पाकिस्‍तान में दल-बदल विरोधी कानून को संविधान के 14वें संशोधन के तौर पर जाना गया

अगर उसे लगता है कि पार्टी का फैसला उसके खिलाफ है तो वो अपील कर सकता है।

Update: 2022-07-21 07:25 GMT

इस्‍लामाबाद: पाकिस्‍तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने पंजाब में मुख्‍यमंत्री के चुनाव से पहले बड़ा बयान दिया है। 22 जुलाई को होने वाले इस चुनाव से पहले इमरान खान ने सत्‍ताधारी गठबंधन सरकार पर उनकी पार्टी पीटीआई के विधायकों को खरीदने का आरोप लगाया है। पंजाब प्रांत में इमरान की पार्टी के कुछ विधायक करीब दो माह पहले विपक्ष के साथ चले गए थे। इसकी वजह से उनकी सरकार गिर गई और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के बेटे हमजा शरीफ प्रांत के मुख्‍यमंत्री बन गए। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने विधायकों को दलबदल का दोषी बताते हुए उनकी सदस्यता निरस्त कर दी थी। इमरान की मानें तो विधायक करोड़ों रुपयों की लालच में अपना ईमान बेच रहे हैं। इस पूरे एपिसोड के बाद सबका ध्‍यान इस तरफ गया कि क्‍या पाकिस्‍तान में भारत की तरह कोई दल-बदल कानून है? अगर है तो वहां पर सांसदों के खिलाफ दल-बदल पर क्‍या एक्‍शन लिया जाता है? जानने के लिए पढ़ें ये रिपोर्ट।


क्‍या है पाकिस्‍तान में कानून
पाकिस्‍तान में दल-बदल विरोधी कानून को संविधान के 14वें संशोधन के तौर पर जाना गया। 3 जुलाई 1997 को तत्‍कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के कार्यकाल में इस संशोधन को उस समय के राष्‍ट्रपति फारूख अहमद लेघारी की तरफ से मंजूरी मिली। इस कानून के तहत सांसदों को पार्टी के सख्‍त नियमों का पालन करना होता है। पार्टी के नेताओं के पास ये अधिकार होता है कि वो किसी भी सांसद या विधायक को सदन से उस समय बर्खास्‍त कर सकते हैं, अगर उन बागी सांसदों या विधायकों ने पार्टी के खिलाफ जाकर वोट किया हो। इस संशोधन का मकसद मजबूत गठबंधन की सरकार या मजबूत विपक्ष के निर्माण के लिए विधायकों को पार्टी बदलने से रोकना था।
नवाज उस समय भारी बहुमत से संसद में आए थे। इस संशोधन की वजह से ही नवाज सरकार अविश्‍वास प्रस्‍ताव से गिरने से बच गई थी। इससे कुछ माह पहले ही 13वें संशोधन की वजह से राष्‍ट्रपति के पास से प्रधानमंत्री को हटाकर, संसद को भंग करने और नए चुनाव की घोषणा करने का अधिकार छिन गया था। इस संशोधन के बाद पीएम की शक्तियों पर कोई संतुलन नहीं बचा था क्‍योंकि कानून के पीएम को हटाया नहीं जा सकता था।

पाकिस्‍तान के संविधान के आर्टिकल 63 के तहत 63A को जोड़ा गया। इसमें किसी सांसद को अयोग्‍य ठहराकर उसे हटाने के बारे में बताया गया था। इसमें कहा गया था-

1. अगर संसदीय पार्टी का कोई सदस्‍य टूटता है तो उसे पार्टी के मुखिया की तरफ से या फिर उसकी तरफ से नियुक्‍त किसी व्‍यक्ति की तरफ से कारण बताओ नोटिस जारी किया जा सकता है। नोटिस 7 दिनों के अंदर जारी करना होता है और नोटिस के बारे में संबधित स्‍पीकर को जानकारी देनी होती है।

पार्टी के किसी भी सदस्‍य को उस समय हटाया जा सकता है जब उसे राजनीतिक पार्टी के उम्‍मीदवार के तहत पर नामांकित किया गया हो। अगर उस सदस्‍य ने पार्टी के संविधान या कोड ऑफ कंडक्‍ट का उल्‍लंघन किया हो या फिर उसने नीतियों की घोषणा की हो, पार्टी सदस्‍य ने अनुशासन के खिलाफ जाकर वोट किया हो या फिर वो वोटिंग के समय नदारद रहा हो।

2. उस सदस्‍य को अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाता है और उसे 7 दिनों के अंदर अपनी बात पार्टी के सामने रखनी होती है। अगर उसे लगता है कि पार्टी का फैसला उसके खिलाफ है तो वो अपील कर सकता है।


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