पुष्‍प कमल दहल 'प्रचंड' की भारत यात्रा के बीच एक बार से नेपाली राजदूत शंकर शर्मा का मुद्दा गरमाया

भारत जैसी बड़ी शक्तियां और नेपाल जैसे छोटे देश के बीच बहुत अंतर है और दोनों में कोई तुलना ही नहीं है।

Update: 2022-07-18 07:26 GMT

काठमांडू: नेपाल में सत्‍तारूढ़ गठबंधन के प्रमुख नेता और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्‍प कमल दहल 'प्रचंड' की भारत यात्रा के बीच एक बार से नेपाली राजदूत शंकर शर्मा का मुद्दा गरमा गया है। भारत में नेपाल के नए राजदूत शंकर शर्मा ने अप्रैल में कार्यभार संभाला था लेकिन अभी तक उन्‍हें भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर और व‍िदेश सचिव व‍िनय मोहन क्‍वात्रा से मिलने का समय ही नहीं दिया गया है। दरअसल, किसी देश में कोई भी व‍िदेशी दूतावास व‍िदेश मंत्रालय के जरिए ही उस देश से राजनयिक रिश्‍ते बनाता है।



नेपाली अखबार काठमांडू पोस्‍ट के मुताबिक नेपाली राजदूत की भारतीय व‍िदेश मंत्री और विदेश सचिव की संक्षिप्‍त मुलाकात हुई है लेकिन अभी कोई औपचारिक विस्‍तृत मुलाकात नहीं हो पाई है। दिल्‍ली में नेपाली दूतावास के एक अधिकारी ने कहा, 'लंबे समय से हमने भारत के विभिन्‍न मंत्रालयों को दर्जनों पत्र लिखे हैं ताकि हमारे राजदूत को मिलने का समय दिया जाए। अभी तक हमें क‍िसी भारतीय मंत्रालय से कोई जवाब नहीं मिला है।' वहीं इससे उलट भारत के नेपाल में नए राजदूत नवीन श्रीवास्‍तव के पदभार संभालने के मात्र एक महीने के अंदर ही वह नेपाल के राष्‍ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक से मिल लिए हैं।


'राजनयिक माध्‍यमों से संपर्क बनाने के प्रति अनिच्‍छुक है भारत'
यही नहीं भारतीय राजदूत ने सभी दलों के नेताओं और विभिन्‍न मंत्रियों से भी मुलाकात की है। भारत में नेपाल के पूर्व राजदूत नीलांबर आचार्य कहते हैं कि भारत के इस रवैये से यह स्‍पष्‍ट रूप से संकेत मिलता है कि हमारा पड़ोसी देश राजनयिक माध्‍यमों से संपर्क बनाने के प्रति अनिच्‍छुक है। उन्‍होंने कहा, 'यह स्‍पष्‍ट है कि हमारे राजदूत से मुलाकात भारत सरकार के प्राथमिकता सूची में नहीं है।' रिपोर्ट में इस पर भी सवाल उठाए गए हैं कि विदेश मंत्री ने प्रचंड को भरपूर समय दिया लेकिन नेपाली राजदूत को समय नहीं दे रहे हैं।


इससे पहले भारतीय व‍िदेश मंत्री ने शनिवार को प्रचंड से मुलाकात की थी। यही नहीं भारतीय विदेश मंत्री बीजेपी अध्‍यक्ष जेपी नड्डा और प्रचंड के बीच मुलाकात के दौरान भी मौजूद थे। नेपाल के विदेशी मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय नेतृत्‍व नेपाल के साथ राजनयिक चैनल को अनदेखा कर रहा है क्‍योंक‍ि वह सीधे तौर पर राजनीतिक नेतृत्‍व डील कर रहा है। वहीं कुछ व‍िशेषज्ञों का कहना है कि इस राजनयिक असफलता के लिए नेपाली नेतृत्‍व ही जिम्‍मेदार है।

'नेपाली राजदूत के मुद्दे को बहुत ज्‍यादा गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं'
नीलांबर कहते हैं कि मैं भारत को जिम्‍मेदार नहीं ठहराने जा रहा हूं। हमें खुद ही अपने अंदर झांकना होगा कि क्‍या हमारी सरकार ने अपने राजनयिक मिशनों को वह महत्‍व दिया है जिसके लिए वह जिम्‍मेदार हैं। उन्‍होंने कहा कि नेपाल को भारतीय कदमों का परीक्षण करना चाहिए। अगर हमने भारत के राजदूत को मिलने का समय नहीं दिया होता तो यह भारत पर दबाव डालता। तीन महीने बीत जाने के बाद भी भारत की तरफ से नए राजदूत को ठंडी प्रतिक्रिया दी गई है। वहीं नेपाल में राजनीति विज्ञान के प्रफेसर विजय कांत कर्ण का कहना है कि इसे बहुत ज्‍यादा गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है। भारत जैसी बड़ी शक्तियां और नेपाल जैसे छोटे देश के बीच बहुत अंतर है और दोनों में कोई तुलना ही नहीं है।
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