अफगानिस्तान में एक महिला गवर्नर तालिबान के खिलाफ छिड़ी जंग, सेना में शामिल मजदूर और गडरिए
माजरी की फौज बिना रुके दिन रात पहरा देती है। सैकड़ों की संख्या में उनके जवान मोर्चे पर डटे रहते हैं, वो भी बिना तनख्वाह के।
अफगानिस्तान में एक महिला गवर्नर तालिबान के खिलाफ छिड़ी जंग का पूरी ताकत के साथ नेतृत्व कर रही है। इस महिला गवर्नर का नाम सलीमा माजरी है। ये नाम और खास इसलिए भी हो जाता है क्योंकि अफगानिस्तान एक पुरुष प्रधान देश है। मजे की बात ये भी है कि उनके नेतृत्व में लड़ने वाले पुरुष ही हैं। वो लगातार स्थिति का जायजा लेती हैं और अगली रणनीति तैयार करती हैं। पिकअप की फ्रंट सीट पर बैठक वो तालिबान के खिलाफ लड़ने वाले पुरुषों को जुटा रही हैं। वो जिस पिकअप पर होती हैं उस पर गाना बजता रहता है मेरे वतन... मैं अपनी जिंदगी तुझ पर कुर्बान कर दूंगा।
माजरी लगातार लोगों के बीच जाकर उनसे तालिबान के खिलाफ हथियार उठाने की बात कर रही हैं। गौरतलब है कि मई से ही तालिबान लगातार हमला कर रहा है। वो तेजी से कई जिलों को अपने कब्जे में ले चुका है। इस दौरान हजारों की संख्या में आम नागरिक भी मारे गए हैं। मई में ही राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपनी और नाटो सेनाओं की वापसी की शुरुआत भी की थी। तालिबान ने शांति वार्ता से इतर हमलों को जिस तरह से तेज किया है उसको देखते हुए ये साफ हो गया है कि वो देश में शांति स्थापना को नहीं बल्कि सत्ता हथियाने को उतावला है, जिससे वो देश में एक बार फिर से अपना अपना क्रूर शासन लागू कर सके।
माजरी की बात करें तो वो तालिबान के बढ़ते कदमों की आहट आसानी से सुन रही हैं। बाल्ख प्रांत के मजार ए शरीफ से करीब घंटे भर की दूरी पर मौजूद चारकिंत तालिबान की इस आहट को लेकर पूरी तरह से सचेत है। माजरी कहते हैं कि तालिबानी हुकूमत में मानवाधिकार जैसी कोई चीज नहीं होती है। वो इनकी खुलकर धज्जियां उड़ाते हैं। वो महिलाओं की पढ़ाई-लिखाई से सख्त नफरत करते हैं और महिला नेताओं को तो वो एक आंख पसंद नहीं करते हैं। अफगानिस्तान तालिबानी शासन की मार भुगत चुका है। तालिबान के शासन में विकास पूरी तरह से ठप हो जाता है।
माजरी देश में रहने वाले हजारा समुदाय से आती हैं। इस समुदाय के ज्यादातर लोग शिया हैं। वहीं तालिबान में अधिकतर सुन्नी मुसलमान हैं जो इन्हें कतई पसंद नहीं करते हैं। मई में ही तालिबान ने एक स्कूल पर हमला कर उसमें पढ़ने वाली 80 लड़कियों को गोलियों से भून दिया था। माजरी के इस जिले के आधे हिस्से पर तालिबान ने कब्जा कर लिया है। इसके बाद भी माजरी पीछे नहीं हटना चाहती है बल्कि तालिबान का सामना करने के लिए सभी को प्रेरित कर रही हैं। उनके द्वारा खड़ी की गई फौज में मजदूर से लेकर भेड़ चराने वाले तक शामिल हैं। उनके मुताबिक पहले उनके पास बंदूकें नहीं थी। अपने जानवरों को बेचकर लोगों ने बंदूक और दूसरे हथियार खरीदे। माजरी की फौज बिना रुके दिन रात पहरा देती है। सैकड़ों की संख्या में उनके जवान मोर्चे पर डटे रहते हैं, वो भी बिना तनख्वाह के।