ब्रिटेन: संसद में PM मोदी पर हमला, भारत की समर्थन में रही थेरेसा विलियर्स

पिछले करीब 100 दिनों से भारत में कृषि कानूनों को लेकर प्रदर्शन का दौर जारी है

Update: 2021-03-10 02:52 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क:  लंदन पिछले करीब 100 दिनों से भारत में कृषि कानूनों को लेकर प्रदर्शन का दौर जारी है और इसको लेकर सोमवार शाम को ब्रिटेन की संसद में चर्चा हुई। इस चर्चा के दौरान कई सांसदों ने जहां मोदी सरकार पर हमला बोला, वहीं सत्‍तारूढ़ कंजरवेटिव पार्टी की सांसद थेरेसा विलियर्स चट्टान की तरह से भारत के साथ खड़ी रहीं। थेरेसा ने कहा कि यह भारत का आंतरिक मामला है और इस पर विदेशी संसद में चर्चा नहीं की जा सकती है।

थेरेसा ने यह भी कहा कि कृषि सुधारों को लेकर पूरी दुनिया में दिक्‍कतें आई हैं। नए कृषि कानूनों को अभी स्‍थगित कर दिया गया है ताकि व्‍यापक चर्चा और सलाह की जा सके। उन्‍होंने कहा, 'मैं समझती हूं कि प्रदर्शन कर रहे किसान अपने भविष्‍य को लेकर असुरक्षित महसूस कर रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने बार-बार यह कहा है कि इन सुधारों का मुख्‍य उद्देश्‍य ऐसे लोगों की आय बढ़ाना है जो किसानी करते हैं। साथ खेती में निवेश को बढ़ावा देना है।'
ब्रिटिश सांसद ने कहा कि मैंने प्रदर्शनकारियों के प्रति प्रतिक्रिया को लेकर जताई गई चिंता के बारे में सुना है लेकिन जब लाखों लोग प्रदर्शन में शामिल होते हैं और कई महीने तक डेरा डाले रहते हैं तो कोई भी पुलिस कार्रवाई विवादित घटनाक्रम से बच नहीं सकती है। लंदन के पोर्टकुलिस हाउस में 90 मिनट तक चली चर्चा के दौरान कंजर्वेटिव पार्टी की थेरेसा विलियर्स ने साफ कहा कि कृषि भारत का आंतरिक मामला है और उसे लेकर किसी विदेशी संसद में चर्चा नहीं की जा सकती।
भारत ने ब्रिटेन के सांसदों की चर्चा की निंदा की
इस बीच लंदन में भारतीय उच्चायोग ने भारत में तीन कानूनों के खिलाफ चल रहे किसानों के आंदोलन के बीच शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन करने के अधिकार और प्रेस की स्वतंत्रता के मुद्दे को लेकर कुछ ब्रिटिश सांसदों के बीच हुई चर्चा की निंदा की है। उच्चायोग ने सोमवार शाम ब्रिटेन के संसद परिसर में हुई चर्चा की निंदा करते हुए कहा कि इस 'एक तरफा चर्चा' में झूठे दावे किए गए हैं।
भारतीय मिशन ने ब्रिटिश मीडिया सहित विदेशी मीडिया के भारत में चल रहे किसानों के प्रदर्शन का खुद साक्षी बन खबरें देने का जिक्र किया और कहा कि इसलिए 'भारत में प्रेस की स्वतंत्रता में कमी पर कोई सवाल नहीं उठता।' उच्चायोग ने एक बयान में कहा, 'बेहद अफसोस है कि एक संतुलित बहस के बजाय बिना किसी ठोस आधार के झूठे दावे किए गए... इसने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में से एक और उसके संस्थानों पर सवाल खड़े किए हैं।' यह चर्चा एक लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर वाली 'ई-याचिका' पर की गई। भारतीय उच्चायोग ने इस चर्चा पर अपनी नाराजगी जाहिर की है।


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