बड़ा खुलासा: मंगल पर करोड़ों साल तक होती रही एस्टेरॉयड की बारिश

एस्टेरॉयड की बारिश

Update: 2022-01-27 07:31 GMT
मंगल ग्रह को लेकर दुनियाभर के वैज्ञानिक लगातार रिसर्च कर रहे हैं। वैज्ञानिकों ने नई रिसर्च में मंगल ग्रह को लेकर बड़ा खुलासा किया है। नए शोध से पता चला है कि मंगल ग्रह पर 60 करोड़ सालों तक एस्टेरॉयड की बारिश (Asteroid Showers) हुई थी। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस खोज के बाद मंगल ग्रह की उत्पत्ति के बारे में फिर से स्टडी करने की जरूरत है। ऑस्ट्रेलिया के कर्टिन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने यह नया रिसर्च किया है। उन्होंने इससे पहले की गई स्टडी को चुनौती दी है।
इस रिसर्च के मुताबिक, एस्टेरॉयड की लगातार बारिश की वजह से मंगल ग्रह पर इतने गड्ढे नजर आते हैं। आमतौर पर सतह पर स्थित गड्ढों की वैज्ञानिक गणना के बाद ही ग्रह की उम्र की जानकारी मिलती है। अगर किसी ग्रह पर अधिक गड्ढे नजर आते हैं, तो उसके उम्र की सही जानकारी का पता लगाया जा सकता है।
वैज्ञानिकों ने जांच के बाद निष्कर्ष निकाला है कि किसी ग्रह पर जितने अधिक गड्ढे होते हैं वह ग्रह उतना ही पुराना होता है। वैज्ञानिकों ने नए शोध में मंगल ग्रह पर मौजूद 521 गड्ढों के बारे में न्यू क्रेटर डिटेक्शन एल्गोरिदम की सहायता से रिसर्च किया है जिनमें से हर गड्ढा 20 किलोमीटर व्यास का है। हालांकि इनमें सिर्फ 40 गड्ढे ही 60 करोड़ साल पुराने हैं। खुलासा हुआ है कि मंगल ग्रह पर 60 करोड़ साल तक एक के बाद एक एस्टेरॉयड की बारिश हुई थी। वैज्ञानिकों का कहना है कि गड्ढों की पहचान करने वाले एल्गोरिदम से इसके गिरने के समय और उनकी संख्या की जानकारी मिल सकती है।
वैज्ञानिकों को रिसर्च में यह भी पता चला है कि मंगल ग्रह की सतह से टकारने से पहले एस्टेरॉयड कई भागों में अलग हो गए थे जिसकी वजह से इनके कई जगहों पर टकराने की शंका पैदा हुई। वैज्ञानिकों ने उम्मीद जताई है कि इस तकनीक से चंद्रमा पर बने गड्ढों के समय के बारे में पता लगाया जा सकता है। इसके साथ ही चंद्रमा के विकसित होने का अंदाजा भी मिल सकता है।
इस स्टडी में शामिल एंथनी लागेन का कहना है कि मंगल ग्रह के ओर्डोविसियन स्पाइक काल के एक बार फिर शोध की जरूरत है। वैज्ञानिकों को इस काल के बारे में एक बार फिर रिसर्च करना चाहिए। माना जात था ओर्डोविसियन स्पाइक काल में ही सबसे अधिक गड्ढों का निर्माण हुआ। लगभग 47 करोड़ साल पुराना है यह काल। इस स्टडी को ध्यान में रखकर अन्य ग्रहों का अध्ययन करना चाहिए।
जानिए क्या होते हैं एस्टेरॉयड
उल्कापिंड या क्षुद्रग्रह को एस्टेरॉयड कहा जाता है। किसी ग्रह के बनते समय उससे छोटे-छोटे चट्टान के टुकड़े टूटकर बाहर हो जाते हैं और सूरज के चारों ओर चक्कर लगाने लगते हैं। कभी कभी यह अपनी कक्षा से बाहर निकल जाते हैं। आमतौर पर ग्रहों की कक्षा में एस्टेरॉयड जल जाते हैं, लेकिन कभी-कभी बड़े एस्टेरॉयड की ग्रहों से टक्कर हो जाती है। पृथ्वी से भी कई बार एस्टेरॉयड की टक्कर हो चुकी है।
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