दक्षिण अफ्रीका और चीन के फैसले से अमेरिका नाराज

Update: 2023-02-02 01:19 GMT

दिल्ली। रूस और यूक्रेन युद्ध को जल्द ही एक साल पूरा होने जा रहा है. पिछले साल 24 फरवरी को शुरू हुए इस युद्ध के बाद पूरी दुनिया दो धड़ों में बंटी नजर आई. इस युद्ध की वजह से अमेरिका सहित यूरोपीय देशों ने रूस को एक तरह से अलग-थलग कर दिया. लेकिन अब इस युद्ध की बरसी से पहले रूस को चीन के अलावा दक्षिण अफ्रीका का भी साथ मिलने जा रहा है.

दक्षिण अफ्रीका और चीन हिंद महासागर में रूस के साथ मिलकर संयुक्त सैन्याभ्यास करने जा रहे हैं. यह सैन्याभ्यास 17 फरवरी को शुरू होगा और 27 फरवरी तक चलेगा. इस संयुक्त सैन्याभ्यास का मकसद दक्षिण अफ्रीका का एशियाई देशों के साथ संबंधों को और मजबूत करना है. दक्षिण अफ्रीका की नेशनल डिफेंस फोर्स का कहना है कि उनकी सेना की ओर से इस सैन्याभ्यास में 350 सदस्य हिस्सा लेने जा रहे हैं. दक्षिण अफ्रीका, चीन और रूस की नौसेना के इस संयुक्त सैन्याभ्यास को ऑपरेशन मोसी का नाम दिया गया है. यह ड्रिल हिंद महासागर में डर्बन और रिचर्ड्स बे के पास दक्षिण अफ्रीका के पूर्वी तट पर होगी.

यूक्रेन पर हमले के बाद से दुनिया के ज्यादातर देशों ने खुलकर रूस का विरोध और यूक्रेन का समर्थन किया था. लेकिन चीन और भारत के अलावा दक्षिण अफ्रीका वह देश था, जिसने इस युद्ध के लिए रूस की निंदा करने वाले प्रस्ताव पर वोटिंग से दूरी बना ली थी. दरअसल पिछले साल संयुक्त राष्ट्र में रूस के विरोध में एक प्रस्ताव लाया गया था, जिसमें यूक्रेन पर हमले को लेकर उसकी निंदा की थी. लेकिन दक्षिण अफ्रीका ने इस प्रस्ताव पर वोटिंग से दूरी बना ली थी. इस युद्ध के लिए रूस की निंदा करने से यह कहते हुए दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने दूरी बना ली थी कि यूक्रेन को लेकर उसका तटस्थ रुख है और उसने बैन थ्योरी के बजाए बातचीत का समर्थन किया था.

इस संयुक्त सैन्याभ्यास का ऐलान ऐसे समय में हुआ है, जब रूस के विदेश मंत्री सर्गेइ लावरोव दक्षिण अफ्रीका दौरे पर थे. इस दौरे के दौरान उन्होंने दक्षिण अफ्रीका की विदेश मंत्री नालेदी पांडोर से द्विपक्षीय वार्ता की, जो रूस और चीन के साथ दक्षिण अफ्रीका के संयुक्त सैन्याभ्यास के फैसले का बचाव कर रही हैं. उन्होंने कहा कि दुनियाभर के सभी देश अपने मित्र देशों के साथ सैन्याभ्यास करते हैं. इसलिए किसी भी देश पर यह बाध्यता नहीं होनी चाहिए कि वह किसी अन्य देश के साथ ड्रिल नहीं करे. उन्होंने कहा कि अफ्रीकी देशों को अन्य देशों के दोहरे मानकों से बचना चाहिए. ऐसे देश जो कुछ भी कर सकते हैं. लेकिन दूसरे देश जब ऐसा करते हैं, तो उन्हें दिक्कत होती है क्योंकि वे विकासशील देश हैं.

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