्रदर्शन को कवर कर रहे थे। तालिबानी आतंकियों ने इन्‍हें कई कौड़े मारे। ये तस्‍वीरें और खबरें लगातार तालिबान सरकार की कलई खोलने का काम कर रही हैं। एक अफगान पत्रकार का कहना है कि उसने तालिबानी आतंकियों से कहा कि वो एक पत्रकार है और अपना आईकार्ड भी उन्‍हें दिखाया। लेकिन उन्‍होंने उस पर ही प्रदर्शन का आयोजित कराने का आरोप लगा दिया था। वो उसको एक कमरे में ले गए और उसके हाथ बांध दिए और फिर केबल से उसकी पिटाई की।
न्‍यूयार्क टाइम्‍स की रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान काफी समय से आइसोलेट है और वो खुद भी लंबे समय से पाकिस्‍तान से लगती सीमा, जिस पर पाकिस्‍तान आर्मी लगातार आतंकियों की धरपकड़ कर रही है, की वजह से तनाव में है। तालिबान ने अपनी नई सरकार में किसी भी महिला को शामिल नहीं किया है, जबकि शुरुआत में वो कह रहा था कि उसको सरकार में महिलाओं की भागीदारी से कोई परहेज नहीं है। बल्कि वो उनका स्‍वागत करेगा। देश के दूसरे हिस्‍सों में भी महिलाएं लगातार तालिबान की सोच और उसकी कट्टरता के खिलाफ प्रदर्शन कर रही हैं।
9 सितंबर को जर्मनी के यूएस एयरबेस पर अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने पत्रकारों से वार्ता करते हुए कहा था कि तालिबान को अपनी सरकार में वहां के लोगों को शामिल करना चाहिए था, जो तालिबान के ट्रैक रिकार्ड से वाकिफ हैं। उन्‍होंने ये भी कहा कि विश्‍व के नेताओं को तालिबान पर कोई भरोसा नहीं है। उन्‍होंने ये भी कहा कि वो शब्‍दों में विश्‍वास नहीं रखते हैं बल्कि एक्‍शन पर भरोसा करते हैं। अफगानिस्‍तान के राइट ग्रुप ने भी विश्‍व को वहां पर मानवीय संकट को लेकर आगाह किया है।
इन ग्रुप्‍स का कहना है कि इसके समाधान के लिए विश्‍व को एक होना जरूरी है। कुछ दिन पहले ही ह्यूमन राइट्स वाच ने कहा था कि विदेशी दानकर्ताओं को अफगानिस्‍तान के हालातों को देखते हुए तुरंत फैसला लेना चाहिए, जिससे वहां के आम अफगान नागरिकों को मदद पहुंचाई जा सके। इनका कहना था कि अफगानिस्‍तान की स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं तालिबान के आने के बाद बुरी तरह से चरमरा चुकी हैं।


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