दोनों देशों के तनाव के बीच हो रही बाइडन और राष्ट्रपति शी चिनफिंग की वर्चुअल मीटिंग, जानें- एक्सपर्ट व्यू
चीन के हाइपरसोनिक मिसाइल परीक्षण से चिंतित अमेरिका चिनफिंग के समक्ष यह मामला उठा सकता है। दोनों नेताओं के बीच यह चर्चा भी अहम हो सकती है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच होने वाली वर्चुअल मीटिंग ऐसे समय हो रही है, जब दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर है। ताइवान, हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर में दोनों देशों के बीच तनाव शीर्ष पर है। क्वाड और आकस को लेकर भी चीन बाइडन प्रशासन से सख्त नाराज है। दोनों संगठन के गठन पर चीन ने अपना ऐतराज जताया था। ऐसे में यह सवाल खड़ा होता है कि आखिर इस वार्ता के क्या है बड़े निहितार्थ है। इस वार्ता का क्या प्रयोजन है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकार प्रो. हर्ष वी पंत इस वार्ता को किस नजरिए से देखते हैं।
1- प्रो. हर्ष वी पंत ने कहा कि चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की वार्ता की तीथि एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। दोनों नेताओं के बीच यह बैठक चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की बैठक के बाद हो रही है। दरअसल, हाल में कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस बैठक में यह सुनिश्चित हो गया कि चीन की बागडोर चिनफिंग के पास ही होगी। चिनफिंग तीसरी बार देश के राष्ट्रपति होंगे। चिनफिंग चीन में काफी मजबूत स्थिति में हैं। उनकी तुलना माओ और देंग से की जा रही है। बाइडन प्रशासन चीन की आंतरिक राजनीति में शायद कोई बड़े फेरबदल का इंतजार कर रहा था। इसलिए वह कम्युनिस्ट पार्टी की बैठक का इंतजार कर रहा था। उन्होंने कहा कि क्योंकि चिनफिंग चीन के बाहर नहीं निकल रहे हैं, इसलिए दोनों नेताओं के बीच वर्चुअल बैठक से काम चलाना होगा।
2- उन्होंने कहा कि अगर अमेरिका और चीन के संबंधों की बात करें तो दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर है। ताइवान, दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर को लेकर दोनों नेताओं के बीच जंग जैसे हालात हैं। प्रो पंत ने कहा कि चीन अब अमेरिका का खुलकर विरोध कर रहा है। ताइवान मुद्दे पर अमेरिका कई बार चेतावनी भी दे चुका है। हाल में चीन ने ताइवान के मुद्दे पर बाइडन प्रशासन को खबरदार किया था। उधर, बाइडन प्रशासन ने ताइवान पर अपना रुख साफ कर चुका है। उधर, चिनफिंग की तीसरी पारी में ताइवान को चीन में शामिल करने का दबाव रहेगा। हांगकांग में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को लाकर चीन ने वहां लोकतंत्र समर्थकों को काबू किया है। ऐसे में चिनफिंग से यह उम्मीद बढ़ गई है।
3- प्रो. पंत ने कहा कि हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता के कारण दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है। क्वाड और आकस संगठन के बाद चीन पूरी तरह से बौखलाया हुआ है। वह कई बार कह चुका है कि इन संगठनों का उद्देश्य चीन को सामरिक रूप से घेरना है। आकस को हिंद प्रशांत क्षेत्र में क्वाड के साथ ही आस्ट्रेलिया व दूसरे यूरोपीय देशों के साथ एक समानांतर गठबंधन बनाने की अमेरिकी कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है। इसके बाद अमेरिका ने आस्ट्रेलिया को परमाणु पनडुब्बी देकर इस विवाद को और गहरा बना दिया है। उन्होंने कहा कि ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इसे लेकर दोनों देशों के संबंधों पर जमी बर्फ पिघलेगी।
4- उन्होंने कहा कि भारत समेत चीन के अन्य देशों के साथ सीमा विवाद पर भी चर्चा की बड़ी उम्मीद है। उन्होंने कहा कि इसकी बड़ी वजह यह है कि इसमें कई देशों के साथ अमेरिका का रणनीतिक और सुरक्षा पर करार है। इसलिए यह मामला भी उठ सकता है। क्वाड और आकस के गठन के बाद चीन के सीमा विवाद में अमेरिका की दिलचस्पी बढ़ी है। उसका दखल बढ़ा है। खासकर यह वार्ता ऐसे समय पर हो रही है जब चीन सीमा कानून को सख्ती से लागू करने की बात कर रहा है। इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका इस मुद्दे पर क्या स्टैंड लेता है।
5- जलवायु परिवर्तन और कोरोना महामारी इस वार्ता का अहम मुद्दा होगा। चीन की काप 26 से नदारद रहना अमेरिका को काफी खला है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने सार्वजनिक रूप से चीन की निंदा की थी। उन्होंने कहा था कि जलवायु परिवर्तन के महासम्मेलन में चीन की गैर मौजुदगी चिंता का करण है। उन्होंने कहा था कि चिनफिंग ने इस बैठक में नहीं आकर बहुत कुछ खोया है। इसलिए यह उम्मीद की जा रही है कि दोनों नेताओं के बीच यह मामला उठ सकता है। प्रो पंत ने उम्मीद जताई कि दोनों नेताओं की वार्ता में कोरोना महामारी का मुद्दा भी जरूर उठेगा। बता दें कि कोरोना प्रसार के लिए पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके पूर्ववर्ती बाइडन चीन को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं। चीन के हाइपरसोनिक मिसाइल परीक्षण से चिंतित अमेरिका चिनफिंग के समक्ष यह मामला उठा सकता है। दोनों नेताओं के बीच यह चर्चा भी अहम हो सकती है।