एक केक को लेकर 7 साल चली कानूनी जंग, जानें आखिर क्या थी वजह?

उन्होंने आगे कहा कि मैं इस बात से सबसे ज्यादा निराश हूं कि मुख्य मुद्दे का उचित विश्लेषण नहीं किया गया और तकनीकी आधार पर केस खारिज कर दिया गया.

Update: 2022-01-08 01:44 GMT

एक केक (Cake) को लेकर सात साल तक अदालती लड़ाई लड़ने वाले शख्स को अंत में हार का सामना करना पड़ा है. समलैंगिक अधिकारों के लिए काम करने वाले एक व्यक्ति (Gay Rights Activist) ने बेकरी (Bakery) पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. उसका कहना था कि बेकरी ने केक पर 'सपोर्ट गे-मैरिज' लिखकर देने से इनकार कर दिया, जो सीधे तौर पर भेदभाव है.

Bakery ने दिया था ये तर्क
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, गे-राइट एक्टिविस्ट गैरेथ ली (Gareth Lee) को यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय से झटका लगा है. कोर्ट ने यह कहते हुए उनका केस खारिज कर दिया कि उन्होंने सभी विकल्पों का इस्तेमाल नहीं किया. गैरेथ ने 2014 में कानूनी कार्रवाई शुरू की थी, जब एक ईसाई द्वारा संचालित बेलफास्ट बेकरी ने उन्हें केक पर 'सपोर्ट गे मैरिज' का स्लोगन लिखकर देने से इनकार कर दिया था. बेकरी का कहना था कि ये स्लोगन ईसाई मान्यताओं का उल्लंघन करता है.
निचली अदालतों में मिली थी जीत
Belfast निवासी गैरेथ ली ने बेकरी के खिलाफ लैंगिक और राजनीतिक आस्था के आधार पर भेदभाव का आरोप लगाया था. निचली अदालतों ने उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए बेकरी को भेदभाव का दोषी माना, लेकिन 2018 में यूके की सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों के रुख पर असहमति जताई और फैसला बेकरी के पक्ष में सुना दिया. इसके बाद गैरेथ ने European Court of Human Rights का दरवाजा खटखटाया. यहां सात जजों की बेंच ने उनका केस सुना. बेंच में शामिल अधिकांश जजों का मानना था कि इस केस का कोई आधार ही नहीं बनता. इसलिए उसे खारिज कर दिया गया.
Court के फैसले पर जताई निराशा
वहीं, कोर्ट के इस फैसले पर निराशा व्यक्त करते हुए गैरेथ ने कहा, 'आप ये कैसे अपेक्षा कर सकते हैं कि दुकान में जाते समय हमें पता हो कि उसका मालिक किस धार्मिक आस्था का पालन करता है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी का अधिकार है और ये बात समलैंगिक, उभयलिंगी और ट्रांसजेंडर लोगों पर भी समान रूप से लागू होनी चाहिए. सिर्फ इस आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता कि वो आपसे अलग है'. उन्होंने आगे कहा कि मैं इस बात से सबसे ज्यादा निराश हूं कि मुख्य मुद्दे का उचित विश्लेषण नहीं किया गया और तकनीकी आधार पर केस खारिज कर दिया गया.



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