बांग्लादेश की हसीना सरकार सुरक्षा चुनौतियों को लेकर घिरी

Update: 2022-12-14 06:05 GMT

ढाका: बांग्लादेश के संसदीय चुनाव में अभी एक साल का समय बाकी है, लेकिन राजनीतिक रूप से जागरूक लोग अभी से तैयार हो रहे हैं। वर्ष 2009 के बाद के पिछले दो चुनावों की तरह इस बार भी दो विरोधी आख्यान बनने लगे हैं। सबसे लंबी भू-सीमा वाले पड़ोसी देश के घटनाक्रम को भारत नजर अंदाज नहीं कर सकता है। एक आख्यान केवल भारत ही नहीं, बल्कि इस पूरे क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है, जो विशेष रूप से जिहादी आतंकवाद पर जोर देती है। दूसरा आख्यान प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग (एएल) और पूर्व प्रधानमंत्री तथा फिलहाल जेल में बंद बेगम खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के बीच प्रतिद्वंद्विता को आतंकवाद के रूप में देखता है। पहला आख्यान स्थिति को सुरक्षा के चश्मे से देखता है, जबकि दूसरा आख्यान सुरक्षा उपायों के लिए हसीना सरकार की आलोचना करता है, जो आतंकी समूहों के साथ विपक्ष को भी निशाना बनाती है और लोकतंत्र को नकारती है।

खासकर चुनाव के समय राजनीतिक हिंसा बांग्लादेश में सामान्य घटना है। लेकिन 11 दिसंबर, 2022 को बिना किसी स्पष्टीकरण के एक रिपोर्ट नई दिल्ली से प्रकाशित हुई है, न कि ढाका से, जहां विदेशी मीडिया की व्यापक उपस्थिति है और जिसमें सीएनएन ने विपक्ष की रैली की रिपोर्टिंग करते हुए बांग्लादेश में अमेरिकी राजदूत पीटर डी हैस के इस बयान का उल्लेख किया है कि दूतावास डराने-धमकाने और राजनीतिक हिंसा की खबरों को लेकर चिंतित है और उसने अधिकारियों से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण सभा की जांच और उसकी रक्षा करने का अनुरोध किया है। यह भी कहा गया है कि वर्ष 2009 से सत्ता पर काबिज हसीना 2018 के राष्ट्रीय चुनाव में लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री चुनी गईं, जिस पर घातक हिंसा और धांधली के आरोप लगाए गए थे।

बेशक यह तथ्यात्मक रूप से सच है, लेकिन पश्चिमी आख्यान हसीना के इस दावे का भी खंडन करता है कि उसके सुरक्षा बल जिहादियों से लड़ रहे हैं, जिनमें विपक्ष शामिल है और वह उन्हें प्रोत्साहित कर रहा है। पश्चिमी सुरक्षा थिंकटैंक का कहना है कि अवामी लीग और बीएनपी की राजनीतिक लड़ाई इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष को कमजोर कर रही है। यहीं पर दोनों आख्यानों में गंभीर अंतर है। लोकतंत्र को अपना मुख्य मानदंड मानते हुए विश्व स्तर पर प्रभावी पश्चिमी आख्यान बीएनपी को संदेह का लाभ देते हुए हसीना सरकार की आलोचना करता है। जहां तक लोकतंत्र को महत्व देने की बात है, तो भारत के लोग बांग्लादेश के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को नजर अंदाज नहीं कर सकते।

तमाम कमजोरियों और खामियों के बावजूद भारत के लोग बीएनपी की तुलना में अवामी लीग को अपेक्षाकृत उदार और समावेशी मानते हैं। यह एक तथ्य है कि बीएनपी ने जमात-ए-इस्लामी के साथ सत्ता में साझेदारी की और इस्लामी समूहों को भारत के खिलाफ प्रोत्साहित किया। एक तथ्य यह भी है कि 1991 में अफगानिस्तान के सोवियत विरोधी युद्ध से लगभग 3,000 बांग्लादेशी लड़ाके अपने देश में खिलाफत स्थापित करने के उद्देश्य से लौटे थे। 1991-96 के दौरान, जब खालिदा जिया सत्ता में थीं, तब इन 'लड़ाकों' की ताकत में वृद्धि हुई और उनके दूसरे कार्यकाल में उन्होंने सुनियोजित ढंग से सैकड़ों धार्मिक अल्पसंख्यकों को मार डाला।

हालांकि जिया लंबे समय तक इससे इनकार करती रहीं। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय अभियान और अमेरिका द्वारा आर्थिक प्रतिबंध लगाने की धमकी के बाद ही उनके खिलाफ कार्रवाई की। विडंबना देखिए कि जिन ताकतों ने कभी जिया को कार्रवाई करने के लिए मजबूर किया था, आज वही ताकत बीएनपी के इस्लामी समूहों पर निर्भरता और समर्थन के बावजूद उसका मौन समर्थन कर रही हैं। हसीना सरकार पर चरमपंथ के खिलाफ लड़ाई के राजनीतिकरण का आरोप लगाते हुए अमेरिकी थिंकटैंक क्राइसिस ग्रुप 1971 में देश की मुक्ति के खिलाफ काम करने वालों पर मुकदमा चलाने और उन्हें दंडित करने को गलत मानता है। इस प्रकार यह बांग्लादेश के राष्ट्रीय संकल्प को चुनौती दे रहा है।

फिर भी अपनी रिपोर्ट में इसने कहा है कि 'जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) और अंसारुल इस्लाम नामक दो समूह आज के जिहादी परिदृश्य पर हावी हैं; जेएमबी का एक गुट इस्लामिक स्टेट से संबंध रखता है, जबकि अंसारुल इस्लाम अल-कायदा की दक्षिण एशियाई शाखा से संबद्ध है। दोनों ने पिछले कुछ वर्षों में कई हमलों को अंजाम दिया है। कुछ धर्मनिरपेक्ष कार्यकर्ताओं को निशाना बनाते हैं, तो अन्य बांग्लादेशी अल्पसंख्यकों को। सभी सरकारों ने जेएमबी नेतृत्व के खिलाफ कार्रवाई की, लेकिन समूह ने नए रूप में खुद को पुनर्जीवित किया है। दूसरा समूह अंसारुल इस्लाम का भी उभार हुआ है, जबकि जेएमबी से अलग हुआ एक गुट (जिसे कानून प्रवर्तन एजेंसियां नव जमात-उल-मुजाहिदीन कहती हैं) खुद को इस्लामिक स्टेट-बांग्लादेश कहता है और इराक एवं सीरिया में लड़ाकों को भेजता है।'

जहां तक इस्लामी आतंकवाद का सवाल है, तब से स्थिति और बदतर हुई है। नई दिल्ली स्थित थिंकैंक साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल (एसएटीपी) बांग्लादेशी सुरक्षा अधिकारियों के हवाले से कहता है : '13 से 22 अक्तूबर, 2021 के बीच हिंदू समुदायों को निशाना बनाकर लगातार हमले किए गए। इन हमलों में सात लोग मारे गए और 99 अन्य घायल हुए। अनियंत्रित भीड़ द्वारा कम से कम 20 पूजा मंडपों और कई मूर्तियों को विकृत किया गया और तोड़ दिया गया था। दुर्गा पूजा के दौरान पूजा स्थलों, मंदिरों, हिंदू घरों और व्यवसायों पर हमले और सोशल मीडिया पर अफवाहें फैलाने के आरोप में 583 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।'

बांग्लादेश एक अस्थिर क्षेत्र में है, जहां कई इस्लामी समूह सक्रिय हैं। यह उन रोहिंग्याओं से भरा हुआ है, जिन्हें म्यांमार से खदेड़ दिया गया है। भारत में भी हजारों रोहिंग्या रहते हैं। इन शरणार्थियों के बीच से करीब एक दर्जन चरमपंथी गुट उभरे हैं, यही वजह है कि भारत ने उन्हें लेने से इनकार कर दिया है। ऐसी जटिल परिस्थिति में भारत को अपनी सुरक्षा के लिए बांग्लादेश की मदद करने की आवश्यकता है और बांग्लादेश 'लोकतंत्र की हत्या' के लिए आलोचना के बजाय समर्थन का पात्र है। 

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