अफगानिस्तान के हेपेटाइटिस से पीड़ित मरीज को इंडिया में मिला ईलाज, जानें क्या होता है एबीओ लिवर ट्रांसप्लांट?
लिवर हमारे शरीर का बेहद महत्वपूर्ण अंग होता है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | लिवर हमारे शरीर का बेहद महत्वपूर्ण अंग होता है और इसी से जुड़ी एक खतरनाक बीमारी है, हेपेटाइटिस-बी. सही समय पर इलाज न हो, तो यह बीमारी जानलेवा हो सकती है. इस बीमारी के गंभीर होने से लिवर पूरी तरह खराब हो जाती है. इसी बीमारी के कारण अफगानिस्तान के 63 वर्षीय बुजुर्ग का लिवर भी फेल हो चुका था. ऐसे में लिवर ट्रांसप्लांट करना बहुत ही जरूरी था.
अब इसमें पहली दिक्कत आती है लिवर डोनर की. लिवर की व्यवस्था तो हो गई, लेकिन दिक्कत ये थी कि डोनर और मरीज का ब्लड ग्रुप सेम नहीं था. ऐसे में ऑपरेशन और ट्रांसप्लांट बेहद जटिल काम था. लेकिन अफगान के बुजुर्ग को जीवनदान मिला, भारत आकर. दिल्ली में एचसीएमसीटी मणिपाल हॉस्पिटल्स, द्वारका में यह लीवर ट्रांसप्लांट सर्जरी पूरी की.
दावा है कि यह अपनी तरह का पहला एबीओ लिवर ट्रांसप्लांट है. लिवर, ट्रांसप्लांटेशन और हेपैटो-पैनक्रियैटिक बाइलियरी सर्जरी विभाग के एचओडी डॉ शैलेन्द्र लालवानी के नेतृत्व में डॉक्टर्स की टीम ने इस लिवर ट्रांसप्लांट को सफल बनाया.
क्या होता है एबीओ लिवर ट्रांसप्लांट?
एबीओ असंगत ट्रांसप्लांट सर्जरी ऐसे मामलों में होती है जब अंग दान करने वाले यानी डोनर और अंग प्राप्त करने वाले यानी जरूरतमंद मरीज का ब्लड ग्रुप एक नहीं होता है. इस प्रक्रिया में तैयारियां पहले करने पड़ती हैं. फाइनल सर्जरी से महीने भर पहले ताकि एंटीबॉडी मेडिएटेड रिजेक्शन (एएमआर) से बचा जा सके.
इसमें तीन दौर की प्रक्रिया होती है ताकि एंटीबॉडी के लक्ष्य का स्तर हासिल कर सकें. पहले राउंड में मरीज को एंटी-सीडी-20 दी जाती है ताकि एंटीबॉडी तैयार करने वाले प्लाज्मा सेल का निर्माण रोका जा सके. दूसरे चरण में बाकी बचे एंटीबॉडी को न्यूट्रलाइज किया जाता है. और तीसरा चरण प्लाज्मा फिलट्रेशन का होता है ताकि मरीज के शरीर से एंटीबॉडीज हटाए जा सकें. स्टैंडर्ड लेवल हासिल होने के बाद ही ट्रांसप्लांट किया जाता है.
बेटे ने कहा- भारत आकर पिता को मिला नया जीवन
अफगानिस्तान के मरीज बुजुर्ग 24 साल के अपने बेटे समद और बेटी के साथ भारत आए थे. यहां मणिपाल हॉस्पिटल्स में जांच के बाद उन्हें एबीओ असंगत ट्रांसप्लांट की सलाह दी गई. डोनर उनका बेटा समद ही था. तमाम जरूरी प्रक्रिया अपनाते हुए सर्जरी की गई और मरीज को हाल ही में अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.
मरीज के बेटे समद ने कहा, कि "भारत आकर उनके पिता को नया जीवन मिला. पिता की बदौलत ही स्वस्थ जीवन जी पाया हूं. मेरा लिवर अगर उन्हें जिंदगी दे सका है तो यह मेरी खुशनसीबी है. मैं डॉक्टर्स की टीम, अस्पताल और भारत देश का आभारी रहूंगा. बता दें कि हेल्थकेयर क्षेत्र में मणिपाल हॉस्पिटल्स, कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल्स के 100 फीसदी स्टेक का अधिग्रहण कर देश में अस्पतालों का एक बड़ा नेटवर्क बन चुका है.
डॉ शैलेन्द्र लालवाणी ने बताया, "एबीओ असंगत (Incompatible) लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी एक उलझी हुई प्रक्रिया है। इसमें मेडिकल सुविज्ञता, संरचना, ऑपरेशन के बाद अच्छी देख-भाल और संक्रमण मुक्त माहौल की आवश्यकता होती है. मरीज के परिवार में समान ब्लड ग्रुप वाला डोनर नहीं था, इसलिए यही उपाय था. 12 घंटे की सर्जरी के बाद मरीज को ठीक होने में 3 हफ्ते लग सकते थे, लेकिन 2 हफ्ते में ही मरीज ठीक हो गए.