अगर उनकी इस यात्रा से पहले का माहौल देखें तो अमेरिका ने रिश्ते बेहतर बनाने के लिए कोई सार्थक पहल नहीं की है। अमेरिका के उग्र तेवरों के उलट चीन का दावा है कि वह विश्व शांति का प्रवर्तक है। और एक जिम्मेदार देश के रूप में अन्य देशों के साथ अपने रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहता है।
जैसा कि हम जानते हैं कि यूक्रेन संकट को रोकने के लिए अमेरिका ने कोई कदम नहीं उठाया है। जबकि चीन ने मध्यस्थ की भूमिका निभाने की इच्छा जताई है। शायद चीन ऐसा करने में सक्षम भी हो सकता है। क्योंकि उसने हाल में ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौता कराने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया है। जिससे अमेरिका के रवैये और भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इराक से लेकर सीरिया और अफगानिस्तान में उसने युद्ध विराम और आम नागरिकों को राहत पहुंचाने के लिए कुछ खास नहीं किया। अमेरिका की अर्थव्यवस्था एक तरह से युद्ध छेड़ने और हथियारों की बिक्री से चलती है।
चीन का आरोप है कि अमेरिका चीन के उत्पादों के अमेरिका में प्रवेश में तरह-तरह की बाधाएं पैदा करता है। साथ ही चीनी कंपनियों और तकनीकों के खिलाफ भेदभाव किया जाता है। हालांकि आज के दौर में किसी एक देश पर इस तरह से प्रतिबंध लगाना और उसे अलग-थलग करना आसान नहीं है। खासकर जब कोई राष्ट्र विश्व की प्रमुख आर्थिक ताकत हो और उसका प्रभाव वैश्विक हो। लेकिन अमेरिका व कुछ पश्चिमी राष्ट्र चीन द्वारा उठाए हर कदम को अपने लिए खतरा मानते हैं। लेकिन इसके विपरीत चीन विभिन्न देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने में लगा हुआ है।
अमेरिका की ओर से चीन को एक दुश्मन और कड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश किया जाता है। उधर चीन का कहना है कि वह ऐसा नहीं मानता है। एंटनी ब्लिंकन की चीन यात्रा के मौके पर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस बयान से चीन के रुख का अंदाजा लगाया जा सकता है।
शी के मुताबिक चीन अमेरिकी हितों का सम्मान करता है और अमेरिका को चुनौती नहीं देगा और कभी अमेरिका की जगह भी नहीं लेगा। लेकिन अमेरिका को चीन का सम्मान करना चाहिए और उसके हितों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।
ऐसे में अमेरिका को जिम्मेदार रुख अपनाते हुए चीन व विश्व के साथ समन्वय कायम करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। ताकि अनिश्चितता भरे इस वातावरण में स्थिरता और शांति स्थापित की जा सके।