ब्रिटेन: 16.7 करोड़ साल पुराने खजाने में नजर आए एलियन की तरह जीवाश्म
धरती के प्राचीन इतिहास में ऐसे अनेक जीव रहे हैं जो विलुप्त हो गए और हमें उनके बारे में कभी पता नहीं चला
लंदन: धरती के प्राचीन इतिहास में ऐसे अनेक जीव रहे हैं जो विलुप्त हो गए और हमें उनके बारे में कभी पता नहीं चला। ब्रिटेन के कॉस्वल्ड्स क्षेत्र में ऐसा ही 'खजाना' के लाइमस्टोन क्वॉरी में मिला। पुरातत्वविदों को यहां जीवाश्म का भंडार मिला है। यहां दफन थे जुरासिक काल के समुद्री जीव जो आज एलियन जैसे लगने लगे हैं। यहां लाखों की संख्या में ऐसे जलीय जीव (invertebrate) मिले जिनकी रीढ़ की हड्डी नहीं होती।
16.7 करोड़ पहले की घटना
इनमें आज के स्टारफिश, सी क्यूकुंबर, सी अर्चन और सी लिलीज जैसे जीवों के पूर्वज शामिल हैं। रिसर्चर्स के मुताबिक किसी रहस्यमय आपदा के कारण ये पूरा जीवन एक साथ खत्म हो गया। माना जा रहा है कि करीब 16.7 करोड़ साल पहले भूकंप जैसी घटना के कारण भूस्खलन में ये जीव दफन हो गए और आज अपने जीवन के उसी चरण में इनके जीवाश्म संरक्षित पाए गए हैं।
खुद को बचाने की कोशिश
यह खोज जीवाश्म ढूंढने वाले नेविल होलिंगवर्थ और उनकी पत्नी सैली ने हाइक के दौरान की। पुरातत्वविद और लंदन के नैचरल हिस्ट्री म्यूजियम में सीनियर क्यूरेटर टिम एविन ने बीबीसी को बताया कि ये जीव खुद को बचाने की कोशिश कर रहे होंगे लेकिन सेडिमेंट के नीचे जिंदा दफन हो गए। किस घटना के कारण ऐसा हुआ, यह अभी नहीं पता है लेकिन रिसर्चर्स का कहना है कि अगर इस तरह मिट्टी के नीचे दबने की जगह ये सामान्य तरह से मरे होते तो इनके जीवाश्म नहीं मिल पाते।
डेलीमेल की खबर के मुताबिक सबसे पुराना जीवाश्म करीब 50 हजार साल पुराना है जो एक लेमिंग (चूहे जैसा जीव) का है। इस पूरे रिसर्च को वेक्टर स्टेट रिसर्च सेंटर ऑफ वॉरोलॉजी एंड बॉयोटेक्नालॉजी देख रही है। इस सेंटर की स्थापना कोल्ड वार के समय में सोवियत संघ के नेता लिओनिड ब्रेझनेव ने किया था। इस सेंटर का उद्देश्य उस समय जैविक हथियार बनाने के लिए शोध करना था। साइबेरिया के नोवोसिबिरक्स के पास स्थित यह रिसर्च सेंटर ही स्पूतनिक वी से टक्कर लेने के लिए दूसरी कोरोना वायरस वैक्सीन बना रहा है। रूसी वैज्ञानिकों ने दुनिया के सबसे ठंडे शहर याकुतस्क के मैमथ म्यूजियम से प्राचीन जीवाश्मों से 50 नमूने लिए हैं और इतना ही फिर लेने का अनुमान है। रूसी वैज्ञानिकों का यह शोध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चल रहे प्राचीन जीवों के क्लोन तैयार करने के अभियान से इतर है। सभी फोटो साभार साइबेरियन टाइम्स
रूसी रिसर्च सेंटर की वैज्ञानिक डॉक्टर ओलेस्या ओखलोपकोवा ने कहा कि हम palaeo-viruses निकालने का प्रयास कर रहे हैं ताकि रूस में अब palaeo वॉयरोलॉजी की शुरुआत की जा सके। हमारा उद्देश्य वायरस के विकास का अध्ययन करना है लेकिन विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इस तरह के प्राचीन वायरस पर शोध करने से रहस्यमय बीमारियों के संक्रमण का खतरा रहेगा। डॉक्टर ओलेस्या पशुओं के नरम ऊतकों के नमूने ले रही हैं। रूसी वैज्ञानिक ने कहा कि वह पूरे जिनोम सिक्वेंसिंग का पता लगाने का प्रयास करेंगी। इससे वैज्ञानिकों को सूक्ष्मजीवियों की विविधता के बारे में पता चलेगा। उन्होंने कहा, 'अगर न्यूक्लिक एसिड खराब नहीं हुआ होगा तो हम उनकी संरचना का डेटा हासिल कर सकेंगे और यह पता लगा सकेंगे कि कैसे यह बदला। रूसी वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि प्राग ऐतिहासिक जीवों के इस आंकड़े से उन्हें वर्तमान संक्रामक बीमारियों को समझने में मदद मिलेगी।
प्राग ऐतिहासिक काल में साइबेरिया में ऐसे घोड़े पाए जाते थे जो माइनस 50 डिग्री सेल्सियस में भी जिंदा रहते थे। रूसी म्यूजियम के वैज्ञानिक डॉक्टर सर्गेई फेदोरोव ने कहा कि मैमथ म्यूजियम का लंबे समय से वेक्टर शोध संस्थान से संबंध रहा है। उन्होंने कहा, 'हम आशा करते हैं कि palaeo वायरस का पता चलेगा और वायरस की दुनिया में कई रहस्य अभी सामने आने का इंतजार कर रहे हैं।' रूस के वेक्टर इंस्टीट्यूट ने एक समय में बड़े पैमाने पर चेचक के वायरस को बनाया था और उसके पास अभी भी इसका स्टॉक मौजूद है। वेक्टर संस्थान कथित रूप से Marburg को भी हथियार के रूप में बदल रहा है। यह संस्थान हाल के दिनों में प्लेग, इबोला, हेपटाइटिस बी, एचआईवी, सार्स और कैंसर की दवाओं को लेकर चल रहे प्रयासों में शामिल रहा है। इसी संस्थान ने रूस की दूसरी कोरोना वायरस वैक्सीन इपिवैककोरोना का निर्माण किया है।
पिछले दिनों दुनिया के रहने योग्य सबसे ठंडे स्थानों में शुमार रूस के साइबेरिया इलाके से बर्फ के बीच वूली गैंडे का विशाल अवशेष मिला था। वूली गैंडे का यह अवशेष याकूतिआन इलाके में पाया गया है जो हमेशा बर्फ से ढंका रहता है। गैंडे का यह अवशेष करीब 40 हजार साल पुराना है। साइबेरियन टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक रूसी वैज्ञानिकों ने इस वूली गैंडे के अवशेष को मीडिया के सामने पेश किया। करीब 40 हजार साल बीत जाने के बाद भी इस वूली गैंडे का 80 फीसदी ऑर्गैनिक मटिरियल अभी भी बना हुआ है। इसमें गैंडे के बाल, दांत, सींग और फैट अभी भी बने हुए हैं। इस गैंडे की खोज पिछले साल अगस्त महीने में याकूतिआन के निर्जन इलाके में बर्फ के पिघलने के दौरान हुई थी। याकूतिआ अकादम ऑफ साइंसेज के डॉक्टर गेन्नाडी बोइस्कोरोव ने कहा, 'यह किशोर वूली गैंडा करीब 236 सेंटीमीटर का है जो एक वयस्क गैंडे से करीब एक मीटर कम है।' वैज्ञानिकों का मानना है कि यह किशोर वूली गैंडा इंसानी शिकारियों से बचने के लिए भाग रहा था और इसी दौरान वह दलदल में फंस गया।
बदलाव का था दौर
यह साइट जुरासिक काल (20-14.5 करोड़ साल पहले) की है जब समुद्र में बदलाव का दौर था। आधे से ज्यादा जलीय जीव ट्राऐसिक काल के आखिर में विनाशकारी घटना में खत्म हो गए और इकाइनोडर्म्स पनपने लगे। इनके शरीर से पांच के सेट में बाहें निकली थीं जो पास से गुजरते शिकार को पकड़ लेती थीं। इनमें से स्टारफिश और सी क्यूकुंबर जैसे जीव नीचे तक चले जाते थे और सी लिलीज एक ही जगह पर रुककर शिकार का इंतजार करते थे।