काबुल: अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद अगर तालिबान (Taliban) को ये लग रहा है कि अब पूरे अफगानिस्तान पर वो अपनी हुकूमत चलाएगा तो ऐसा नहीं है. तालिबान ने भले ही अफगानिस्तान के हर बड़े शहरों पर नियंत्रण कर लिया है, लेकिन अभी भी तालिबान का एक ऐसा इलाका है, जहां तालिबान न तो अभी घुस पाया है और ना आज से 20 साल पहले घुस पाया था. वो इलाका पंजशीर घाटी (Panjshir Valley) है. अफगानिस्तान के कार्यवाहक राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह (Amrullah Saleh) पंजशीर घाटी से ही आते हैं और उन्होंने तालिबान के खिलाफ नॉर्दर्न अलायंस की रेजिस्टेंस फोर्स को लेकर तालिबान के खिलाफ जंग छेड़ दी है.
तालिबान को अमरुल्ला सालेह (Amrullah Saleh) के अलावा तीन और चेहरों से चुनौती मिलने वाली है. इनमें दूसरा नाम है अहमद मसूद, जो नॉर्दन अलायंस के नेता हैं और पूर्व कमांडर अहमद शाह मसूद के बेटे हैं. अगला नाम है मजार ए शरीफ का बूढ़ा शेर मार्शल अब्दुल रशीद दोस्तम और तालिबान के खिलाफ चौथा चेहरा बन सकते हैं अता मोहम्मद नूर. ये चार चेहरे तालिबान के लिए चैलेंज हैं.
अफगानिस्तान के कार्यवाहक राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह (Amrullah Saleh) ने तालिबान को काबुल से खदेड़ने के लिए मिशन की शुरुआत कर दी है. राष्ट्रपति अशरफ गनी (Ashraf Ghani) के देश छोड़ने के बाद सालेह ने खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया था और अफगानिस्तान में ही रहकर तालिबान से लड़ने का फैसला किया था. अमरुल्ला सालेह ने कहा, 'मैं ये स्पष्ट करना चाहता हूं कि इस परिस्थिति के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं, लेकिन मैं उस अपमान का हिस्सा बनने के लिए तैयार नहीं हूं जो विदेशी सेनाओं ने सहा था. मैं अपने देश के साथ और देश के लिए खड़ा हूं और युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है.
अफगानिस्तान के लोगों को अपने ऑडियो संदेश देने के कुछ ही घंटों बाद अमरुल्ला सालेह (Amrullah Saleh) ने पंजशीर घाटी से तालिबान के खिलाफ निर्णायक लड़ाई छेड़ दी. नॉर्दर्न अलायंस रेजिस्टेंस फोर्स ने परवान प्रांत के चरिकार जिले में हमला बोल दिया है. ये जगह काबुल के उत्तर में है. सालेह जिस जगह से नॉर्दर्न अलायंस के फोर्स की अगुवाई कर रहे हैं, वो जगह अफगानिस्तान की पंजशीर घाटी है. काबुल से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर इस इलाके का तालिबान अभी कुछ भी नहीं बिगाड़ पाया है. बड़े-बड़े शहरों पर कब्जा करने वाला तालिबान इस इलाके में घुस तक नहीं पाया है.
पंजशीर घाटी (Panjshir Valley) इतनी खतरनाक है कि 1980 से लेकर 2021 तक इस पर कभी भी तालिबान का कब्जा नहीं हो सका है. इतना ही नहीं, सोवियत संघ और अमेरिका की सेना ने भी इस इलाके में केवल हवाई हमले ही किए हैं. भौगोलिक परिस्थिति को देखते हुए उन्होंने भी कभी कोई जमीनी कार्रवाई नहीं की. 1996 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया था तो तालिबान विरोधी ताकतों ने नॉर्दर्न अलायंस बनाकर मोर्चा संभाला था. कहा जाता है कि अमरुल्ला सालेह ने विदेशों खासतौर पर भारत से नॉर्दर्न एलायंस को मदद लाने में बड़ी भूमिका निभाई थी.
अमरुल्ला खुद ताजिक हैं और 90 के दशक से ही सोवियत संघ के खिलाफ युद्ध में उतर गए थे. सालेह अफगानिस्तान के बड़े नेता अहमद शाह मसूद के विश्वासपात्र थे. बातचीत में कुशल हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनके अच्छे संबंध हैं. अब एक बार फिर अमरुल्ला सालेह (Amrullah Saleh) अपने गढ़ पंजशीर पहुंच गए हैं, जहां से वो तालिबान के खिलाफ युद्ध लड़ रहे हैं.
पंजशीर घाटी पर तालिबान कभी कब्जा नहीं कर पाया था, इसके पीछे कारण था एक चेहरा, जिसका नाम था अहमद शाह मसूद. मसूद इस इलाके के सबसे बड़े कमांडर थे और उन्हें अफगानी लोग शेर ए पंजशीर भी कहते थे. 1980 के दशक में सोवियत रूस ने भी पंजशीर घाटी पर कब्जे की कोशिश की थी, लेकिन अहमद शाह मसूद ने उस वक्त डटकर मुकाबला किया था. अब पंजशीर घाटी की कमान अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद संभाल रहे हैं. नॉर्दर्न एलायंस के नेता अहमद मसूद ने भी पंजशीर घाटी से तालिबान के खिलाफ मोर्चा खोलने का एलान किया है.
तालिबान के लड़ाकों का काल बनने के लिए पंजशीर घाटी से नॉर्दर्न अलायंस के लड़ाके आगे बढ़ चुके हैं और काबुल के उत्तर से हमले की शुरुआत कर दी है. वहीं तालिबान के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत भी उत्तरी अफगानिस्तान में हो चुकी है. इस विद्रोह का नेतृत्व मार्शल अब्दुल रशीद दोस्तम (Abdul Rashid Dostum) कर रहे हैं. दोस्तम अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति रह चुके हैं, पिछले दिनों तालिबान से बचकर सुरक्षित ठिकाने पर चले गए थे. अब उन्होंने तालिबान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. 20 साल पहले भी उन्होंने तालिबानी लड़ाकों के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत की थी.
पिछले दिनों अब्दुल रशीद दोस्तम (Abdul Rashid Dostum) तुर्की से इलाज करवाकर काबुल पहुंचे थे, तो माना जा रहा था कि दोस्तम के आने के बाद तालिबानी आतंकियों के खिलाफ जंग और तेज होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उल्टा मजार ए शरीफ में दोस्तम के महल पर तालिबानी आतंकियों ने कब्जा कर लिया. इसके बाद दोस्तम को एक बार फिर सैन्य वर्दी में देखा गया था. तब दोस्तम ने तालिबान को उखाड़ फेंकने की बात कही थी. उन्होंने कहा था, 'देश के उत्तरी हिस्सों से तालिबान का सफाया कर दिया जाएगा. तालिबान के पास बचने का कोई रास्ता नहीं है. मिलिशिया अफगान सेना के साथ मिलकर तालिबान के खिलाफ युद्ध लड़ रही है.
काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद दोस्तम का कुछ पता नहीं था, कयास लगाए जा रहे थे कि दोस्तम अफगानिस्तान छोड़कर उज्बेकिस्तान चले गए, लेकिन अब दोस्तम की मिलिशिया के लड़ाकों ने तालिबानी आतंकियों के खिलाफ युद्ध छेड़कर अफगानिस्तान के लोगों को बड़ी राहत दी है. अब्दुल रशीद दोस्तम को मजार ए शरीफ का बूढ़ा शेर नाम से पुकारते हैं. तालिबानी आतंकी दोस्तम के नाम से कांपते हैं, क्योंकि 1990 और 2001 के दौरान जब अफगानिस्तान में तालिबानी आतंक था, तब अब्दुल रशीद दोस्तम ने बल्ख प्रांत से तालिबान का सफाया कर दिया था.
तालिबान को चैंलेज देने वालों में एक और नाम शामिल हो सकता है और उस शख्स का नाम अता मोहम्मद नूर है. साल 1979 में जब सोवियत रूस ने अफगानिस्तान पर हमला किया तो अता मोहम्मद नूर ने रूसी सेना के खिलाफ अफगानिस्तान के लोगों को तैयार किया था. सोवियत रूस से लड़ने के लिए नूर ने जमीयत-ए-इस्लामी का संगठन बनाया और उसके कमांडर बने. साल 1996 में तालिबान ने जब अफगानिस्तान की सत्ता संभाली तो उन्होंने अहमद शाह मसूद के साथ मिलकर तालिबान के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा तैयार किया था.
पिछले दिनों वो कई मौकों पर अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ देखे गए थे, लेकिन बल्ख प्रांत पर तालिबान के कब्जे के बाद से वे गायब हैं. माना जा रहा है कि अता मोहम्मद नूर तजाकिस्तान के इलाके में चले गए हैं. मुमकिन है कि नूर भी तालिबान के खिलाफ किसी बड़ी रणनीति पर काम कर रहे हों और हो सकता है कि अगले कुछ दिन में वो भी तालिबान के खिलाफ एक नया मोर्चा खोल दें.