अमेरिकी राष्ट्रपति पद चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप के हारने पर कई देशों की सरकारों को हो सकती है ख़ुशी, जानिए ऐसे देशों के नाम
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अगर नवंबर में होने वाले चुनाव में हार गए तो हारने वाले वह अकेले नहीं होंगे। कुछ देश ऐसे भी हैं, जिन्हें यह देखकर अच्छा नहीं लगेगा
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अगर नवंबर में होने वाले चुनाव में हार गए तो हारने वाले वह अकेले नहीं होंगे। कुछ देश ऐसे भी हैं, जिन्हें यह देखकर अच्छा नहीं लगेगा। हालांकि, अमेरिका के आधुनिक इतिहास के सबसे विवादित राष्ट्रपति रहे ट्रम्प के व्हाइट हाउस से बाहर होने पर कई देशों की सरकारें खुश हो सकती हैं।
ब्लूमबर्ग के मुताबिक, तुर्की, नॉर्थ कोरिया और सऊदी अरब के नेताओं के लिए डोनाल्ड ट्रम्प का साथ अच्छा रहा है। अगर ट्रम्प चुनाव हारे तो उनके लिए नई चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं। चीन पर तो इससे बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। फिर भी कई देशों को चिंता है कि ट्रम्प के सत्ता से बाहर होने से अमेरिका अपनी पहले वाली विदेश नीति की ओर लौट सकता है। इसका असर अमेरिका के साथ गठबंधन में शामिल देशों, लोकतांत्रिक मूल्यों व मानवाधिकार के मुद्दों और क्लाइमेट चेंज के खिलाफ चल रही लड़ाई पर दिख सकता है। यही वजह है कि चुनाव में ट्रम्प को चुनौती दे रहे जो बाइडेन भी इन्हीं मुद्दों पर ट्रम्प पर हमलावर रहे हैं।
किम जोंग उन : कभी तकरार कभी प्यार
अमेरिका और नॉर्थ कोरिया के रिश्तों में सबसे ज्यादा बदलाव ट्रम्प के राष्ट्रपति रहते आया। धमकियों और अपमान वालीं बातों से शुरू होकर यह रिश्ता अपनेपन तक पहुंचा। इस अपनेपन को जाहिर करने के लिए ट्रम्प और नॉर्थ कोरिया के नेता किम जोंग उन 3 बार मिले। 20 से ज्यादा बार दोनों ने एक-दूसरे का पत्र लिखे। यह अब तक की अमेरिकी नीति से बिल्कुल अलग रहा।
इसके बावजूद अमेरिका नॉर्थ कोरिया के परमाणु हथियारों को खत्म नहीं कर पाया। पिछले 10 अक्टूबर को ही नॉर्थ कोरिया ने एक नई और ज्यादा मारक क्षमता वाली इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण किया। यह मिसाइल एक बार में कई परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है। जो बाइडेन भी कह चुके हैं कि वे बिना शर्त किसी समझौते पर आगे नहीं बढ़ेंगे, जिससे 2 दशकों के सबसे खराब दौर में पहुंची नॉर्थ कोरिया की अर्थव्यवस्था को तेज रफ्तार मिल जाए।
मोहम्मद बिन सलमान : हर मुश्किल में मिला साथ
ट्रम्प ने सऊदी अरब के साथ संबंधों पर शुरुआत से ही गर्मजोशी दिखाई है। 2017 में अपनी पहली आधिकारिक विदेश यात्रा के लिए उन्होंने रियाद को चुना। ट्रम्प के स्वागत में वहां उनकी एक बड़ी तस्वीर लगाई गई। यह तस्वीर उस होटल के ठीक सामने थी, जहां अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ठहरा था। ट्रम्प ने सऊदी अरब के पुराने दुश्मन रहे ईरान के साथ 2015 में की गई न्यूक्लियर डील तोड़ दी। सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को इसका भरपूर फायदा मिला। 2018 में सऊदी सरकार के कट्टर आलोचक जमाल खशोगी की हत्या का आदेश देने के आरोप में घिरने पर मोहम्मद बिन सलमान के समर्थन में ट्रम्प खुलकर सामने आए। उन्होंने कांग्रेस के प्रतिबंध के प्रस्ताव पर वीटो तक कर दिया। सऊदी के नेताओं का कहना है कि ट्रम्प के जाने के साथ ही अमेरिका फिर से अपनी पुरानी मानवाधिकार पर ज्यादा ध्यान देने वाली नीति पर लौट जाएगा। इसके अलावा ईरान के साथ दोबारा समझौते के दरवाजे भी खुले जाएंगे।
रजब तैयब अर्दोआन : ट्रम्प के सबसे खास
ट्रम्प के सियासी संरक्षण में मोहम्मद बिन सलमान के बाद अगर कोई है तो वह तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोआन ही हैं। अर्दोआन ने रूस के साथ एस-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम का सौदा किया, तब कांग्रेस के प्रतिबंधों और तुर्की के बीच ट्रम्प अकेले खड़े थे। तुर्की ने नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन अलाई (नाटो) का हिस्सा होने के बावजूद यह फैसला लिया था। ट्रम्प के साथ अपने निजी संबंधों का फायदा अर्दोआन ने सीरिया में भी उठाया। उन्होंने नॉर्दर्न सीरिया के कुर्दिश एरिया से अमेरिकी सैनिक हटाने के लिए ट्रम्प को मनाया, ताकि अपने सैनिक भेजकर उस इलाके पर नियंत्रण कर सकें।
ट्रम्प ने यह फैसला पेंटागन और इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई में शामिल अपने सहयोगियों ब्रिटेन, फ्रांस और कुर्दिश लड़ाकों से सलाह लिए बिना कर लिया। कुर्दिश लड़ाकों को तुर्की आतंकवादी मानता है। प्रतिबंधों से जुड़े प्रस्ताव तैयार होने और बाइडेन की तुर्की की विपक्षी पार्टियों को समर्थन देने की अपील से साफ है कि ट्रम्प के जाने से सबसे ज्यादा नुकसान अर्दोआन को ही होगा।
शी जिनपिंग : दुनिया का नेता बनने का सपना
अमेरिका के पिछले राष्ट्रपतियों के मुकाबले ट्रम्प चीन पर ज्यादा आक्रामक रहे। उन्होंने चीनी सामान पर कड़े प्रतिबंध लगाए। चीनी तकनीक की अपने देश में पहुंच पर रोक लगा दी। इसके बावजूद चीन के अधिकारियों का कहना है कि वे ट्रम्प का सत्ता में बने रहना पसंद करेंगे। ट्रम्प ने दूसरे विश्व युद्ध के बाद बने गठबंधनों बिल्कुल परवाह नहीं की। इसे चीन अपनी महत्वाकांक्षाओं के नजरिये से अहम फायदे के रूप में देखता है। अपनी अमेरिका फर्स्ट की नीति पर अड़े रहने के कारण ट्रम्प कई समझौतों से बाहर हो गए। इससे वैश्विक स्तर पर अमेरिका का कद कम हुआ। इस वजह से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कारोबार से लेकर पर्यावरण समेत कई जरूरी मुद्दों पर नेतृत्व के शून्य को भरना शुरू कर दिया।
बाइडेन के बारे में बीजिंग की चिंता यह है कि वे व्यापार और तकनीक क्षेत्र में दबाव बनाए रखने के साथ ही चीन से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा मजबूत मोर्चा बना सकते हैं। फिर भी ट्रम्प हारे तो चीन को वॉशिंगटन के साथ भावनात्मक संबंध मजबूत होने का फायदा मिल सकता है। नानजिंग यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रफेसर झू फेंग कहते हैं कि क्या वाकई लोग चाहते हैं कि चीन और यूएस शीत युद्ध में शामिल हो जाएं।
व्लादिमीर पुतिन : परदे के पीछे का 'दोस्त'
2016 के चुनाव में रूस के दखल के आरोपों की अमेरिकी जांच में 448 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की गई है। पुतिन को ट्रम्प के राष्ट्रपति रहते काफी फायदा मिला। ट्रम्प ने नाटो की उपयोगिता और जर्मनी जैसे साथी देश की भूमिका पर ही सवाल उठा दिए। माना जा रहा है यह चलन ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल के दौरान भी जारी रहेगा। रूसी अधिकारियों को लगता है कि बाइडेन के शासन में ऐसा होने की संभावनाएं खत्म हो जाएंगी। 2019 तक नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल में यूरोपियन और रशियन मामलों की सीनियर डायरेक्टर फियोना हिल का मानना है कि रूस विरोधी भावना पर विलाप करने के बजाय क्रेमलिन इसे बदलने की कोशिश कर सकता है।