Barack Obama ने अपनी किताब में भारत यात्रा की कई बातों का किया उल्लेख, "भाजपा के विभाजनकारी राष्ट्रवाद" को लेकर भी जताई चिंता
Barack Obama की किताब
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह औऱ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को लेकर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा अपने संस्मरण "A Promised Land" की गईं टिप्पणियां पिछले हफ्ते काफी सुर्खियों में रहीं. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा (Barack Obama) ने कहा था, मैंने मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) के साथ जो वक्त व्यतीत किया उससे यह प्रतीत हुआ कि वह असाधारण ज्ञान और शिष्टता वाले व्यक्ति थे.
हालांकि ओबामा (Barack Obama) ने भारत की अपनी यात्रा को लेकर किताब में जो लिखा है, उसमें अमेरिकी राष्ट्रपति पद की दौड़ के लिए उनका प्रचार और वर्ष 2008 से 2012 के बीच पहले कार्यकाल का उल्लेख है. इसमें "भाजपा के विभाजनकारी राष्ट्रवाद" को लेकर भी चिंता जताई गई है. उन्होंने यह भी हैरत जताई कि हिंसा, लालच, भ्रष्टाचार, राष्ट्रवाद, नस्लवाद और धार्मिक असहिष्णुता जैसी भावनाएं इतनी मजबूत हैं कि वे किसी लोकतंत्र में स्थायी तौर पर पैठ जमा
सकती हैं.
भारत के 1990 में बाजार आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बदलाव का उल्लेख करते हुए ओबामा ने लिखा है कि इससे आर्थिक विकास तेज हुआ, आईटी क्षेत्र में उछाल आया और मध्यम वर्ग तेजी से उभरा. ओबामा ने लिखा, भारत के आर्थिक बदलाव के मुख्य रचनाकार के तौर पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) प्रगति के प्रतीक थे : कई बार उत्पीड़ित धार्मिक अल्पसंख्यक समूह के सदस्य के तौर पर मनमोहन सिंह देश के सर्वोच्च राजनीतिक पद पर पहुंचे. एक शर्मीले टेक्नोक्रेट के तौर पर, जिन्होंने भावनाओं को उभारने की जगह जीवन के उच्च आदर्शों को पेशकर लोगों का भरोसा जीता और अपनी ईमानदार छवि को लेकर ख्याति हासिल की.
ओबामा ने लिखा, मनमोहन ने 2008 के हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की मांग के बावजूद संयम रखा, लेकिन उन्हें इसकी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ी. मनमोहन सिंह के हवाले से ओबामा ने लिखा, "उन्हें भय था कि भारत में जोर पकड़ती भावना से देश की मुख्य विपक्षी पार्टी और हिन्दू राष्ट्रवादी दल भाजपा मजबूत हो रही है. अनिश्चितता के दौर में धार्मिक और जातीय एकजुटता की मांग उन्मादी हो सकती है और भारत या दुनिया में कहीं भी राजनेताओं के लिए इसका गलत इस्तेमाल करना मुश्किल नहीं है.
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ने प्राग दौरे में चेक नेता वाक्लेव हैवेल के साथ अपनी बातचीत का भी उल्लेख किया है, इसमें यूरोप में बढ़ते अनुदारवाद का जिक्र है. "अगर अमीर देशों के मुकाबले वैश्वीकरण और ऐतिहासिक आर्थिक संकट के कारण ये चीजें उभार मार रही हैं- अगर मैं यह अमेरिका में टी पार्टी में देख रहा हूं तो भारत कैसे अलग रह सकता है. जबरदस्त आर्थिक प्रदर्शन और लोकतंत्र में लचीलेपन के बावजूद सच्चाई यह है कि वह गांधी के पक्षपातहीन, शांतिपूर्ण और सतत समाज को पाने से अभी दूर है. ओबामा ने कहा, भारत की राजनीति अभी भी धर्म, जाति और वंशों के इर्दगिर्द घूमती है. प्रधानमंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह के उत्थान को कई बार देश की सांप्रदायिक विभाजनकारी से उबरने की देश की तरक्की के तौर पर देखा जाता है, लेकिन काफी हद तक यह भ्रम करने वाला है.
"... कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को इसलिए चुना था कि एक बुजुर्ग सिख और कोई राष्ट्रीय जनाधार न होने के कारण, वह 40 वर्ष के उनके बेटे राहुल के लिए कोई खतरा पेश नहीं करते थे. जिन्हें वह कांग्रेस पार्टी को आगे संभालने के लिए तैयार कर रही थीं. " उन्होंने डॉ. मनमोहन सिंह के साथ डिनर का भी उल्लेख किया है, जहां सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी मौजूद थे.