भगवान गणेश को क्यों अर्पित की जाती है दूर्वा, जाने इसके पीछे का महत्व

गणेश जी को प्रथम पूज्य कहा गया है. सनातन धर्म में मान्यता है कि आपकी कोई भी पूजा या अनुष्ठान तभी सफल होता है, जब आप उस पूजा की शुरुआत गणेश जी के नाम से करते हैं.

Update: 2021-09-10 03:02 GMT

गणेश जी को प्रथम पूज्य कहा गया है. सनातन धर्म में मान्यता है कि आपकी कोई भी पूजा या अनुष्ठान तभी सफल होता है, जब आप उस पूजा की शुरुआत गणेश जी के नाम से करते हैं. हर साल भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश भगवान की विशेष पूजा अर्चना और उनके लिए व्रत रखा जाता है. मान्यता है कि इसी चतुर्थी के दिन गणपति भगवान का जन्म हुआ था. आज 10 सितंबर शुक्रवार को गणेश चतुर्थी है.

इस दौरान भगवान की मूर्ति को घर में लाकर स्थापित करने की भी परंपरा है. बप्पा के भक्त उनकी प्रतिमा को घर में इस विश्वास के साथ लाते हैं कि गणपति उनके सारे संकट हर लेंगे. इस दौरान गणपति को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए बप्पा के भक्त उनकी विशेष पूजा अर्चना करते हैं. कहा जाता है कि गणपति की पूजा में दूर्वा यानी दूब का बड़ा महत्व है, इसलिए जब तक गणपति आपके घर में विराजमान रहें, उन्हें दूर्वा जरूर अर्पि​त करें. जानें दूर्वा चढ़ाने के नियम और ये गणपति को क्यों प्रिय है !
ये हैं दूर्वा चढ़ाने के नियम
1- मान्यता है कि गणपति को 21 दूर्वा लेकर चढ़ानी चाहिए और इन्हें दो दो के जोड़े में चढ़ाना चाहिए.
2- जब तक गणपति आपके घर पर विराजमान रहें, नियमित रूप से उन्हें दूर्वा जरूर अर्पित करें.
3- दूर्वा घास को चढ़ाने के लिए किसी साफ जगह से ही तोड़े और चढ़ाने से पहले भी इसे पानी से अच्छी तरह से धो लें.
4- दूर्वा के जोड़े चढ़ाते समय गणपति के 10 मंत्रों को जरूर बोलना चाहिए.
दूर्वा चढ़ाते समय बोलें ये 10 मंत्र
ॐ गणाधिपाय नमः
ॐ उमापुत्राय नमः
ॐ विघ्ननाशनाय नमः
ॐ विनायकाय नमः
ॐ ईशपुत्राय नमः
ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः
ॐ एकदंताय नमः
ॐ इभवक्त्राय नमः
ॐ मूषकवाहनाय नमः
ॐ कुमारगुरवे नमः
इसलिए गणेश जी को प्रिय है दूर्वा
पौराणिक कथा के अनुसार अनलासुर नामक एक दैत्य था, जिसने सब जगह पर हाहाकार मचा रखा था. वो इंसानों, दैत्यों और ऋषि मुनियों को जिंदा ही निगल लेता था. उसके आतंक से सारे देवी-देवता भी बहुत परेशान हो गए थे. वो इतना ताकतवर था कि देवताओं की शक्ति भी उस दैत्य के सामने कम पड़ने लगी थी. तब सभी देवता अनलासुर से बचाने की प्रार्थना करने भगवान गणेश की शरण में गए. भगवान गणेश ने भी अनलासुर का अंत करने के लिए उसे जिंदा ही निगल लिया. अनलासुर को निगलने के भगवान गणेश के पेट में बहुत जलन होने लगी. तब उस जलन को शांत करने के लिए उन्हें कश्यप ऋषि ने 21 दूर्वा एकत्र कर समूह बनाकर खाने के लिए दी. इसे खाने के बाद उनके पेट की जलन शांत हो गई. तब से गणपति को दूर्वा अत्यंत प्रिय हो गई और उनकी पूजा के दौरान 21 दूर्वा चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई.



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