ट्रंप की तरह हरकत करने लगे बोरिस जॉनसन, अल्पसंख्यकों के लिए मुश्किल बनाएंगे मतदान

ऐसा होना इक्के-दुक्के फर्जी मतदान की तुलना में कहीं ज्यादा बदतर होगा।’

Update: 2021-05-14 11:23 GMT

ब्रिटेन में प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की सरकार ने चुनाव कानून में ऐसे बदलाव की पहल की है, जिस पर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की छाप मानी जा रही है। जॉनसन सरकार चुनाव नियमों में वैसे परिवर्तन करना चाहती है, जैसा ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी 2020 के चुनाव में हार के बाद अपने बहुमत वाले राज्यों में लागू कर रही है। इसका खाका इस हफ्ते संसद में महारानी एलिजाबेथ ने अपने अभिभाषण में पेश किया। अभिभाषण सरकार की तरफ से लिखा गया भाषण होता है, जिसे महारानी पढ़ने की रस्म-अदायगी करती हैं।

मीडिया में प्रस्तावित परिवर्तनों पर अब चर्चा गरम है। महारानी ने अपने अभिभाषण में कहा कि चुनावों की साख सुनिश्चित करने के लिए एक नया कानून बनाया जाएगा। इसके लिए पेश होने वाले विधेयक कानून का नाम इलेक्टॉरल इंटीग्रिटी बिल यानी चुनाव साख विधेयक रखा गया है। सरकार की तरफ से कहा गया कि नए नियम डाक से होने वाले और प्रॉक्सी मतदान का संरक्षण करेंगे। साथ ही यह मतदाताओं को डराने-धमकाने की प्रवृत्ति पर रोक लगाएंगे। प्रॉक्सी मतदान उसे कहा जाता है, जब किसी वोटर की तरफ से अधिकृत कोई अन्य व्यक्ति उसका वोट डालता है। इसके अलावा नए कानून में प्रावधान होगा कि मतदान केंद्र पर वोट डालने के पहले मतदाता को अपना पहचान पत्र दिखाना होगा।
सरकार का कहना है कि ये कानून बनने से मतदाताओं का भरोसा बढ़ेगा और चुनावी धोखाधड़ी पर रोक लगेगी। लेकिन जानकारों का कहना है कि इस कानून को बनाने के लिए जिस तरह की धांधलियों का जिक्र किया गया है, वैसा होने की ब्रिटेन में दुर्लभ मिसालें ही हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपुल में राजनीति शास्त्र के रीडर स्टुअर्ट विल्क्स-हीग ने अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन से कहा कि ब्रिटेन में मतदान के दौरान कतार में खड़े लोगों को मुफ्त भोजन या नाश्ता उपलब्ध कराने के मामले होते रहे हैं। ब्रेग्जिट जनमत संग्रह के दौरान इसे बड़ा मुद्दा बनाया गया था। मुद्दा यह था कि भोजन के साथ मतदाताओं को राजनीतिक पर्चे भी दिए गए।
जानकारों के मुताबिक इनके अलावा गंभीर चुनावी धांधली के उदाहरण इक्के-दुक्के ही रहे हैं। वैसे अभी भी मतपत्र नष्ट करने, मतदाताओं को डराने-धमकाने या बोगस वोटिंग की शिकायत पुलिस के पास दर्ज कराई जा सकती है, जिनकी समीक्षा निर्वाचन आयोग करता है। बोरिस जॉनसन सरकार में स्वास्थ्य मंत्री मैट हैंकॉक के सामने जब टीवी चैनल स्काई न्यूज पर जब इस बारे में सवाल पूछे गए, तो उन्होंने ये स्वीकार किया कि पिछले आम चुनाव में ऐसी सिर्फ छह शिकायतें आई थीं। जबकि उस चुनाव में चार करोड़ 70 लाख मतदाता वोट देने के लिए अधिकृत थे।
तो ये सवाल उठा है कि आखिर बोरिस जॉनसन सरकार ये कानून क्यों बनाने जा रही है? जानकारों के मुताबिक इसका सीधा जवाब यह है कि इसके जरिए वह अपने कंजरवेटिव समर्थकों को ये पैगाम देना चाहती है कि वह उनकी मंशा के मुताबिक कुछ कर रही है। कंजरवेटिव समूहों में ये धारणा है कि ब्लैक और दूसरे आव्रजक समूह बोगस वोटिंग करने जैसे चुनावी अपराध करते हैं। विश्लेषकों का कहना है कि प्रस्तावित कानून से कंजरवेटिव समूहों में ये राय बनेगी कि जॉनसन सरकार ने अल्पसंख्यकों और आव्रजक समूहों को दंडित किया है।
आलोचकों का कहना है कि खुद संसद के आंकड़ों से ये संकेत मिलता है कि नए कानून का खराब असर नस्लीय अल्पसंख्यकों पर पड़ेगा। पिछले साल ड्राइविंग लाइसेंस के बारे में प्रकाशित हुई एक संसदीय रिपोर्ट में ये बताया गया था कि ब्रिटेन में 76 फीसदी बालिग लोगों के पास ये लाइसेंस है। लेकिन एशियाई मूल के 38 फीसदी, ब्लैक समुदाय के 48 फीसदी और मिश्रित नस्लीय समूहों के 31 फीसदी बालिग लोगों के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं है। दूसरे पहचान पत्र भी श्वेत समुदाय की तुलना में अल्पसंख्यकों के पास कम संख्या में हैं।
जानकारों ने कहा है कि इस कानून के जरिए जॉनसन राष्ट्रीय बहस को अपने मुद्दों पर केंद्रित करना चाहते हैँ। लेकिन उससे उनकी कंजरवेटिव पार्टी में भी मतभेद उभर रहे हैं। पूर्व कैबिनेट मंत्री डेविड डेविस ने कहा है- 'यह एक तरह का भेदभाव है। यह ऐसी समस्या का समाधान है, जो मौजूद ही नहीं है। ऐसा लगता है कि नए कानून के जरिए हजारों को ऐसे लोगों को मताधिकार से वंचित कर दिया जाएगा, जिनके पास दिखाने के लिए पहचान पत्र नहीं होगा। ऐसा होना इक्के-दुक्के फर्जी मतदान की तुलना में कहीं ज्यादा बदतर होगा।'


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