क्या सच में अफगानिस्तान में महिलाएं अपने पसंद के कपड़े पहनकर आजादी से घूम सकती थीं और पार्टी भी कर सकती थीं, जाने के लिए पढ़े पूरी खबर
अफगानिस्तान में इस समय हालात बेहद खराब हैं.
अफगानिस्तान में इस समय हालात बेहद खराब हैं. तालिबान ने अब देश पर कब्जा कर लिया है और संगठन के आतंकी काबुल स्थित संसद और राष्ट्रपति महल में रह रहे हैं. तालिबान को हमेशा से अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए बुरी खबर के तौर पर देखा जाता रहा है. अफगानिस्तान पर तालिबानी कब्जे के साथ सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरें वायरल होने लगी हैं जिसमें इस देश में भी महिलाओं के मिनी स्कर्ट या फिर वेस्टर्न आउटफिट पहनकर आजादी से घूमने की दावे किए जा रहे हैं. हर कोई जानना चाहता है कि क्या ये सभी तस्वीरें सच हैं और महिलाओं की आजादी की बातें इस देश में कितनी सही हैं? आइए आपको बताते हैं कि क्या थी 1970 के दशक में अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति.
अपनी पसंद के कपड़े पहनती थीं महिलाएं
जो फोटो इस समय सामने आ रही हैं वो 1970 के दशक की हैं. इनमें अफगान महिलाओं को मिनी स्कर्ट समेत कई वेस्टर्न कपड़ों में देखा जा सकता है. ये फोटो और ये सभी दावे एकदम सही हैं. अफगानिस्तान में जहां आज तालिबानी शासन की वजह से महिलाएं बुर्का पहनने पर मजबूर हैं, उसी देश में एक दौर ऐसा था जब महिलाओं को बराबर के हक मिले हुए थे. ये वो समय था जब इस देश में महिलाएं अपने पसंद के कपड़े पहनकर आजादी से घूम सकती थीं और पार्टी भी कर सकती थीं.
घर से बाहर थी जॉब की आजादी
सिर्फ 1970 ही नहीं बल्कि देश में महिलाओं को 1960 के दशक से ही आजादी मिलनी शुरू हो गई थी. तब वहां की सरकार ने महिलाओं के लिए समान अधिकार कायम किए थे. कुछ महिलाएं तो न सिर्फ विदेशी कपड़े तक पहन सकती थीं बल्कि कुछ को तो अकेले ट्रैवल करने, यूनिवर्सिटी जाने और यहां तक कि घर से बाहर जाकर काम करने का भी अधिकार मिला हुआ था. हीदर बार जो कि ह्यूमन राइट्स वॉच के साथ एक सीनियर रिसर्चर हैं उन्होंने भी इस बात पर एक इंटरव्यू के दौरान मोहर लगाई है. हालांकि उनका कहना है कि सभी जगहों पर महिलाओं को आजादी मिली हो, ऐसा नहीं है. ये आजादी सिर्फ शहरी और एलीट क्लास की महिलाओं के पास थी
लेकिन गांवों में हालात अलग थे
गांवों में रहने वाली जनता उस समय भी पिछले ख्यालों वाली थी. 60 के दशक में एक बहुत बड़ी अफगान आबादी गांवों में ही रहती थी. सरकार की तरफ से चलाए गए सुधार कार्यक्रमों के बावजूद परिवारों में पर्दा प्रथा की परंपरा जारी थी. इसकी वजह से महिलाओं के पुरुषों से संपर्क सीमित हो गए थे. गांवों में रहने वाली महिलाओं को सार्वजनिक तौर पर बुर्का पहनना पड़ता था. काबुल जैसे शहरों में उन्हें आजादी मिली हुई थी. हीदर बार के मुताबिक अलग-अलग लाइफस्टाइल के लोगों में सहने की क्षमता भी अलग-अलग थी.
2017 तक 40 फीसदी लड़कियां जाती थीं स्कूल
साल 1960 में अफगान सरकार ने एक नया संविधान बनाया और इसमें महिलाओं के अधिकारी सुरक्षित किए. साल 1970 में देश में कुछ पश्चिमी मान्यताओं को जगह मिलनी शुरू हुई थी. साल 1979 में जब सोवियत संघ ने अफगान सरकार को गिराया तो वहां से महिलाओं की स्थिति बिगड़नी शुरू हो गई. साल 1996 में तालिबान ने पहली बार देश पर शासन किया था. तालिबान ने देश में सख्त शरिया लॉ लागू कर दिया मगर साल 2001 में जब अमेरिकी फौजें दाखिल हुईं तो एक बार फिर महिला अधिकरों में बदलाव देखने को मिला. साल 2017 तक अफगान संसद में 28 फीसदी महिलाएं थीं और 40 फीसदी लड़कियां स्कूल जा रही थीं.