दिल्ली न्यूज़: वनमाली कथा के वार्षिक आयोजन ‘वनमाली कथा समय’ का रवींद्र भवन में आगाज हुआ. पहले दिन साहित्यिक व सांस्कृतिक गतिविधियां हुईं. पूर्व रंग में अमित मलिक एवं नितिश मंगरोले ने वायलिन-बांसुरी की सांगीतिक जुगलबंदी पेश की. उन्होंने पारंपरिक और फिल्मी धुनों को पेश किया. शुरुआत राग भूपाली में दो बंदिश ‘ज्योति कलश छलके...’ और ‘ऊं नम: शिवाय...’ से की. इसके बाद यमन में ‘तुम आशा विश्वास हमारे...’ बंदिश पेश की. लोक धुनों में ‘केसरिया बालम पधारो म्हारे देश...’ ने सभी का दिल जीता. तबले पर संगत में मो. मोईन अल्लाहवाले रहे. इसके बाद वैचारिक सत्र में ‘डिजिटल रीडिंग के वर्तमान परिदृश्य में स्थिति’ पर परिचर्चा में वरिष्ठ साहित्यकार संतोष चौबे, शिवमूर्ति, विनोद तिवारी, मुकेश वर्मा, दिव्यप्रकाश दुबे, कुणाल सिंह मंचासीन रहे.
टेक्नोलॉजी का दायरा बढ़ता जाएगा: तकनीक ने हमारी क्षमताओं और पहुंच को बढ़ाया: चौबे- कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे संतोष चौबे ने कहा कि तकनीक ने हमारी क्षमताओं और पहुंच को बढ़ाया है. प्रिंट के अलावा अब इलेक्ट्रॉनिक और इंटरनेट पर ऑडियो-वीडियो माध्यम भी लोगों तक पहुंच रहे हैं. नई पीढ़ी तकनीक को अपनाती है और इस प्रकार आस्वाद का तरीका बदल जाता है. मुझे अखबार हाथ में पकड़कर पढ़ने में आनंद आता है लेकिन मेरे बच्चे मोबाइल पर पढ़ना पसंद करते हैं. इस सत्र का संचालन कुणाल सिंह किया गया.
साहित्यकार मुकेश वर्मा ने कहा, हम पहले टेक्नोलॉजी से विचलित होते हैं फिर उसे गले लगाते है. टेक्नोलॉजी का दायरा बढ़ेगा, इसे हमें स्वीकारना होगा. साहित्यकार शिवमूर्ति ने कहा कि जब आपके पास कई विकल्प मौजूद हो तो जरूरत के हिसाब से उनका उपयोग करना चाहिए. ममता कालिया ने कहा कि तकनीक एकाएक न रहे तो डिजिटल का साहित्य पूरी तरह खत्म हो सकता है. लेखन और पुस्तकों का आकर्षण आज भी है. मुझे लिखने में जो आनंद आता है वो टाइपिंग में नहीं होता. डिजिटल में फ्लूएंसी और रस की बाधा होती है. पर समय बदल रहा है मेरे घर के बच्चों को अब हाथ से लिखना पसंद नहीं आता बल्कि उन्हें किताब को देखकर तो नींद आने लगती है. मोबाइल और डिजिटल तकनीक सबको आत्मग्रस्त बना रही है.