बिना पासपोर्ट सूडान में फंसे 62 भारतीय नागरिक, खाने-पीने की हो रही मुश्किल
अब ये लोग पूछ रहे हैं कि वे सूडान को कैसे छोड़कर भारत वापस लौटें?
सूडान (Sudan) में 62 भारतीय फंस गए हैं और अब वे सवाल पूछ रहे हैं कि वे लोग किस तरह से मुल्क से बाहर निकलें? इन लोगों का वेतन रोक लिया गया है. पासपोर्ट भी छीन लिया गया और जो पैसे इनके पास थे, वे भी अब तेजी से खत्म हो रहे हैं. सूडान में फंसे ये लोग देश की सबसे बड़ी सिरेमिक टाइल निर्माताओं में से एक नोबल्स ग्रुप के लिए काम करते थे. लेकिन यहां पहुंचने के बाद से ही इनका जीवन कठिन हो गया है. इन लोगों की मुसीबत और बढ़ गई, जब अक्टूबर में देश में सैन्य तख्तापलट हो गया. दरअसल, तख्तापलट के बाद कंपनी के मालिक मुहम्मद अल-ममौन मध्य-पूर्व में भाग गए और कंपनी पर सैन्य सरकार ने कब्जा कर लिया.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, राजधानी खार्तूम (Khartoum) के बाहरी इलाके में अल्बागेर औद्योगिक क्षेत्र में स्थित अल मासा चीनी मिट्टी के बरतन कारखाने में एक भारतीय कर्मचारी मारुति राम दंडपाणि ने कहा, मुझे एक साल से मेरा वेतन नहीं मिला है और वे हमें उचित भोजन नहीं देते हैं. इस कंपनी में, 25 लोग काम कर रहे हैं और हममें से किसी को भी हमारा वेतन नहीं मिला है. लगभग 80 किमी दूर गैरी औद्योगिक क्षेत्र में नोबल्स ग्रुप के स्वामित्व वाली आरएके सेरामिक्स फैक्ट्री में भी वही कहानी चल रही है. यहां पर काम करने वाले 41 भारतीय नागरिकों को करीब एक साल से भुगतान नहीं किया गया है.
महीनों से नहीं दिया गया वेतन
कर्मचारियों ने कहा कि उनकी मुश्किलें बढ़ने के पीछे की वजह ये वजह है कि उनके पासपोर्ट को भी कब्जे में ले लिया गया है. कंपनी की नीतियों का हवाला देते हुए ऐसा किया गया और अब भारतीय कामगारों को खार्तूम में कंपनी के मुख्यालय में बंद कर दिया गया है. कर्नाटक निवासी राजू शेट्टी ने कहा कि जब मैं पहली बार यहां आया, तो एक महीना बीत गया और हमने अपने महाप्रबंधक से वेतन मांगा. वह बहाने देती रही कि अगले महीने दे दी जाएगी. फिर और समय बीत गया. उन्होंने बताया, उन्होंने कहा कि उनके पास फंड नहीं है. फिर चार महीने तक हमने उनका पीछा किया, जिसके बाद हमें एक महीने का वेतन दिया गया.
परिवार द्वारा भेजे गए पैसों से चला रहे गुजारा
सूडान में नोबल्स ग्रुप के स्वामित्व वाले इन कारखानों में काम करने के लिए भर्ती किए गए भारत के कर्मचारियों ने कहा कि उनके परिवार रोजमर्रा की जरूरतों और बिलों के भुगतान के लिए उनके वेतन पर निर्भर थे. कंपनी द्वारा इन मजदूरों को भुगतान करना बंद करने के बाद, उनके परिवारों को आर्थिक रूप से संघर्ष करना पड़ा है. जहां इन कर्मचारियों को भारत में अपने परिवारों का खर्चा चलाना था. वहीं, अक्टूबर से भारत में मौजूद उनके परिवार अब उन्हें पैसे भेज रहे हैं, ताकि वे भोजन और पानी का भुगतान कर सकें. अब ये लोग पूछ रहे हैं कि वे सूडान को कैसे छोड़कर भारत वापस लौटें?