रक्तचाप की दवाइयां कोविड पर पूरी तरह बेअसर, वैज्ञानिकों ने जमा किए साक्ष्य
कोरोना के इलाज के लिए ब्लड प्रेशर की दवा कतई काम नहीं आती है। इसकी पुष्टि अब रिसर्च में भी हो गई है। रिपोर्ट में बीपी की दवा और कोरोना के संबंध को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। शोधकर्ताओं ने अध्ययन में हाई ब्लड प्रेशर या उच्च रक्तचाप के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा को कोविड-19 के इलाज में बेअसर पाया।
लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन, यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड और टीपीपी हाउस, ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने अलग-अलग रिसर्च के जरिए कोविड-19 के इलाज में इनकी प्रभावशीलता पर साक्ष्य जमा किए हैं। इससे यह जानने में मदद मिली है कि क्या बीपी की दवाओं का उपयोग कोविड मामलों के इलाज के लिए किया जा सकता है।
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित इस रिसर्च रिपोर्ट में से एक, भारत के डेटा पर आधारित है। इस रिसर्च में हाई ब्लड प्रेशर के इलाज के लिए इस्तेमाल होने वाली एंजियोटेंसिन रिसेप्टर ब्लॉकर्स (एआरबी) या टेल्मिसर्टन जैसी दवाएं शामिल हैं। वैज्ञानिकों ने इस रिसर्च रिपोर्ट में 787 मरीजों को शामिल किया।
इनमें भारत के 778 और ऑस्ट्रेलिया के 9 लोग शामिल थे। इन सभी की औसत आयु 49 वर्ष थी। इन्हें मई 2020 से नवंबर 2021 तक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इनमें से आधे मरीजों को एआरबी और अन्य को 28 दिनों तक प्लेसिबो दिया गया। एआरबी दवा टेल्मिसर्टन की शुरुआती खुराक का उपयोग सिर्फ भारत में किया गया जबकि एआरबी का इस्तेमाल ऑस्ट्रेलिया में इलाज करने वाले चिकित्सकों ने किया था।
इस रिसर्च में ये बात भी कही गई है कि इन विशेष दवाओं को इसलिए चुना गया क्योंकि ये उसी एंजियोटेंसिन प्रोटीन को रेगुलेट करने का काम करती हैं जिसका उपयोग कोरोना वायरस शरीर में प्रवेश करने के लिए करता है। लैब टेस्टिंग के दौरान कोरोना वायरस के गंभीर प्रभावों के खिलाफ इसमें संभावित सुरक्षा दिखायी दी थी। हालांकि, 14 दिनों के उपचार के बाद, शोधकर्ताओं ने दोनों समूहों के बीच बीमारी की गंभीरता में कोई खास अंतर नहीं पाया।
दूसरी रिसर्च में भी ऐसे ही परिणाम
दिसंबर 2021 और फरवरी 2022 के बीच इंग्लैंड में हुई दूसरी रिसर्च में भी शोधकर्ताओं को ऐसे ही नतीजे मिले। शोधकर्ताओं ने एंटीबॉडी उपचार की प्रभावशीलता की तुलना करने के लिए 52 वर्ष की औसत आयु वाले कोविड-19 वाले हाई रिस्क के वयस्कों में एंटी बॉडी ट्रीटमेंट के लिए दी जाने वाली सोट्रोविमैब और वायरस रोधी दवा मोलनुपिराविर को भी परखा। शोधकर्ताओं ने पाया कि उपचार के 28 दिनों के भीतर, जिन लोगों ने सोट्रोविमैब लिया, उनमें मोलनुपिराविर लेने वालों की तुलना में गंभीर कोविड-19 का जोखिम काफी कम (46 प्रतिशत) था।
शोधकर्ताओं का कहना है कि एक समय अवधि के भीतर दोनों दवाओं का असर निर्धारित किया गया और जब कोविड के नए वैरिएंट आ रहे थे तो सोट्रोविमैब की प्रभावशीलता का प्रमाण मिला। अध्ययन में कहा गया है कि उनका विश्लेषण उन नतीजों का भी समर्थन करता है कि जिनमें पूरी तरह से टीकाकृत रोगियों में सोट्रोविमैब फायदेमंद रहता है।
हालांकि इन दोनों रिसर्च की अपनी कुछ सीमाएं भी हैं। जैसे रिसर्च रिपोर्ट में माना गया है कि मरीजों की मिली जानकारी जैसे अस्पताल में भर्ती होने की अवधि, उनके भर्ती होने की वजह और मौत की वजह की जानकारी कुछ गलत भी हो सकती है।