बाइडेन को जीत की बधाई देने से ये देश कर रहे हैं आनाकानी...जानें क्यों
किसी भी देश में सत्ता परिवर्तन होते ही विदेश नीति के समीकरण भी बदल जाते हैं.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बाइडेन की जीत का ऐलान होते ही दुनिया भर के नेताओं की तरफ से बधाई संदेश आए, लेकिन कुछ देश ऐसे भी हैं जिन्होंने अभी तक खामोशी अख्तियार की हुई है. इनमें से कई देशों के नेता डोनाल्ड ट्रंप के करीबी दोस्त भी हैं. ट्रंप ने कहा है कि वे चुनाव नतीजों को कोर्ट में चुनौती देंगे. हालांकि, उनकी कई अपीलें पहले ही खारिज कर दी गई हैं, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में कोई बड़ा फेरबदल होने की संभावना भी कम ही है.
ट्रंप की तरह कुछ देश भी उनकी हार को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं. मेक्सिको के राष्ट्रपति मैनुएल लोपेज ऑब्रेडर ने ट्रंप का साथ देते हुए कहा है कि जब तक कानूनी लड़ाई खत्म नहीं हो जाती है, तब तक वे बाइडेन को जीत की बधाई नहीं देंगे.
लोपेज ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा, जब तक चुनाव से जुड़ी सभी कानूनी समस्याएं खत्म नहीं हो जाती हैं, हम बधाई नहीं देंगे. हम अपनी तरफ से बहुत जल्दबाजी नहीं दिखाना चाहते हैं. उन्होंने आगे कहा कि उनके देश के बाइडेन और ट्रंप दोनों के ही साथ अच्छे संबंध रहे हैं. लोपेज ने ट्रंप की तारीफ करते हुए कहा कि हमारे प्रति उनका रवैया बहुत ही सम्मानजनक रहा है.
मेक्सिको के अलावा ट्रंप प्रशासन के साथ मधुर संबंध रखने वाले कई प्रमुख नेताओं ने बाइडेन की जीत को लेकर चुप्पी बरती है. इसमें रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोल्सानारो भी शामिल हैं. ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोल्सानारो को ट्रंप की कॉपी माना जाता है. दोनों की दक्षिणपंथी विचारधारा और अप्रत्याशित नजरिए की तुलना अक्सर होती रही है. चुनाव से पहले बोल्सानारो ने ट्रंप को अपना समर्थन दिया था. बाइडेन ने कहा था कि अगर एमेजॉन जंगलों में बर्बादी यूं ही जारी रहती है तो ब्राजील को आर्थिक नुकसान झेलने पड़ेंगे. बोल्सानारो ने इस टिप्पणी को खतरनाक बताया था.
चुनाव से पहले, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि रूस किसी भी अमेरिकी नेता के साथ काम करने के लिए तैयार है लेकिन बाइडेन की जीत के बाद अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. पुतिन पर साल 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में दखल देने और ट्रंप की जीत में मदद करने का आरोप लगा था. बाइडेन और उनकी पार्टी पुतिन से सहानुभूति रखने को लेकर ट्रंप पर हमलावर रहे हैं. जाहिर है कि बाइडेन रूस के खिलाफ ज्यादा आक्रामक और सख्त रवैया अपना सकते हैं. पिछले महीने ही बाइडेन ने रूस को अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया था.
जहां पुतिन बाइडेन की जीत को लेकर खामोश हैं, वहीं रूस के विपक्ष के नेता एल्केसी नावेलनी ने रविवार को बाइडेन को बधाई दे दी है. नावेलनी को हाल ही में जहर दिया गया था. रूस की संसद की विदेश मामलों की समिति के प्रमुख लियोनिद स्लत्स्की ने सरकारी मीडिया एजेंसी तास से बताया कि बाइडेन रूस के प्रति अमेरिकी की नीति में शायद ही कोई सकारात्मक बदलाव लाएंगे क्योंकि जब वो उप-राष्ट्रपति थे तो उन्होंने निजी तौर पर रूस के खिलाफ प्रतिबंधों की पैरवी की थी.
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दवान भी उन नेताओं में से एक हैं जिन्होंने बाइडेन को अभी तक जीत की बधाई नहीं दी है. तुर्की के विदेश मंत्रालय ने भी रविवार को अमेरिकी चुनाव का कोई जिक्र नहीं किया जबकि गिनी के राष्ट्रपति के विजेता को बधाई संदेश दिया. तुर्की को भी बाइडेन की जीत से काफी नुकसान होने वाला है. विश्लेषकों का कहना है कि बाइडेन तुर्की के विदेशों में लगातार जारी सैन्य हस्तक्षेप और रूस से उसकी बढ़ती करीबी के खिलाफ कड़ा रुख अपनाएंगे. हालांकि, तुर्की के उप-राष्ट्रपति फुआत ओक्ते ने रविवार को कहा कि बाइडेन की जीत से दोनों देशों के संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
चीन ने चुनाव से पहले ही कहा था कि वह दूसरे देशों के मामलों में शामिल नहीं होगा. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बाइडेन की जीत को लेकर सार्वजनिक रूप से कोई बयान जारी नहीं किया है. ट्रंप के कार्यकाल में चीन और अमेरिका के संबंधों में तनाव चरम पर पहुंच गया था. व्यापार, तकनीक, मानवाधिकार और कोरोना महामारी के मुद्दों को लेकर ट्रंप प्रशासन ने चीन के खिलाफ बेहद कड़ा रुख अपनाया. हालांकि, बाइडेन की जीत से भी चीन को बहुत राहत नहीं मिलने वाली है. बाइडेन ने कई बार संकेत दिए हैं कि चीन को लेकर उनकी सरकार भी सख्त रुख अपनाएगी. बाइडेन ट्रंप से एक कदम आगे बढ़ते हुए शी जिनपिंग को ठग तक कह चुके हैं.
बाइडेन के चुनावी कैंपेन ने शिनजियांग प्रांत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ चीन की कार्रवाई को नरसंहार करार दिया था. मानवाधिकार के मुद्दे पर बाइडेन प्रशासन चीन के खिलाफ कड़े कदम उठा सकता है. मार्च महीने में बाइडेन ने एक आर्टिकल में लिखा था, अमेरिका को चीन के खिलाफ और सख्त रुख अपनाने की जरूरत है. इस चुनौती से निपटने का सबसे असरदार तरीका ये है कि अमेरिका के सहयोगियों और दोस्तों का एक मोर्चा बनाया जाए और चीन की दादागीरी और मानवाधिकार उल्लंघन वाली गतिविधियों को रोका जाए. हालांकि, बाइडेन ने जलवायु परिवर्तन, परमाणु नि:शस्त्रीकरण और वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा जैसे साझा हित के मुद्दों पर चीन के साथ काम करने की भी बात कही थी.
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने बाइडेन की जीत के 24 घंटे से भी ज्यादा समय बीत जाने के बाद ही बधाई संदेश जारी किया. सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने रविवार को तंजानिया के राष्ट्रपति को दोबारा चुने जाने पर बधाई संदेश दिया लेकिन बाइडेन की जीत को लेकर कुछ नहीं कहा था. रविवार की शाम 7.30 बजे जाकर सऊदी किंग सलमान और क्राउन प्रिंस ने बाइडेन और कमला हैरिस को चुनाव जीतने की बधाइयां दीं.सऊदी की इस हिचकिचाहट की वजह साफ है. अमेरिका के पूर्व उप-राष्ट्रपति जो बाइडेन ने संकल्प लिया है कि वो सऊदी के साथ अमेरिका के संबंधों की समीक्षा करेंगे. बाइडेन ने वॉशिंगटन पोस्ट के पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या को लेकर सऊदी की जवाबदेही तय करने की बात कही है. ट्रंप ने यमन के युद्ध में सऊदी की मदद जारी रखी थी जबकि बाइडेन निश्चित तौर पर ये सहयोग रोक देंगे.
मानवाधिकारों को लेकर सऊदी की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब आलोचना होती रही है लेकिन ट्रंप अपने कार्यकाल के दौरान सऊदी के लिए सुरक्षा कवच बने रहे. यमन के युद्ध में सऊदी की भूमिका और महिला कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिए जाने को लेकर भी ट्रंप प्रशासन ने कभी कोई आपत्ति नहीं जताई. बाइडेन के आने के बाद इन मुद्दों पर सऊदी और अमेरिका के बीच टकराव देखने को मिल सकता है.