वैज्ञानिक बहुत जल्द ऐसे स्टेम सेल का उपयोग करेंगे जिसकी बदौलत कटे-पिटे अंग खुद से जुड़ सकते हैं या नए पैदा हो सकते हैं. चोट या घाव जल्दी भर सकते हैं. ऑस्ट्रेलिया के साइंटिस्ट इस टेक्नोलॉजी के बेहद नजदीक पहुंच चुके हैं. उन्होंने एक ऐसा स्टेम सेल खोजा है जिसमें रीजेनेरेटिव एबिलिटी है. यानी किसी भी चीज को फिर से जीवित करना या उसे वापस उसकी पुरानी अवस्था में लाकर ठीक कर देना. यह भविष्य का स्मार्ट स्टेम सेल होगा.
साइंटिस्ट इसे अभी से स्मार्ट स्टेम सेल (Smart Stem Cell) कह रहे हैं. विज्ञान की भाषा में इसे मल्टीपोटेंट स्टेम सेल (Multipotent Stem Cell) कहा जा रहा है. या फिर iMS भी बुलाया जाता है. यह स्टेम सेल इंसानों के शरीर से आसानी से निकाला जा सकता है. यह इंसान के शरीर में मौजूद वसा यानी फैट को रीप्रोग्राम्ड वर्जन है. फैट का रीप्रोग्राम्ड वर्जन ही स्टेम सेल कहलाएगा.
इस स्टेम सेल की चूहों पर स्टडी की गई है, वहां पर इसकी सफलता ने साइंटिस्ट्स को रीजेनेरेटिव एबिलिटी वाले स्टेम सेल को लेकर उम्मीद जगाई है. यह स्टडी ऑनलाइन साइंस जर्नल साइंस एडवांस में प्रकाशित हुई है. इंसानों में प्रयोग करने से पहले साइंटिस्ट इस स्टेम सेल के कई और टेस्ट और रिसर्च करना चाहते हैं.
यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स (UNSW) में हीमैटोलॉजी के प्रोफेसर जॉन पिमांडा का कहना है कि आजतक किसी भी व्यक्ति ने ऐसे स्टेम सेल को विकसित नहीं किया है. यह अपने आसपास के वातावरण में मिल जाता है. साथ घायल या चोट खाए टिश्यू यानी ऊतकों को खुद जोड़ने में मदद करता है. ये ठीक वैसा ही है जैसे गिरगिट अपना रंग बदलता है और पूंछ कटने पर वापस नई पूंछ निकल आती है.
जॉन पिमांडा ने बताया कि अभी तक स्टेम सेल विज्ञान में किसी ने इस तरह का एडॉप्टिव स्टेम सेल विकसित नहीं किया है. जॉन ने बताया कि उन्होंने लैब में जो iMS सेल बनाया है वो ह्यूमन फैट सेल को एक कंपाउड मिक्स सो जोड़ा गया है. ताकि वह अपनी असली पहचान खो सके. इसके लिए साइलेंसिंग मार्क्स को खत्म किया गया है. साइलेंसिंग मार्क्स किसी भी सेल को अपनी पहचान खोने से रोकते हैं.
जॉन और उनकी टीम ने इंसानों के फैट सेल से बनाए गए iMS स्टेम सेल्स को चूहों में डाला. शुरुआत में ये चूहों पर कोई असर नहीं दिखा रहे थे. लेकिन जैसे ही चूहे को चोट लगी ये स्टेम सेल्स एक्टिव हो गए. अपने आसपास की कोशिकाओं और ऊतकों के हिसाब से ये विकसित होकर चोट वाली जगह को भरने लगे. भविष्य में ये स्टेम सेल्स मांसपेशियों, हड्डियों, कार्टिलेज या नसों में लगी चोट को ठीक करके वापस पुराने रूप में ले आएंगे.
इस स्टडी को करने वाले प्रमुख रिसर्चर अवनी येओला ने बताया कि इन स्टेम सेल्स से गिरगिट की तरह काम किया. अवनी येओला ने यह प्रोजेक्ट अपने पोस्ट डॉक्टोरल थीसिस के तौर पर UNSW में पूरा किया है. अवनी ने बताया कि कोशिकाओं को स्टेम सेल्स में बदलने की टेक्नोलॉजी पहले से मौजूद है लेकिन उनमें कुछ सीमाएं हैं. जैसे- जिस तरह का ऊतक बदलना है, उसी जगह का स्टेम सेल खोजना होगा. तब नए ऊतक तैयार हो पाएंगे. लेकिन ये किसी भी ऊतक के हिसाब से बदल जाता है.
अवनी ने बताया कि iMS स्टेम सेल्स ने किसी तरह का साइड इफेक्ट या अतिरिक्त टिश्यू ग्रोथ को नहीं दिखाया है. ये चूहों में मौजूद विभिन्न प्रकार के ऊतकों के हिसाब से खुद को परिवर्तित करने में सक्षम है. भविष्य में जिन इंसान को किसी चोट, घाव या अंग को विकसित करने की जरूरत होगी, हम उसके शरीर से फैट सेल निकाल iMS स्टेम सेल बनाएंगे फिर उसे इंसान के अंदर डाल देंगे. इससे उसका चोट भर जाएगा या नया अंग बन जाएगा. एकदम पुराने की तरह.
हर इंसान के अंदर मौजूद कोशिकाएं यानी सेल्स चाहे वह दिल का हो या दिमाग का, सबका एक ही DNA होता है. अलग-अलग कोशिकाओं का काम शरीर के अलग-अलग हिस्सों के अनुसार होता है. इसके लिए DNA के अलग-अलग हिस्से काम करते हैं. अगर शरीर में कोई बदलाव प्राकृतिक तरीके से होता है तो DNA के अलग-अलग हिस्से उसका विरोध नहीं करते, बल्कि उसे आसानी से स्वीकार्य कर लेते हैं.
प्रोफेसर जॉन पिमांडा ने बताया कि ये भविष्य की टेक्नोलॉजी है. हम इसे इंसानों के उपयोग के लिए पूरी तरह से सुरक्षित करना चाहते हैं. जैसे ही हम इसकी सुरक्षा को लेकर पुख्ता होंगे हम इंसानों पर इसका क्लीनिकल ट्रायल शुरू करेंगे. UNSW के सीनियर प्रोफेसर और इस स्टडी में शामिल डॉ. चंद्रकांथन ने कहा कि ये बेहतरीन तकनीक है भविष्य में इंसानों के अंगों को सुधारने और उन्हें नया करने की लेकिन इसे पूरी तरह से विकसित और उपयोग लायक होने में करीब 15 साल और लगेंगे.