कनाडा प्रधानमंत्री जस्टिन त्रूदो पर भारी पड़ सकता है चुनाव, सत्ता से बाहर होने का खतरा मंडरा रहा
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन त्रूदो ने संसद में बहुमत हासिल करने के लिए मध्यावधि चुनाव कराने का जुआ खेला, लेकिन इन चुनावों में उन पर सत्ता से बाहर होने का खतरा मंडरा रहा है।
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन त्रूदो ने संसद में बहुमत हासिल करने के लिए मध्यावधि चुनाव कराने का जुआ खेला, लेकिन इन चुनावों में उन पर सत्ता से बाहर होने का खतरा मंडरा रहा है। चुनाव पूर्व सर्वेक्षण संकेत देते हैं कि त्रूदो की लिबरल पार्टी और प्रतिद्वंद्वी कंजर्वेटिव पार्टी के बीच कांटे की टक्कर है। लिबरल पार्टी के संसद में अधिकतम सीट जीत सकती है, लेकिन उसे बहुमत मिलने की उम्मीद कम है।
इन हालात में विपक्ष के सहयोग बिना लिबरल पार्टी का सत्ता में आना संभव नहीं होगा। टोरंटो विश्वविद्यालय में कनाडाई इतिहास और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर रॉबर्ट बोथवेल ने कहा, त्रूदो ने हालात पहचानने में मूर्खतापूर्ण भूल की है। उन्होंने एक ऐसी स्थिर अल्पसंख्यक सरकार के साथ चुनाव में प्रवेश किया, जिस पर अपदस्थ होने का खतरा नहीं था।
विपक्ष ने समय सीमा से दो साल पहले मध्यावधि चुनाव कराने को लेकर त्रूदो पर लगातार निशाना साधा है। त्रूदो के सामने एक सेवानिवृत्त सैन्य कर्मी, पूर्व वकील और नौ साल से सांसद एरिन ओ'टूले (47) की कड़ी चुनौती है। लिबरल नेताओं ने शुरुआत में कोविड-19 प्रबंधन को चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की, लेकिन अगस्त के अंत तक इस मामले पर लिबरल की बढ़त समाप्त होती नजर आई।
त्रूदो का भरोसा खतरनाक
त्रूदो ने समय पूर्व चुनाव कराने का फैसला इसलिए लिया क्योंकि उन्हें भरोसा था कि देश में कोरोना महामारी के दौरान जिस तरह से उनके नेतृत्व में टीकाकरण मुहिम चलाई गई उसका लाभ पार्टी को मिलेगा। लेकिन वैश्विक महामारी के बीच चुनाव कराने के उनके फैसले से त्रूदो की छवि को नुकसान पहुंचा है। अब चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों से भी स्पष्ट है कि त्रूदो का भरोसा खतरनाक साबित हो सकता है।
प्रचार के दौरान हुआ विरोध
त्रूदो ने भले ही टीका लगवाने की उनकी मुहिम को लोगों का समर्थन मिलने का आकलन किया हो लेकिन विपक्षी नेता ओ'टूले ने इसे लोगों का स्वास्थ्य संबंधी निजी फैसला बताया। उधर, देश में टीका लगवाने वालों की लगातार बढ़ रही संख्या की पृष्ठभूमि में टीका नहीं लगवाने वालों के प्रति आक्रोश भी बढ़ रहा है। अपने प्रचार के दौरान भी त्रूदो को कई बार विरोध का सामना करना पड़ा।