Afganistan : तालिबानियों ने शुरू किया नया कानून, आखिर क्यों क्या है इस शरिया कानून का मतलब जानिए
शरिया कानून में अपराधों को दो कैटेगरी में बांटा गया है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अफगानिस्तान में सत्ता संभालने में लगे तालिबान ने अपने इरादे एकदम साफ़ कर दिए है. तालिबानी नेता वहीदुल्लाह हाशिमी ने एक इटरव्यू में बताया कि अफगानिस्तान में कोई लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं होगी और तालिबान शरिया कानून के अनुसार ही शासन करेगा. आज नो दिस के इस एपिसोड में हम जानेंगे कि आखिर शरिया कानून क्या है? क्या कुछ कहता है ? साथ ही जानेंगे कि ये कानून किन किन देशों में लागू है और इसमें गलती करने पर क्या दंड होता है.
शरिया शब्द का सीधा सीधा मतलब होता है पानी का एक साफ और व्यवस्थित रास्ता. और शरिया कानून इस्लामिक कानून व्यवस्था है. शरिया कानून को इस्लाम कि सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक क़ुरान और इस्लामी विद्वानों के फ़ैसलों यानी फ़तवों को मिलाकर तैयार किया गया है. शरिया कानून जीवन जीने का रास्ता बताता है. एक मुसलमान की डेली लाइफ के हर पहलू पर, कब, क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, इसका रास्ता दिखाता है.
किसी समस्या के आने पर वो सलाह के लिए शरिया विद्वान से मदद ले सकता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि अपने धर्म के कानूनी ढांचे के तहत वो क्या करे? किसी भी क्षेत्र में मार्गदर्शन के लिए मुसलमान शरिया कानून की मदद ले सकता है. इसमें पारिवारिक कानून, वित्त और व्यवसाय सभी शामिल हैं. इसका मकसद मुसलमानों को ये समझाने में मदद करना है कि उन्हें अपने जीवन के हर पहलू को अल्लाह की इच्छा के अनुसार कैसे जीना चाहिए. सभी मुसलमानों से इसका पालन करने कि उम्मीद कि जाती है. इसके साथ ही इसमें प्राथना, उपवास और गरीबों को दान देने का निर्देश दिया गया है.
शरिया कानून में अपराधों को दो कैटेगरी में बांटा गया है. पहला है "तज़ीर" अपराध, जिसमें न्यायाधीश के विवेक पर सजा छोड़ दी जाती है. दूसरा है "हद" अपराध. इसमें गंभीर अपराध आते हैं और इसके लिए कठोर सजा तय है. हद अपराधों में चोरी भी शामिल है, जिसमें अपराधी के हाथों को काट दिया जाता है. कुरान को नकारना या उसकी आलोचना करने पर मौत की सजा है. इसके अलवा व्यभिचार करने पर पत्थर मारकर मौत की सज़ा दी जा सकती है. बता दें सभी मुस्लिम देश हद अपराधों के लिए ऐसे दंड नहीं देते.
संयुक्त राष्ट्र संघ पत्थर मारकर मौत की सजा पर प्रतिबंध लगा चुका है. उसका मानना है कि- यातना, क्रूरता, अमानवीय और अपमानजनक सजा है. ये अनुचित है. 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान पर तालिबान का राज था. उस शासन के दौरान शरिया कानून के अत्ंयत सख्त नियम लागू करने के लिए तालिबान की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा की गई. वहां सार्वजनिक पत्थरबाजी, कोड़े मारना, फांसी देकर किसी को बीच बाजार लटका देने जैसी घटनाओं को अंजाम दिया गया था. फिलहाल लगभग 48 देश ऐसे हैं जहां शरिया कानून का पूरी तरह, आंशिक रूप से राष्ट्रीय या क्षेत्रीय रूप से इस्तेमाल किया जाता है.
शरिया कानून प्रणाली भी बाकी कानून प्रणाली की तरह ही काफी मुश्किल है. इस्लामी कानूनों के जज मार्गदर्शन और निर्णय जारी करते हैं. मार्गदर्शन को ही फतवा कहा जाता है. इसे औपचारिक तौर पर कानूनी निर्णय माना जाता है.
1996 से 2001 के बीच तालिबान ने शरिया कानून के नाम पर हत्या और रेप के दोषियों को सरेआम फांसी और चोरी जैसे अपराधों पर पत्थर से मारने जैसी सजाएं सुनाई. टीवी, सिनेमा, संगीत हराम हो गया था. 10 साल से बड़ी लड़कियों के स्कूल जाने पर रोक लग गई थी. औरतों को न पढ़ने का, न नौकरी करने का, न बाहर जाने का, ना खुलकर अपनी बात रखने का अधिकार था. उन्हें पूरा शरीर ढ़ककर रखना पड़ता था. बाहर जाना भी हो तो वो परिवार के किसी पुरुष रिश्तेदार के साथ ही बाहर जा सकती थीं
वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू डॉट कॉम के हिसाब से शरिया कानून का पालन करने वाले देशों की इसे लेकर अपनी-अपनी व्याख्याएं हैं. इसलिए ऐसा नहीं कहा जा सकता की दो मुल्कों के शरिया कानून एक जैसे हों. जिन देशों में शरिया कानून लागू हैं वो धर्म निरपेक्ष नहीं हैं. कुछ ऐसे देश जहां सभी जगह शरिया कानून लागू है उनमें इंडोनेशिया, इजिप्ट, ईरान, इराक, मलेशिया, मालदीव शामिल है. अफ्रीका के भी कई देश शरिया कानून का पालन करते हैं, इसमें नाइजीरिया, केन्या और इथियोपिया शामिल हैं. सूडान ने सितंबर 2020 में लगभग 30 साल पालन करने के बाद शरिया कानून को समाप्त कर दिया था.